फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी

2000 की अज़ीज़ मिर्ज़ा की फ़िल्म

फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी 2000 में बनी हिन्दी भाषा की हास्य नाट्य फिल्म है। फिल्म अज़ीज़ मिर्जा ने निर्देशित की थी और शाहरुख़ ख़ान और जूही चावला ने किरदार निभाए थे। इस फिल्म से शाहरुख़, जूही और अज़ीज़ ने अपनी नई प्रोडक्शन कंपनी ड्रीमज़ अनलिमिटेड, अब रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट के तहत पहली बार कोई फिल्म निर्मित की।

फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी

फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी का पोस्टर
निर्देशक अज़ीज़ मिर्ज़ा
लेखक संजय छेल (संवाद)
पटकथा राज कुमार दहीमा
मनोज लालवानी
निर्माता शाहरुख़ ख़ान
जूही चावला
अज़ीज़ मिर्ज़ा
अभिनेता शाहरुख़ ख़ान,
जूही चावला,
जॉनी लीवर,
परेश रावल
छायाकार संतोष सीवन
संपादक जावेद सैयद
संगीतकार जतिन-ललित
निर्माण
कंपनी
प्रदर्शन तिथियाँ
21 जनवरी, 2000
लम्बाई
166 मिनट
देश भारत
भाषा हिन्दी
लागत 13 करोड़
कुल कारोबार 25.46 करोड़

संक्षेप संपादित करें

अजय बक्शी (शाहरुख खान) एक समाचार चैनल में काम करने वाला रिपोर्टर रहता है। उसके पिता आजादी की लड़ाई में भाग लिए थे और अब पेंशन पर जीवन बिता रहे हैं। अजय को लगता है कि उसके पिता का आदर्श और कुर्बानी के बदले उन्हें कुछ भी नहीं मिला। वो अपने पिता के आदर्शों का बिल्कुल भी सम्मान नहीं करता। अजय के कारण उसका चैनल काफी तरक्की कर लेता है और उसके दुश्मन चैनल अजय से निपटने का रास्ता तलाश करते रहते हैं और उसके जवाब में वे लोग रिया बेनर्जी (जूही चावला) को रख लेते हैं। रिया अपनी अदाओं से अजय का इस्तेमाल करती है और अपने काम को पूरा करती है।

पप्पू जूनियर उर्फ चोटी (जॉनी लीवर) एक डॉन रहता है, जिसे उसके अपने गिरोह से इस कारण हटाने वाले होते हैं, क्योंकि वो अब तक कोई भी बड़ा अपराध करने में सफल नहीं हो पाया है। चोटी से अजय मिलता है और उसे मंत्री रमाकांत (शक्ति कपूर) के बहनोई (महावीर शाह) पर नेशनल टीवी पे हमला करने का नाटक करने बोलता है, जिससे वो एक बड़ा अपराधी भी बन जायेगा और अजय के चैनल को टीआरपी भी मिल जाएगा।

जिस दिन अजय और चोटी उस काम को अंजाम देने वाले होते हैं, उसी दिन मोहन जोशी (परेश रावल) उस मंत्री के बहनोई पर गन ताने खड़े हो जाता है। जब अजय को पता चलता है कि वो चोटी का आदमी नहीं है, तो वो घबरा जाता है। रिया को जब अजय और चोटी के बारे में पता चलता है तो वो भी उनकी मदद करने की कोशिश करती है। मंत्री रमाकांत अपने बहनोई के मौत का लाभ वोट और सहानुभूति के रूप में लेने की सोचता है और एक समारोह का आयोजन करता है। कुछ समय बाद मोहन को गिरफ्तार कर लिया जाता है, पर वो पुलिस की पिटाई के बाद भी अपना मुंह नहीं खोलता है। पुलिस कमिश्नर (अंजान श्रीवास्तव) उसे एक आतंकवादी घोषित कर देता है और उसके अज्ञात आतंकी संगठन में काम करने वाला बताता है। वहीं मोहन किसी तरह जेल से भाग जाता है।

