भांग (वानस्पतिक नामः Cannabis indica) एक प्रकार का पौधा है जिसकी पत्तियों को पीस कर भांग तैयार की जाती है। उत्तर भारत में इसका प्रयोग बहुतायत से स्वास्थ्य, हल्के नशे तथा दवाओं के लिए किया जाता है।[1] भारतवर्ष में भांग के अपने आप पैदा हुए पौधे सभी जगह पाये जाते हैं। भांग विशेषकर उत्तर प्रदेश, बिहार एवं पश्चिम बंगाल में प्रचुरता से पाया जाता है। भांग के पौधे 3-8 फुट ऊंचे होते हैं। इसके पत्ते एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं। भांग के ऊपर की पत्तियां 1-3 खंडों से युक्त तथा निचली पत्तियां 3-8 खंडों से युक्त होती हैं। निचली पत्तियों में इसके पत्रवृन्त लम्बे होते हैं। भांग को भगवान शंकर पर भी चढ़ाया जाता है।

भांग का पौधा और उसके विभिन्न भाग

भांग के नर पौधे के पत्तों को सुखाकर भांग तैयार की जाती है। भांग के मादा पौधों की रालीय पुष्प मंजरियों को सुखाकर गांजा तैयार किया जाता है। भांग की शाखाओं और पत्तों पर जमे राल के समान पदार्थ को चरस कहते हैं। भांग की खेती प्राचीन समय में 'पणि' कहे जानेवाले लोगों द्वारा की जाती थी। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने कुमाऊँ में शासन स्थापित होने से पहले ही भांग के व्यवसाय को अपने हाथ में ले लिया था तथा काशीपुर के नजदीक डिपो की स्थापना कर ली थी। दानपुर, दसोली तथा गंगोली की कुछ जातियाँ भांग के रेशे से कुथले और कम्बल बनाती थीं। भांग के पौधे का घर गढ़वाल में चांदपुर कहा जा सकता है।

इसके पौधे की छाल से रस्सियाँ बनती हैं। डंठल कहीं-कहीं मशाल का काम देता है। पर्वतीय क्षेत्र में भांग प्रचुरता से होती है, खाली पड़ी जमीन पर भांग के पौधे स्वभाविक रूप से पैदा हो जाते हैं। लेकिन उनके बीज खाने के उपयोग में नहीं आते हैं। टनकपुर, रामनगर, पिथौरागढ़, हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोडा़, रानीखेत,बागेश्वर, गंगोलीहाट में बरसात के बाद भांग के पौधे सर्वत्र देखे जा सकते हैं। नम जगह भांग के लिए बहुत अनुकूल रहती है। पहाड़ की लोक कला में भांग से बनाए गए कपड़ों की कला बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन मशीनों द्वारा बुने गये बोरे, चटाई इत्यादि की पहुँच घर-घर में हो जाने तथा भांग की खेती पर प्रतिबन्ध के कारण इस लोक कला के समाप्त हो जाने का भय है।

होली के अवसर पर मिठाई और ठंडाई के साथ इसका प्रयोग करने की परंपरा है।[2] भांग का इस्तेमाल लंबे समय से लोग दर्द निवारक के रूप में करते रहे हैं। कई देशों में इसे दवा के रूप में भी उपलब्ध कराया जाता है।[3] 1. 1. एक हेक्टर भांग 25 हेक्टर जंगल जितना ऑक्सीजन छोड़ती है। भांग 4 महीने में और पेड़ 20-50 साल में । 2. 2. एक हेक्टेयर भांग से 4 हेक्टेयर जंगल उतने ही कागज मिलते हैं। 3. पेड़ 3 बार रीसाइक्लेबल पेपर बनाते हैं जबकि भांग 8 बार रीसाइक्लेबल पेपर बनाता है। हेम्प पेपर सबसे अच्छा और सबसे टिकाऊ है। 5. भांग के पौधे एक विकिरण जाल हैं। भांग के पौधे हवा को शुद्ध करते हैं। Vo)) LTE2 6. दुनिया में कहीं भी भांग पैदा हो सकती है, इसे पानी की बहुत जरूरत है। इसके अलावा, क्योंकि यह परजीवी से खुद को बचा सकता है, इसे कीटनाशक की आवश्यकता नहीं है। 7. हेम्प टेक्सटाइल अपनी खुद की प्रॉपर्टीज पर फ्लैक्स उत्पादों का प्रदर्शन करते हैं। 48% 8. भांग किनारे, रस्सियों, बैग, जूते, टोपी के उत्पादन के लिए एक आदर्श पौधा है... 9. बुल्गारिया में भांग बैन है। लेकिन तकनीकी भांग में एक दवा नहीं है और इसकी खेती स्वतंत्र रूप से की जा सकती है। 10. भांग के बीज का प्रोटीन वैल्यू बहुत ज्यादा है और उसमें निहित दो फैटी एसिड प्रकृति में कहीं और नहीं है। 11. भांग का उत्पादन सोया से बहुत सस्ता है। 12. जिन जानवरों को भांग खाते हैं उन्हें हार्मोन सप्लीमेंट की जरूरत नहीं है। 13. सभी प्लास्टिक उत्पादों को भांग के साथ बनाया जा सकता है, भांग प्लास्टिक पर्यावरण के अनुकूल और पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है। 14. इमारतों के थर्मल इन्सुलेशन के लिए भी भांग का उपयोग किया जा सकता है, यह टिकाऊ, सस्ता और लचीला है। 15. भांग साबुन और भांग प्रसाधन सामग्री पानी को प्रदूषित नहीं करते, इसलिए वे पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल हैं। युगो युगांतर से भगवान शिव के प्रसाद के रूप में भांग का प्रयोग संपूर्ण विश्व में होता है।

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सन्दर्भ संपादित करें

  1. "होली में भांग से बनी शर्बत ठंडई". भास्कर. मूल से 24 मई 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १३ मई २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  2. "भंगोली शिल्प". टीडीआईएल. मूल से 25 नवंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १३ मई २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  3. "'भांग दर्द बढ़ा भी सकती है'". बीबीसी. मूल से 1 मई 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि १३ मई २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

 
भांग (कैनाबलिस इण्डिका), पुष्पित हो रही है।