मानचित्र निर्माण की विद्या अति प्राचीन है। मार्शल द्वीपवासी ताड़ के डंठलों एवं कौड़िओं की सहायता से समुद्र संतरण के मार्गों तथा द्वीपों को दिखाने के लिए चार्ट तैयार करते थे। एस्किमो, अमरीका के रेड इंडियन आदि भी नदियों, वनों, मंदिरों तथा बस्तियों, शिकार के रास्तों आदि का उल्लेख भौगोलिक शुद्धता के साथ रेखाचित्र पर कर लेते थे। इसी प्रकार एशिया तथा अफ्रीका के आदिवासियों तथा अन्य जातियों में भी मानचित्र बनाने के अनेक उदाहरण मिलते हैं।

प्राचीन भारतीय मानचित्र कला संपादित करें

अभी प्राचीन भारत की मानचित्र कला तथा संबंधित भौगोलिक ज्ञान के विषय में शोध कार्य नहीं हुआ है, लेकिन अन्य विषयों के शोध कार्यों से संबंधित तथ्यों से यह स्पष्ट हो जाता है कि प्राचीन भारतीयों ने मानचित्र कला में पर्याप्त उन्नति की थी। परिलेखन ज्ञान, प्रक्षेप, सर्वेक्षण, शुल्व सूत्र तथा तत्संबंधी विविध प्रकार के यंत्रों के निर्माण एवं ज्ञान का आभास प्राचीन पुस्तकों में मिलता है। यह कला रोमनों से बहुत पहले ऋग्वेद (4,000 ई0 पू0 से 1,500 ई0 पू0), बौधायन (800 ई0 पूर्व), आपस्तंब एवं कात्यायन के काल में उन्नत अवस्था में थी।

अन्य प्राचीन देशों में मानचित्र कला संपादित करें

भारतीयों के अतिरिक्त अन्य प्राचीन संस्कृतिवाले देशों में भी मानचित्र कला का ज्ञान था। बेबिलोनिया से प्राप्त एक मृत्तिका पट्टिका पर अंकित पर्वतसंकुल घाटी का चित्र 2,300 ई0 पू0 का बताया जाता है। लगभग उसी समय मिस्त्र निवासियों को तथा बाद में फारस तथा फिनीशिया निवासियों को इस कला का ज्ञान हो चुका था। तीसरी सदी ई0 पू0 में यूनानी मानचित्रों पर अक्षांश, देशांतर तथा प्रक्षेपश् आदि खींचते थे। रोम निवासियों ने युद्ध तथा प्रशासनिक कार्यों के लिये सर्वेक्षण द्वारा विभिन्न ज्ञात देशों, पर्वतों, मैदानों, घाटियों, बंदरगाहों तथा राजमार्गों के मानचित्र तैयार किए। रोमनों ने मानचित्रों के व्यावहारिक पक्ष पर अधिक बल दिया, जबकि यूनानियों के मानचित्रों में वैज्ञानिक पक्ष को अधिक महत्व दिया जाता था।

ऐलेग्जैंड्रिया (मिस्त्र) निवासी क्लॉडियस टॉलिमी द्वारा निर्मित 150 ई0 के लगभग का, ज्ञात संसार का, मानचित्र सुविख्यात है। उनकी आठ जिल्दोंवाली पुस्तक ज्योग्राफिया में तत्कालीन ज्ञात संसार के 32 भूभागों तथा क्षेत्रों का समावेश हुआ है। 1410 में ई0 में टॉलिमी की पुस्तक का अनुवाद करके मानचित्रावली का रूप दिया गया। इस काल में मानचित्र कला का पुनर्जन्म माना जाता है। बाद में 16वीं सदी में उसमें नई दुनिया (अमरीका) तथा अफ्रीका के दक्षिण से होते हुए पूर्व एशिया के समुद्री भागों का समावेश किया गया। मानचित्र कला में अरब विद्वानों का महत्वपूर्ण वैज्ञानिक योगदान है। दसवीं सदी में उन्होंने सर्वप्रथम स्कूल ऐटलस बनाया। अरब भूगोलवेत्ता इद्रिशी के संसार के मानचित्र (1154 ई0) में विविध तथ्यों का समावेश है।

आधुनिक मानचित्र कला का विकास संपादित करें

 
digital map of the world in hemispheres by thomas kitchin" The World From the Best Authorities " engraved by Thomas Kitchin, published in Guthrie's New Geographical Grammar, 1777.
 
