भरतपुर (Bharatpur) भारत के राजस्थान राज्य के भरतपुर ज़िले में स्थित एक नगर है। यह उस ज़िले का मुख्यालय भी है।[1][2]

भरतपुर
Bharatpur
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भरतपुर Bharatpur is located in राजस्थान
भरतपुर Bharatpur
भरतपुर
Bharatpur
राजस्थान में स्थिति
निर्देशांक: 27°13′N 77°29′E / 27.22°N 77.48°E / 27.22; 77.48निर्देशांक: 27°13′N 77°29′E / 27.22°N 77.48°E / 27.22; 77.48
देशभारत
प्रांतराजस्थान
जनसंख्या
 • कुल25,49,121
 • घनत्व503 किमी2 (1,300 वर्गमील)
भाषा
 • प्रचलित भाषाएमेवाती, ब्रजभाषा, हिन्दी
लोहागढ़ दुर्ग में किशोरी महल
लक्ष्मी विलास महल
भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान में साम्भर (हिरण)
लोहागढ़ दुर्ग
भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान में चीतल और बंदर
लोहागढ़ दुर्ग
यूरोप से आकर सर्दियाँ भरतपुर में व्यतीत करने वाला डैल्मेशियन पेलिकन

विवरण संपादित करें

भरतपुर राजस्थान का एक प्रमुख शहर होने के साथ-साथ देश का सबसे प्रसिद्ध पक्षी उद्यान भी है। 29 वर्ग कि॰मी॰ में फैला यह उद्यान पक्षी प्रेमियों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। विश्‍व धरोहर सूची में शामिल यह स्थान प्रवासी पक्षियों का भी बसेरा है। और यह अपने समय में जाटों का गढ़ हुआ करता था। यहाँ के मंदिर, महल व किले जाटों के कला कौशल की गवाही देते हैं। राष्ट्रीय उद्यान के अलावा भी देखने के लिए यहाँ अनेक जगह हैं

इसका नामकरण राम के भाई भरत के नाम पर किया गया है। लक्ष्मण इस राज परिवार के कुलदेव माने गये हैं। इसके पूर्व यह जगह सोगडिया जाट सरदार रुस्तम के अधिकार में था जिसको महाराजा सूरजमल ने जीता और 1733 में भरतपुर नगर की नींव डाली

भरतपुर राज्य संपादित करें

भरतपुर नाम से यह एक स्वतंत्र राज्य भी था जिसकी नींव महाराजा सूरजमल ने डाली।।महाराजा सूरजमल के समय भरतपुर राज्य की सीमा आगरा,अलवर,धौलपुर, मैनपुरी, हाथरस, अलीगढ़, इटावा, मेरठ, रोहतक, फर्रुखनगर, मेवात, रेवाड़ी,पलवल, गुरुग्राम (गुड़गाँव),भिवानी,चरखी दादरी तथा मथुरा तक के विस्तृत भू-भाग पर फैली हुई थी।

भरतपुर के महाराजाओं की सूची संपादित करें

भरतपुर वंश के पूर्वज सिनसिनवार गोत्र के थे,[3][4][5]

मुख्य आकर्षण संपादित करें

भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान संपादित करें

भरतपुर राष्ट्रीय उद्यान केवलादेव घना के नाम से भी जाना जाता है। केवलादेव नाम भगवान शिव को समर्पित मंदिर से लिया गया है जो इस उद्यान के बीच में स्थित है। घना नाम घने वनों की ओर संकेत करता है जो एक समय इस उद्यान को घेरे हुए था। यहाँ करीब ३७५ प्रजातियों के पक्षी पाये जाते हैं जिनमें यहाँ रहने वाले और प्रवासी पक्षी शामिल हैं। यहाँ भारत के अन्य भागों से तो पक्षी आते ही हैं साथ ही यूरोप, साइबेरिया, चीन, तिब्बत आदि जगहों से भी प्रवासी पक्षी आते हैं। पक्षियों के अलावा साम्भर, चीतल, नीलगाय आदि पशु भी यहाँ पाये जाते हैं।

गंगा महारानी मंदिर संपादित करें

यह मंदिर शहर का सबसे सुंदर मंदिर है। वास्तुकला की राजपूत, मुगल और दक्षिण भारतीय शैली का खूबसूरत मिश्रण गंगा महारानी मंदिर का निर्माण भरतपुर के शासक महाराजा बलवंत सिंह ने करवाया था। मंदिर की दीवारों और खम्भों पर की गयी बारीक और सुंदर नक्काशी दर्शनीय है। मंदिर को पूरा होने में 91 वर्ष समय लगा। यहाँ पूरे देश तथा विदेशों से हजारों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। केवल श्रद्धा की दृष्टि से ही नहीं बल्कि अपने अद्भुत वास्तुशिल्प के कारण भी यह मंदिर लोगों को आकर्षित करता है। देवी गंगा की मूर्ति के अलावा भरतपुर के इस मंदिर में मगरमच्छ की एक विशाल मूर्ति है जिन्हें देवी गंगा का वाहन भी माना जाता है। हर साल भक्त हरिद्वार से गंगाजल लाकर देवी के चरणों के पास रखे विशाल रजत पात्र में डालते हैं। माना जाता है कि जब देवी गंगा अपना दिव्य आशीर्वाद इस जल में डालती है तब यह जल भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में बाँट दिया जाता है।

