परमानन्द श्रीवास्तव (जन्म: 10 फ़रवरी 1935 - मृत्यु: 5 नवम्बर 2013) हिन्दी के प्रतिष्ठित साहित्यकार थे। उनकी गणना हिन्दी के शीर्ष आलोचकों में होती है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रेमचन्द पीठ की स्थापना में उनका विशेष योगदान रहा। कई पुस्तकों के लेखन के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी भाषा की साहित्यिक पत्रिका आलोचना का सम्पादन भी किया था।

परमानन्द श्रीवास्तव
जन्म 10 फ़रवरी 1935
ग्राम बाँसगाँव जिला गोरखपुर संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, (ब्रिटिश भारत)
मृत्यु 5 नवम्बर 2013[1]
गोरखपुर, (भारत)
राष्ट्रीयता भारतीय
नृजातियता हिन्दू
शिक्षा एम॰ए॰ (हिन्दी साहित्य),
पीएच॰डी॰, डी॰लिट्॰
लेखन काल 1960 से 2005 तक
शैली गद्य एवं पद्य
विषय आलोचना
उल्लेखनीय कार्य आलोचना (पत्रिका)[2]
उल्लेखनीय सम्मान व्यास सम्मान (2006) के के बिड़ला फाउंडेशन दिल्ली
भारत भारती (2006) उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ
जीवनसाथी पत्नी
संतान 3 पुत्रियाँ

आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हें व्यास सम्मान और भारत भारती पुरस्कार प्रदान किया गया। लम्बी बीमारी के बाद उनका गोरखपुर में निधन हो गया।[3]

संक्षिप्त जीवनी संपादित करें

10 फ़रवरी 1935 को गोरखपुर जिले के बाँसगाँव में जन्मे[4] परमानन्द श्रीवास्तव ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा पैतृक गाँव से पूर्ण करने के उपरान्त सेण्ट एण्ड्रूज कॉलेज गोरखपुर से स्नातक, परास्नातक व डॉक्ट्रेट किया और उसी कॉलेज में प्रवक्ता हो गये। बाद में वे गोरखपुर विश्वविद्यालय चले गये और हिन्दी विभाग के आचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए। गोरखपुर विश्वविद्यालय में प्रेमचन्द पीठ की स्थापना में उनका विशेष योगदान रहा।[1]

परमानन्द श्रीवास्तव ने हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका "आलोचना" का सम्पादन भी किया था। उनकी गणना हिन्दी के शीर्ष आलोचकों में होती है। वर्ष 2006 में उन्हें आलोचना के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हें के के बिरला फाउंडेशन दिल्ली तथा उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ से दो-दो पुरस्कार मिले।[3]

आलोचना के साथ ही कविता के क्षेत्र में भी परमानंद श्रीवास्तव का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है ।वे अपनी कविताओं में समकालीन मनुष्य के संकटों की पहचान करते हैं और संवेदना की बची हुई धरती की तलाश करते हुए पूंजीवादी साम्राज्यवाद द्वारा पैदा किए गए अंधेरे समय की शिनाख्त करते हैं ।उनकी कविताएं जातीय पहचान रखती हैं ।[5]

काफी लम्बे समय से बीमार चल रहे परमानन्द श्रीवास्तव को रक्त शर्करा अनियन्त्रित हो जाने के कारण गोरखपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया जहाँ 5 नवम्बर 2013 को उन्होंने दम तोड़ दिया।[1]

प्रकाशित कृतियाँ संपादित करें

परमानन्द श्रीवास्तव ने साहित्य में लेखन की शुरुआत कविता से की और समारोप समीक्षा व आलोचना से किया। उनका प्रकाशित साहित्य इस प्रकार है:[4]

कविता संग्रह-
  1. उजली हँसी के छोर पर (1960)
  2. अगली शताब्दी के बारे में (1981)
  3. चौथा शब्द (1993)
  4. एक अनायक का वृतान्त (2004)
कहानी संग्रह-
  • रुका हुआ समय (2005)
आलोचना-
  1. नयी कविता का परिप्रेक्ष्य (1965)
  2. हिन्दी कहानी की रचना प्रक्रिया (1965)
  3. कवि कर्म और काव्यभाषा (1975)
  4. उपन्यास का यथार्थ और रचनात्मक भाषा (1976)
  5. जैनेन्द्र के उपन्यास (1976)
  6. समकालीन कविता का व्याकरण (1980)
  7. समकालीन कविता का यथार्थ (1980)
  8. जायसी (1981)
  9. निराला (1985)
  10. शब्द और मनुष्य (1988)
  11. उपन्यास का पुनर्जन्म (1995)
  12. कविता का अर्थात् (1999)
  13. कविता का उत्तरजीवन (2004)
डायरी-
  • एक विस्थापित की डायरी (2005)
निबन्ध-
  • अँधेरे कुंएँ से आवाज़ (2005)
सम्पादन-

सम्मान व पुरस्कार संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "प्रख्यात साहित्यकार परमानन्द श्रीवास्तव पंचतत्व में विलीन". दैनिक जागरण. अभिगमन तिथि 6 नवम्बर 2013.
  2. "आलोचक और कवि परमानंद श्रीवास्तव का निधन". मूल से 11 नवंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 नवंबर 2013.
  3. "साहित्यकार परमानन्द श्रीवास्तव का निधन, मुख्यमन्त्री ने जताया शोक". नवभारत टाइम्स. 5 नवम्बर 2013. http://navbharattimes.indiatimes.com/lucknow/administration/sahityakar-parmanand-srivastava-died/articleshow/25273377.cms. अभिगमन तिथि: 6 नवम्बर 2013. 
  4. अग्रवाल, डॉ॰ गिरिराज शरण; अग्रवाल, डॉ॰ मीना, हिन्दी साहित्यकार सन्दर्भ कोश, 2 (2006 संस्करण), बिजनौर: हिन्दी साहित्य निकेतन, पृ॰ 197, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-85139-29-6
  5. सिन्हा, उन्मेष कुमार (22 दिसम्बर 2010). "तहों में झाँकती आँखें". इण्डिया टुडे: 58.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें