मानव ( 750 ईसा पूर्व – 690 ईसा पूर्व ) एक शुल्बसूत्र के रचयिता हैं जिसे 'मानव शुल्बसूत्र' कहते हैं। बौधायन द्वारा रचित शुल्बसूत्र के बाद मानव का शुल्बसूत्र सबसे पुराना है।

अन्य शुल्बसूत्रों की भांति मानवशुल्बसूत्र में भी वर्ग के क्षेत्रफल के बराबर क्षेत्रफल वाले वृत्त की रचना करना, वृत्त के क्षेत्रफल के बराबर क्षेत्रफल वाले वर्ग की रचना करना, आदि वर्णित है। अतः इससे π का लगभग मान निकाला जा सकता है। इसमें यज्ञवेदियों के निर्माण के अनेक विधियाँ दी गयीं हैं जिनसे π के अलग-अलग मान प्राप्त किए जा सकते हैं। इन मानों में सबसे परिशुद्ध मान (25/8 = 3.125) है जिसे आर सी गुप्ता ने श्लोक संख्या 11, 14 और 11, 15.3 का अत्यन्त जटिल विश्लेषण करके प्राप्त किया है।

इसमें तथाकथित पाइथागोरस प्रमेय इस प्रकार दिया है-

आयाममायामगुणं विस्तारं विस्तरेण तु
समस्य वर्गमूलं यत्तत्कर्णं तद्विदो विदुः ॥१०॥

(समकोण त्रिभुज की लम्बाई को लम्बाई से गुणा करके, चौड़ाई को चौड़ाई से गुणा करके, इन दोनों के योग का वर्गमूल उसके कर्ण के बराबर होगा।)

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