बाँके बिहारी मंदिर संपादित करें

बाँके बिहारी मंदिर भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। माना जाता है कि यहाँ भगवान कृष्ण भक्तों की सभी आकांक्षाओं को पूरा करते हैं। भरतपुर का बाँके बिहारी मंदिर भारत के उन मंदिरों में से एक है जहाँ हमेशा सैकड़ों लोगों की भीड़ लगी रहती है। आरती से पहले भगवान की प्रतिमा को वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है। मुख्य कक्ष के बाहर बरामदे की दीवारों पर भगवान कृष्ण के बचपन को दर्शाते चित्र देखे जा सकते हैं। मंदिर की दीवारों और छतों पर अनेक देवी-देवताओं की सुंदर तस्वीरें बनायी गयी हैं।

लक्ष्मण मंदिर संपादित करें

लक्ष्मण मंदिर का निर्माण महाराजा बलवंत सिंह ने 1870 में करवाया था। उनके पिता महाराजा बलदेव सिंह श्री संत दास के सम्पर्क में आये और तब उन्होंने इस मंदिर की नींव रखी। श्री संत दास लक्ष्मण जी के भक्त थे और जीवनपर्यंत उनके प्रति समर्पित रहे। इस मंदिर की नींव रखने के बाद महाराजा बलदेव सिंह ने बलवंत सिंह को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। मंदिर को पूरा कराने का श्रेय महाराजा बलवंत सिंह को जाता है।

मंदिर के मुख्य गर्भगृह में लक्ष्मण जी और उर्मिला जी की प्रतिमाएँ स्थापित हैं, इनके अलावा राम, भरत, शत्रुघ्न तथा हनुमान जी की छोटी मूर्तियाँ भी यहाँ देखे जा सकते हैं। ये सभी प्रतिमाएँ अष्टधातु से बनी हैं। यह मंदिर पत्थरों पर की गयी खूबसूरत नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।

लोहागढ़ किला संपादित करें

महाराजा सूरजमल ने एक अभेद्य किले की परिकल्पना की थी, जिसके अन्तर्गत शर्त यह थी कि पैसा भी कम लगे और मजबूती में बेमिशाल हो। राजा साहब ने इस विषय पर मंत्रियों, दरबारियों तथा विद्वतजनों से गहन विचार-विमर्श किया, तत्कालीन युद्ध के साधनों एवम् उनकी मारक क्षमता का ध्यान रखते हुए किला बनाने का निर्णय लिया गया, जिसके फलस्वरूप किले के दोनों तरफ मजबूत दरवाजे जिनमें नुकीले लोहे की सलाखें लगायी गयी। उस समय तोपों तथा बारुद का प्रचलन अत्यधिक था, जिससे किलों की मजबूत से मजबूत दीवारों को आसानी से ढहाया जा सकता था। इसलिए पहले किले की चौड़ी-चौड़ी मजबूत पत्थर की ऊँची-ऊँची प्राचीरें बनायी गयी, अब इन पर तोपों के गोलों का असर नहीं हो इसके लिए इन दीवारों के चारों ओर सैकड़ों फुट चौड़ी कच्ची मिट्टी की दीवार बनायी गयी और नीचे सैकड़ों फुट गहरी और चौड़ी खाई बनाकर उसमें पानी भरा गया, जिससे दुश्मन के द्वारा तोपों के गोले दीवारों पर दागने के बाद वो मिट्टी में धँसकर दम तोड़ दे और अगर नीचे की ओर प्रहार करे तो पानी में शान्त हो जाए और पानी को पार कर सपाट दीवार पर चढ़ना तो मुश्किल ही नहीं असम्भव था। मुश्किल वक्त में किले के दरवाजों को बन्द करके सैनिक सिर्फ पक्की दीवारों के पीछे और दरवाजों पर मोर्चा लेकर पूरे किले को आसानी से अभेद्य बना लेते थे। जिस किले में लेशमात्र भी लोहा नहीं लगा और अपनी अभेद्यता के बल पर लोहगढ़ कहलाया। जिसने समय-समय पर दुश्मनों के दाँत खट्टे किये और अपना लोहा मनवाने में शत्रु को मजबूर किया। ऐसे थे भरतपुर के दूरदर्शी राजा। लोहागढ़ किले का निर्माण 18वीं शताब्दी के आरम्भ में जाट शासक महाराजा सूरजमल ने करवाया था। यह किला भरतपुर के जाट शासकों की हिम्मत और शौर्य का प्रतीक है। अपनी सुरक्षा प्रणाली के कारण यह किला लोहागढ़ के नाम से जाना गया। किले के चारों ओर गहरी खाई हैं जो इसे सुरक्षा प्रदान करती है। यद्यपि लोहागढ़ किला इस क्षेत्र के अन्य किलों के समान वैभवशाली नहीं है लेकिन इसकी ताकत और भव्यता अद्भुत है। किले के अन्दर महत्त्वपूर्ण स्थान हैं— किशोरी महल, महल खास, मोती महल और कोठी खास। सूरजमल ने मुगलों और अंग्रेजों पर अपनी जीत की याद में किले के अन्दर जवाहर बुर्ज और फतेह बुर्ज बनवाये। यहाँ अष्टधातु से निर्मित एक द्वार भी है जिसमें हाथियों के विशाल चित्र बने हुए हैं।

