ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका

ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका एक बीजीय सर्वसमिका है जो भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलविद ब्रह्मगुप्त द्वारा रचित ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त में आयी है। इसे निम्नलिखित रूप में लिखा जा सकता है-

उदाहरण के लिये (माना n=1),

यह सर्वसमिका सभी पूर्णांकों एवं सभी परिमेय संख्याओं के लिये सत्य है। ब्रह्मगुप्त ने इस सर्वसमिका को निम्नलिखित श्लोक में निबद्ध किया है-

मूलं द्विधा इष्टवर्गाद् गुणकगुणाद् इष्ट युत विहिनान च ।
आद्यवधो गुणकगुणः सह अन्त्यघातेन कृतं अन्त्यम् ॥६४॥
वज्रवधैक्यं प्रथमं प्रक्षेपः क्षेपबधतुल्यः
प्रक्षेपशोधकहृते मूले प्रक्षेपके रूपे॥ ६५॥

(अनुवाद : ‘From the square of an assumed number multiplied by the गुणक , add or subtract a desired quantity and obtain the root, and place them twice। The product of the first [pair of roots] multiplied by the गुणक increased by the product of the last [pair of roots] is the [new] greater root (अन्त्य-मूलम्)। The sum of the products of the cross-multiplication (वज्रवधैकम्) is the first [new] root (प्रथम-मूलम्). The [new] क्षेप is the product of similar additive or subtractive quantities. When the क्षेप is equal (तुल्य), the root [first or last] is to be divided by it to turn the [new] क्षेप into unity’)[1]

निम्नलिखित सर्वसमिका ब्रह्मगुप्त की सर्वसमिका का एक विशेष रूप है जिसे ब्रह्मगुप्त-फाबिनकी सर्वसमिका कहते हैं। यह सर्वसमिका डायोफैन्टस की 'अरिथमेटिका' नामक ग्रन्थ में है जो तीसरी शताब्दी की रचना है।

यह सर्वसमिका दो योगों का गुणनफल, जिनमें प्रत्येक गुणक स्वयं दो वर्गों का योग हो, को दो वर्गों के योग के रूप में अभिव्यक्त करती है।

ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका के अन्य रूप संपादित करें

ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका का विस्तार करके २, ४, ८, १६ आदि वर्गों के लिये सर्वसमिकाएँ निकाली जा सकतीं हैं।

  • ब्रह्मगुप्त-फिबोनाकी सर्वसमिका:[2] (x₁²+x₂²) · (y₁²+y₂²) = z₁²+z₂²
  • आयलर (Eulers) चतुःवर्ग सर्वसमिका:[3] (x₁²+x₂²+x₃²+x₄²) · (y₁²+y₂²+y₃²+y₄²) = z₁²+z₂²+z₃²+z₄²
  • डेगेन (Degens) अष्ट वर्ग सर्वसमिका:[4] (x₁²+x₂²+x₃²+…+x₈²) · (y₁²+y₂²+y₃²+…+y₈²) = z₁²+z₂²+z₃²+…+z₈²
  • फिस्तर (Pfisters) षोडष वर्ग सर्वसमिका:[5] (x₁²+x₂²+x₃²+…+x₁₆²) · (y₁²+y₂²+y₃²+…+y₁₆²) = (z₁²+z₂²+z₃²+…+z₁₆²)

फिस्तर ने 1967 में सिद्ध किया कि सिद्धान्ततः २ के सभी पूर्णांक घातों (2ⁿ) के लिये सर्वसमिकाएँ प्राप्त की जा सकतीं हैं।

उपयोग संपादित करें

ब्रह्मगुप्त ने उपरोक्त सर्वसमिका का उपयोग वर्ग-प्रकृति (पेल का समिकरण) हल करने के लिए किया, जो निम्नलिखित है- x2 − Ny2 = 1. Using the identity in the form

 

ब्रह्मगुप्त दो 'त्रिक' (triples) (x1y1k1) तथा (x2y2k2) निर्मित करते थे जो समीकरण x2 − Ny2 = k, के हल थे। इन दो त्रिकों से वे तीसरा त्रिक निर्मित करते थे-

 

इस प्रकार वे समीकरण x2 − Ny2 = 1 का एक हल से आरम्भ करते हुए अनन्त हल निकाल लेते थे। इस आधार पर कहा जा सकता है कि ब्रह्मगुप्त की इस विधि में गणितीय आगमन के बीज छिपे हैं।

भास्कर द्वितीय ने सन ११५० में वर्गप्रकृति (पेल समीकरण) का सामान्य हल बताया था जिसे चक्रवाल विधि कहते हैं। चक्रवाल विधि भी ब्रह्मगुप्त सर्वसमिका पर ही आधारित है।[6]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Indian Journal of History of Science,52.1 (2017) 1-16DOI:10.16943/ijhs/2017/v52i1/41294Some Features of the Solutions of कुट्टक and वर्गप्रकृति" (PDF). मूल (PDF) से 4 मई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 मई 2018.
  2. एरिक डब्ल्यू वेइसटीन, मैथवर्ल्ड पर Fibonacci Identity
  3. एरिक डब्ल्यू वेइसटीन, मैथवर्ल्ड पर Euler Four-Square Identity
  4. एरिक डब्ल्यू वेइसटीन, मैथवर्ल्ड पर Degen's Eight-Square Identity
  5. Tito Piezas III: Pfister's 16-Square Identity Archived 2016-09-17 at the वेबैक मशीन
  6. John Stillwell (2002), Mathematics and its history (2 संस्करण), Springer, पपृ॰ 72–76, आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-387-95336-6, मूल से 2 जनवरी 2014 को पुरालेखित, अभिगमन तिथि 4 मई 2018

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें