व्यंग्यकार भूपेंद्र नाथ कौशिक "फ़िक्र" (७ जुलाई, १९२५-२७ अक्टूबर,२००७) आधुनिक काल के सशक्त व्यंग्यकार थे, उनकी कविता में बाज़ारवाद और कोरे हुल्लड़ के खिलाफ रोष बहुलता से मिलता है। हिमांचल प्रदेश के खुबसूरत इलाके "नाहन" में जन्मे फ़िक्र साहब के पिता का नाम पंडित अमरनाथ था और माता का नाम लीलावती था, पिताजी संगीत और अरबी भाषा की प्रकांड विद्वान थे। आध्यात्म के संस्कार फ़िक्र को बचपन में शैख़ सादी की फारसी हिकायत "गुलिस्तान" से मिले। प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत और फारसी में हुयी। उच्च शिक्षा के लिए फ़िक्र जी अम्बाला छावनी आ गए। और यहाँ के राजकीय कॉलेज से अरबी, फारसी, उर्दू और अंग्रेजी की शिक्षा ली। नौकरी की तलाश में जबलपुर आना पड़ा, यहाँ आकर, बी. एस. एन. एल. में कार्यरत हो गए। कार्य करते करते ही इन्होंने व्यंग्य लिखना शुरू कर दिया, १९८६ में इन्हें सेवानिवृत्ति मिल गई और इन्होंने अपनी प्रथम कृति "कोलतार मैं अक्स" का प्रकाशन कराया। बनारस और जबलपुर आकाशवाणी से इनकी कवितायें आती रहीं, पहल, सारिका, कर्मवीर और अन्य हिंदी, उर्दू पत्र पत्रिकाओं में इनकी कवितायें प्रमुखता से प्रकाशित होती रहीं। मंच और मुशायरों आदि की फटकेबाजी से दूर रहने के कारण इनका प्रचार प्रसार नहीं हुआ, परन्तु इनकी रचनाओं ने एक बहुत बड़े वर्ग को प्रभावित किया, मध्यप्रदेश में ज्ञानरंजन, सेठ गोविन्ददास, मुक्तिबोध, हरिशंकर परसाई, दुष्यंत कुमार, बशीर बद्र आदि इनके समकालीन मित्र रचनाकार थे। २००५ में इन्हें साहित्य मनीषी अलंकरण मिला। स्वास्थ्य के चलते २७ अक्टूबर २००७ जबलपुर में इनका निधन हो गया।

भूपेंद्र नाथ कौशिक "फ़िक्र"
भूपेंद्र नाथ कौशिक "फ़िक्र"
जन्म७ जुलाई, १९२५
नाहन (हिमाचल प्रदेश),भारत
मौत२७ अक्टूबर,२००७
पेशानौकरी, लेखन
भाषाहिन्दी,उर्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
कालआधुनिक काल
विधागद्य और पद्य, व्यंग्य
विषयगीत, नवगीत, कविता, कहानी, लेख
उल्लेखनीय कामs"कोलतार मैं अक्स" कविता संग्रह

कार्यक्षेत्र संपादित करें

भूपेंद्र कौशिक "फ़िक्र" अरबी, उर्दू, पंजाबी, फारसी, हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, तमिल, कन्नड़, प्राकृत, पाली आदि के प्रकांड ज्ञाता थे। इनकी कविता मुख्यतः नवचेतना और प्रगति का प्रतीक मानी जाती है। सरल और चुटीली भाषा उनके व्यंग्य का आधार है, दार्शनिक दृष्टिकोण में खलील जिब्रान से प्रभावित थे, धर्म, दर्शन, अरबी व्याकरण, संगीत, ज्योतिष पर उनकी गहरी पैठ थी। काफी वक़्त सरस्वती सरन कैफ, वाहिद काज़मी, फिराक गोरखपुरी के साथ काम किया। फ़िक्र साहित्यिक गुटबाजी से हमेशा ही दूर रहते थे। साहित्य के अलावा "फ़िक्र" अपने गृहस्थ जीवन को भी संतुष्ट करते थे तथा परिवार के लिए भी वे संपूर्ण आदर्श थे। उर्दू साहित्य में भी उन्होंने ऐसे ऐसे कवियों पर शोध किया जो आज तक भी शायद प्रकाश में न आये हों। साहित्य की हाल व्यवस्था देखते हुए उन्होंने कुछ वक़्त तक आलोचना का भी काम किया। उनके अनुसार, "साहित्य सजगता है, अपनी सजगता इतनी बुरी नहीं की घृणा की जाये।" उर्दू की कई कविताओं और संग्रहों पर उन्होंने टिप्पणियाँ लिखीं।

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