आस-पास के दर्शनीय स्थल संपादित करें

डीग के महल संपादित करें

भरतपुर से 34 कि॰मी॰ उत्तर में डीग नामक बागों का खूबसूरत नगर है। शहर के मुख्य आकर्षणों में मनमोहक उद्यान, सुन्दर फव्वारा और भव्य जलमहल शामिल है। यह शहर बड़ी संख्या में पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है। डीग के राजमहलों में निर्मित गोपाल भवन का निर्माण सन् 1780 में किया गया था। खूबसूरत बागीचों से सजे इस भवन से गोपाल सागर का नज़ारा देखा जा सकता है। भवन के दोनों ओर दो छोटी इमारतें हैं, जिन्हें सावन भवन और भादो भवन के नाम से पुकारा जाता है।

डीग का किला संपादित करें

भरतपुर के आसपास घूमना तब तक अधूरा है जब तक डीग किला नहीं देख लिया जाता। राजा सूरजमल ने इस किले का निर्माण कुछ ऊँचाई पर करवाया था। किले का मुख्य आकर्षण यहाँ की घड़ी मिनार है, जहाँ से न केवल पूरे महल को देखा जा सकता है बल्कि नीचे शहरों का नजारा भी लिया जा सकता है। इसके ऊपर एक बंदूक रखी है जो आगरा किले से यहाँ लायी गयी थी। खाई, ऊँची दीवारों और द्वारों से घिरे इस किले के अवशेष मात्र ही देखे जा सकते हैं।

पक्षी विहार एवं केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान संपादित करें

एशिया में पक्षियों के समूह प्रजातियों वाला सर्वश्रेष्ठ उद्यान के लिए प्रसिद्ध है। भरतपुर की गर्म जलवायु में सर्दियाँ बिताने प्रत्येक वर्ष साइबेरिया के दुर्लभ सारस यहाँ आते हैं। एक समय में भरतपुर के राजकुँवरों की शाही शिकारगाह रहा यह उद्यान विश्व के उत्तम पक्षी विहारों में से एक है जिसमें पानी वाले पक्षियों की चार सौ से अधिक प्रजातियों की भरमार है। गर्म तापमान में सर्दियाँ बिताने अफगानिस्तान, मध्य एशिया, तिब्बत से प्रवासी चिड़ियों की मोहक किस्में तथा आर्कटिक से साइबेरियन, साइबेरिया से भूरे पैरों वाले हंस और चीन से धारीदार सिर वाले हंस जुलाई-अगस्त में आते हैं और अक्टूबर-नवम्बर तक उनका प्रवास काल रहता है। उद्यान के चारों ओर जलकौओं, स्पूनबिल, लकलक बगुलों, जलसिंह इबिस और भूरे बगूलों का समूह देखा जा सकता है।

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "Lonely Planet Rajasthan, Delhi & Agra," Michael Benanav, Abigail Blasi, Lindsay Brown, Lonely Planet, 2017, ISBN 9781787012332
  2. "Berlitz Pocket Guide Rajasthan," Insight Guides, Apa Publications (UK) Limited, 2019, ISBN 9781785731990
  3. Pande, Ram (1970). Bharatpur up to 1826: A Social and Political History of the Jats (1st संस्करण). Rama Publishing House. पृ॰ 29. OCLC 610185303.
  4. "tonk3". www.royalark.net. अभिगमन तिथि 2021-02-09.
  5. Social and Political History of the Jats, Bharatpur Upto 1826 3.Shodhak. pp. 28–29.