भारत : मेयर्स विश्वकोश संस्करण (1885-1890)

14वीं एवं 15वीं सदी में यूरोपीय सामुद्रिक नाविक चार्ट का बहुत उपयोग करते थे। समुद्रतटीय प्रदेशों, बंदरगाहों, बस्तियों आदि का उसमें आलेख होता था। बहुधा ये मानचित्र भेड़ की खाल पर बनाए जाते थे। कोलंबस स्वयं मानचित्र निर्माता था, यद्यपि उसके स्वयं बनाए मानचित्र उपलब्ध नहीं है। 1500 ई0 के लगभग बनाया हुआ उसके साथी ह्वान डे ला कोसा (Juon ds la Cosa) का मानचित्र मैड्रिड (स्पेन) के सामुद्रिक संग्रहालय में सुरक्षित है। संसारव्यापी समुद्रसंतरण के सिलसिले में नए रास्ते एवं अन्य खोजों का समावेश तीव्रता से बढ़ता गया।

16वीं एवं 17वीं सदी में डच लोग (हॉलैंड निवासी) यूरोप में सर्वश्रेष्ठ मानचित्रकार थे। मर्केटर ने, जो डच मानचित्र परिलेखन का जन्मदाता माना जाता है, अपना सुप्रसिद्ध मर्केटर मानचित्र प्रक्षेप (Mercator's map projection) बनाया (देखें मर्केटर प्रक्षेप) इंग्लैंड निवासी चार्ल्स सेक्स्टन को इंग्लैंड के मानचित्र कला की परंपरा का पिता माना जाता है। उन्होंने बहुत से उच्च कोटि के मानचित्र बनाए। 17वीं सदी के अंत तक सर्वेक्षण के विभिन्न यंत्र, जैसे प्लेनटेबुल, सेक्स्टैंट, थियोडोलाइट (Theodolite) आदि का प्रयोग अच्छी तरह होने लग गया था, जिससे प्राप्त आँकडों (data) से मानचित्र निर्माण की प्रचुर सामग्री प्राप्त होने लगी।

त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण और देशांतरों की शुद्ध माप के 18वीं सदी में संभव हो जाने पर मानचित्रों का शुद्धिकरण एवं सेशोधन युग प्रारंभ हुआ। पहले फ्रेंच लोग इसमें अगुआ थे। सी0 एफ0 कैसिनी (C.F. Cassini) तथा उसके पुत्र ने फ्रांस में विश्व का प्रथम राष्ट्रीय सर्वेक्षण प्रारंभ किया। बाद में इंग्लैंड की सैनिक एवं राजनीतिक शक्ति बढ़ी और लंदन मनचित्र निर्माण एवं छापने में अग्रणी हो गया। 1801 ई0 में सर्वप्रथम 1 इंच =1 मील का मानचित्र वहाँ तैयार किया गया। बाद में स्पेन, जर्मनी, स्विट्जरलैंड आदि अन्य देशों में भी राष्ट्रीय सर्वेक्षण प्रारंभ किए गए। 19वीं तथा 20वीं सदी में मानचित्र विज्ञान की अत्यधिक प्रगति हुई है। नई नई वैज्ञानिक पद्धतियों के विकास से मानचित्र तैयार किए गए है। फ्रांस, संयुक्त राज्य (अमरीका) एवं सोवियत रूस ने राष्ट्रीय ऐटलस निर्माण की पद्धति प्रारंभ की, जिसमें राष्ट्र के बारे में शोधपूर्ण संसाधन तथ्यों का आलेख रहता है। वायुयान द्वारा भूभागों की फोटो लेने की पद्धति ने पिछले दशकों, विशेषकर द्वितीय विश्वयुद्ध तथा इसके उत्तरकाल में, मानचित्र कला की प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान किया है।

भारत में भी मानचित्र कला की प्रगति के दो महत्वपूर्ण कार्य प्रारंभ किए गए हैं: राष्ट्रीय ऐटलस का निर्माण तथा वायुयान द्वारा भू-सर्वेक्षण। अब तक भूगोलविदों के संरक्षण में राष्ट्रीय ऐटलस योजना ने हिंदी तथा अंग्रेजी में राष्ट्रीय ऐटलस का संस्करण प्रकाशित किया है। जनसंख्या वितरण के कुछ प्रत्रक भी प्रकाशित हो गए हैं।

इन्हें भी देखें संपादित करें