प्यार का मौसम

1969 की नासिर हुसैन की फ़िल्म

प्यार का मौसम 1969 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। इसका निर्देशन, निर्माण और लेखन नासिर हुसैन ने किया। इसमें शशि कपूर और नासिर हुसैन की मनपसंद अभिनेत्री- आशा पारेख ने अभिनय किया। इसमें भारत भूषण, निरूपा रॉय, मदन पुरी, ताहिर हुसैन और एक अन्य नासिर हुसैन के पसंद राजेन्द्रनाथ भी थे। यादगार गीतों के लिए दो और हुसैन पसंदीदा जिम्मेदार थे: गीतकार मजरुह सुल्तानपुरी और संगीतकार आर॰ डी॰ बर्मन

प्यार का मौसम

प्यार का मौसम का पोस्टर
निर्देशक नासिर हुसैन
लेखक नासिर हुसैन
निर्माता नासिर हुसैन
अभिनेता शशि कपूर,
आशा पारेख,
भारत भूषण,
राजेन्द्रनाथ,
निरूपा रॉय,
किशन मेहता
संगीतकार आर॰ डी॰ बर्मन
प्रदर्शन तिथि
1969
देश भारत
भाषा हिन्दी

विश्लेषण संपादित करें

कहानी नासिर हुसैन की पसंदीदा थीम पर थी, एक परिवार जिसके सदस्य फिल्म की शुरुआत में अलग हो जाते हैं और बहुत सारी कार्रवाई के बाद फिल्म के अंत में फिर से जुड़ जाते हैं। फिल्म में थीम गीत (तुम बिन जां कहां) कई बार बजाया जाता है: मोहम्मद रफी के संस्करण को नायक शशि कपूर पर तीन बार चित्रित किया गया है, जबकि किशोर कुमार के संस्करण को भारत भूषण पर दो बार चित्रित किया गया है। यह गीत नासिर हुसैन (यादों की बारात और हम किससे कम नहीं) की बाद की फिल्मों के प्रमुख गीतों की तरह फिल्म का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मुख्य गीत तीनों फिल्मों में लंबे समय से खोए परिवार/प्रेमियों को एकजुट करने में मदद करता है।

संक्षेप संपादित करें

सीमा विधवा मोहन की एकमात्र संतान है, जिसे मोहन के मालिक सरदार रंजीत सिंह ने गोद लिया है। उनकी अपनी संपत्ति का कोई वारिस नहीं है, क्योंकि उनकी बेटी, जमुना (निरूपा रॉय), एक गरीब किसान, गोपाल (भारत भूषण) के साथ रहती है। रंजीत की अपने सौतेले भाई शंकर (मदन पुरी) के साथ नहीं बनती है। जमुना अपने पिता को आखिरकार मना लेती है, और वह उनके घर जाते हैं। वह वहाँ देखते हैं कि घर आग की लपटों में घिरा हुआ है और गोपाल जल के मर चुका है। उनका बेटा, सुन्दर लापता हो जाता है।

वर्षों बाद, सीमा (आशा पारेख) अब बड़ी हो गई है और ऊटी में प्यारेलाल (शशि कपूर) नामक एक युवक से मिलती है। वह उससे एक साल बाद फिर मिलती है, लेकिन इस बार वह खुद को झटपट सिंह के रूप में पेश करता है। इसके तुरंत बाद वह असली झटपट सिंह से मिलती है, और नकली झटपट सिंह उर्फ ​​प्यारेलाल के बारे में अपना विचार बदल लेती है। अब सुनील को पता चल जाता है कि उसे गोद लिया गया था और वह गोपाल का खोया बेटा है। वह सरदार रंजीत सिंह के पास जाता है और उसे जायदाद को सम्भालने का काम दिया जाता है। वहाँ वह फिर से सीमा से मिलता है और वे अपना प्रेम-संबंध फिर से शुरू करते हैं। उस समय तक, संपत्ति चोरी करने की योजना बनाते हुए, शंकर अपने बेटे को जमुना और गोपाल के खोए हुए बेटे के रूप में भेजता है। रंजीत सिंह उसे सही व्यक्ति मान लेता है और शंकर के बेटे से सीमा से शादी करना चाहता है। कुछ गलतफहमियों के बाद, परिवार आखिरकार फिर से मिल जाता है और जमुना का मानसिक स्वास्थ्य ठीक हो जाता है। फिल्म के अंत में सीमा और सुनील / सुन्दर की शादी होती है।

मुख्य कलाकार संपादित करें

संगीत संपादित करें

सभी गीत मजरुह सुल्तानपुरी द्वारा लिखित; सारा संगीत आर॰ डी॰ बर्मन द्वारा रचित।

क्र॰शीर्षकगायकअवधि
1."तुम बिन जाऊँ कहाँ" (I)मोहम्मद रफी3:27
2."आप चाहे मुझ को"लता मंगेशकर4:32
3."आप से मिलिये प्यार"लता मंगेशकर6:28
4."मैं ना मिलूंगी नजर"लता मंगेशकर3:42
5."ना जा मेरे हमदम"लता मंगेशकर5:08
6."ओ नि सुल्ताना रे"मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर5:09
7."चे खुश नजारें के"मोहम्मद रफी4:25
8."तुम बिन जाऊँ कहाँ" (II)किशोर कुमार[1]3:31
9."तुम बिन जाऊँ कहाँ" (दुखी)किशोर कुमार1:49

सन्दर्भ संपादित करें

  1. भारद्वाज, अनुराग (4 अगस्त 2018). "खंडवा की वीरान पड़ी हवेली और मध्य प्रदेश सरकार का किशोरपन". सत्याग्रह. मूल से 27 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 फरवरी 2019.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें