भारतीय धातुकर्म का इतिहास

भारत में धातुकर्म का इतिहास प्रागैतिहासिक काल (दूसरी तीसरी सहस्राब्दी ईसापूर्व) से आरम्भ होकर आधुनिक काल तक जारी है।

समुद्रगुप्त की स्वर्ण मुद्रा (350—375 ई. जिस पर गरुड़ स्तम्भ चित्रित है (ब्रिटिश संग्रहालय)
दिल्ली का लौह स्तम्भ
जयसिंह द्वितीय द्वारा निर्मित पहियों पर चलने वाली विश्व की सबसे बड़ी तोप (१७२०)

प्राचीन भारत में लोहे का प्रयोग संपादित करें

प्राचीन भारत में लोहा इस्‍पात का पूरा उल्‍लेख है। कुछ प्राचीन स्‍मारक जैसे नई दिल्‍ली का प्रसिद्ध लौह स्तम्भ या कोणार्क में सूर्य मंदिर में प्रयोग किया गया ठोस बीम में पर्याप्‍त साक्ष्‍य मिलता है जो प्राचीन भारतीय धातु विज्ञान का प्रौद्योगिकीय उत्‍कर्ष दिखाता है।

भारत में लोहे का प्रयोग प्राचीन युग की ओर ले जाता है। वैदिक साहित्यिक स्रोत जैसे ऋगवेद, अथर्ववेद, पुराण, महाकाव्य में शान्ति और युद्ध में लोहे के गारे में उल्‍लेख किया गया है। एक अध्‍ययन के अनुसार लोहा भारत में आदिकालीन लघु सुविधाओं में 3000 वर्षों से अधिक समय से निर्मित होता रहा है।

भारतीय इतिहास में धातुकर्म के क्षेत्र में कुछ मील के पत्‍थर संपादित करें

 
१७वीं-१८वीं शताब्दी की भारतीय कटार और उसकी म्यान।
  • भारत में धातुकर्म आज से २००० वर्ष पहले आरम्भ हो चुका था। ऋग्वेद में 'अयस्' (धातु) शब्द आया है।
  • २५००-९०० ईसा पूर्व - सिन्धु घाटी की सभ्यता के एक स्थल (बालकोट) से खुदाई में एक भट्ठी मिली है जिसमें सम्भवतः सिरामिक वस्तुओं का निर्माण किया जाता था।
  • ३५० इसापूर्व - भारत में इस्पात का विकास ३५० ईसा पूर्व हुआ था। इसे आजकल वुट्ज इस्पात कहते हैं। मध्यकाल में इसी से 'दमिश्क की तलवार' बनती थी। तमिलनाडु के कोडुमनाल में खुदाई में इस्पात निर्माण की भट्ठियाँ और अन्य साधन प्राप्त हुए हैं।
  • 326 ईसा पूर्व - पोरस ने भारतीय लोहे का 30 पौण्ड सिकन्दर को प्रदान किया।
  • 300 ईसा पूर्व - अर्थशास्‍त्र में कौटिल्‍य (चाणक्‍य) ने खनिज, जिसमें लोह अयस्‍क सम्मिलित है, की जानकारी दी और धातुओं को निकालने के कौशल का उल्‍लेख किया है।
  • 320 ईसवी - इंदौर के निकट मालवा के प्राचीन राजधानी धार में एक 16 मीटर लौह स्‍तम्‍भ स्‍थापित किया गया था।
  • 380 ईसवी - दिल्‍ली के निकट चंद्रगुप्‍त की स्‍मृति में लोह स्‍तम्‍भ स्‍थापित किया गया। इस पिटवा लोहा का ठोस स्‍तम्‍भ लगभग 8 मीटर लम्‍बा और व्यास 0.32 से 0.46 मीटर है।
  • 13 वीं सदी - कोणार्क सूर्य मंदिर के निर्माण में ठोस लोहा बीमों का इस्‍तेमाल हुआ है।
  • 16वीं सदी - मध्‍य पूर्व और यूरोप में भारतीय इस्पात जो वुट्ज इस्पात या 'वुट्ज ऑफ वाटरी अपिअरन्‍स', के नाम से जाना जाता है का इस्‍तेमाल हुआ है।
  • 17 वीं सदी - तोपों, अग्निशस्‍त्र और तलवार एवं कृषीय उपकरण का विनिर्माण। तेन्‍डुलकमा एम.पी.के साउगोर में लोहा से 1830 में बीज के दपर ससपेन्‍शन ब्रिज बनाया गया। मद्रास प्रेसिडेन्‍सी के पोरटो नोवा में जे .एम हीथ ने आयरन स्‍मेल्‍टर बनाया।
  • 1870 - कुल्‍टी में बंगाल आयरन वर्क्‍स स्‍थापित किया गया।
  • 1907 - टाटा आयरन एण्‍ड स्‍टील कम्‍पनी की स्थापना
  • 1953 - राउरकेला में स्‍टील प्‍लांट का ढाँचा बनाने के लिए भारत सरकार ग्रुप डेमग, फेडरल रिपब्लिक ऑफ जर्मनी के साथ समझौता किया।
  • 1954 - राउरकेला, दुर्गापुर और भिलाई में हिंदुस्‍तान स्‍टील लिमिटेड ने तीन एकीकृत स्‍टील प्‍लांन्‍ट का निर्माण और प्रबंध किया।

इन्हें भी देखें संपादित करें

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