अजय और रिया इस मामले को लेकर कार में बैठ कर लड़ाई करते रहते हैं। वे दोनों इस बात से अनजान रहते हैं कि उनके कार में मोहन छुपा हुआ है। अजय जब मोहन को एक आतंकवादी बोलते रहता है, तो ये सुन कर मोहन गुस्से से आग बबूला हो जाता है और बोलने लगता है कि वो आतंकवादी नहीं है। उसके बाद मोहन उन दोनों को अपनी कहानी बताने लगता है। मोहन अपनी पत्नी (नीना कुलकर्णी) और बेटी के साथ खुशी खुशी जीवन बिताते रहता है। एक दिन उसकी बेटी नौकरी पाने के लिए इंटरव्यू देने जाती है, जहाँ उसके साथ बलात्कार होता है और उसे बहुत बुरी तरह से मारा जाता है और उसकी मौत हो जाती है। मोहन बिल्कुल असहाय रह जाता है और इंसाफ की तलाश में दर-दर भटकते रहता है, पर कुछ भी नहीं होता है। उसके बाद वो कानून अपने हाथों में लेने की सोचता है।

अजय और रिया उसकी बातों को सुन कर उसकी मदद करने का फैसला करते हैं। मोहन की बातों को रिकॉर्ड कर अजय वो टेप उसके बॉस, काका (सतीश शाह) को दे देता है। पर वो विरोधी पक्ष के मंत्री, मुशरन (गोविन्द नामदेव) के साथ हाथ मिला लेता है। वहीं अजय का बॉस और रिया का बॉस (दलीप ताहिल) भी एक दूसरे से मिल जाते हैं और वे सब मिल कर अजय और रिया से मिले टेप से अपना काम निकालने की कोशिश करते हैं।

अपने बॉस को टेप देने के बाद अजय को अपनी गलती का एहसास होता है कि उसका बॉस इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने की सोच रहा है। पहले तो वो उन सब पर गुस्सा होता है, पर बाद में वो टेप वापस हासिल करने का प्लान बनाता है। वो रिया और चोटी के साथ मिल कर टेप वापस हासिल कर लेता है। वहीं मोहन को पुलिस गिरफ्तार कर ले जाती है और उसे फांसी की सजा हो जाती है। मोहन को फांसी होने के लगभग घंटे भर पहले अजय उस टेप को प्रसारित करने में सफल हो जाता है और सारी जनता से इस नाइंसाफ़ी को रोकने का प्रयास करने बोलता है।

जनता की पूरी भीड़ अजय के साथ उस जगह पर आने लगती है, जिस जगह पर मोहन को फांसी होने वाली होती है। मंत्री और पुलिस वाले उस भीड़ को रोकने की कोशिश करते रहते हैं। पुलिस इंस्पेक्टर (विश्वजीत प्रधान) अजय को बुरी तरह से मारता है। वहीं एसीपी उन लोगों का साथ देने की सोचता है और पुलिस को हटने का आदेश दे देता है। अजय और उसके साथ आई भीड़ मोहन को बचाने में सफल रहती है। उसका फांसी रुक जाता है। अजय के पिता उससे कहते हैं कि उसके आदर्श उसे कोई भौतिक लाभ नहीं देते, पर उससे भी जरूरी कुछ दिये हैं। अजय को रिया सभी के सामने शादी की बात करती है और अजय मान जाता है। इसी के साथ कहानी समाप्त हो जाती है।

मुख्य कलाकार संपादित करें

संगीत संपादित करें

सभी गीत जावेद अख्तर द्वारा लिखित; सारा संगीत जतिन-ललित द्वारा रचित।

क्र॰शीर्षकगायकअवधि
1."फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी"उदित नारायण4:00
2."बन के तेरा जोगी"सोनू निगम, अलका याज्ञनिक4:43
3."आई एम द बेस्ट" (I)अभिजीत4:17
4."और क्या और क्या"अभिजीत, अलका याज्ञनिक5:03
5."कुछ तो बता अरे"अभिजीत, अलका याज्ञनिक4:32
6."आई एम द बेस्ट" (II)जसपिंदर नरूला4:18
7."तू ही देख माँ"शंकर महादेवन4:39
8."आओ ना आओ ना"जतिन पंडित1:53
कुल अवधि:33:25

नामांकन और पुरस्कार संपादित करें

प्राप्तकर्ता और नामांकित व्यक्ति पुरस्कार वितरण समारोह श्रेणी परिणाम
जॉनी लीवर फिल्मफेयर पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता पुरस्कार नामित

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें