मेरा नाम जोकर

1970 की राज कपूर की फ़िल्म

मेरा नाम जोकर 1970 में बनी हिन्दी भाषा की नाट्य फिल्म है। इसका निर्देशन और निर्माण राज कपूर ने किया और लेखन का कार्य ख़्वाजा अहमद अब्बास द्वारा किया गया। इसमें राज कपूर नामस्रोत किरदार में सिमी गरेवाल, सेनिया रियाबिनकिना और पद्मिनी के साथ हैं। ये उनके बेटे ऋषि कपूर की पहली फिल्म भी थी।

मेरा नाम जोकर

मेरा नाम जोकर का पोस्टर
निर्देशक राज कपूर
लेखक ख़्वाजा अहमद अब्बास
निर्माता राज कपूर
अभिनेता राज कपूर,
सिमी गरेवाल,
मनोज कुमार,
ऋषि कपूर,
धर्मेन्द्र
संगीतकार शंकर-जयकिशन
प्रदर्शन तिथि
1970
लम्बाई
244 मिनट
देश भारत
भाषा हिन्दी

ये फिल्म भारतीय सिनेमा की सबसे लंबी फिल्मों में से एक है। संगम के ब्लॉकबस्टर बन जाने के बाद, मेरा नाम जोकर के जारी होने की बहुत प्रतीक्षा थी, क्योंकि ये छः साल से निर्माणाधीन थी और आंशिक रूप से राज कपूर के स्वयं के जीवन पर आधारित थी। फिल्म को आंशिक रूप से सोवियत अभिनेताओं की भागीदारी के साथ बनाया गया था और कुछेक हिस्सों को मॉस्को में फिल्माया गया। फिल्म का संगीत, जो अभी भी बहुत लोकप्रिय है, शंकर-जयकिशन द्वारा तैयार किया गया था। इसके लिए उन्हें नौवां फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।

संक्षेप संपादित करें

ये कहानी राजू नाम के एक जोकर की है, जिसे सर्कस का सबसे अच्छा जोकर समझा जाता है। राजू के पिता की मौत सर्कस में एक करतब दिखाते समय होती है, इस कारण राजू की माँ उसे कभी भी सर्कस में काम नहीं करने देती है। राजू (ऋषि कपूर) को बचपन में ही अपनी शिक्षिका, मेरी (सिमी गरेवाल) से प्यार हो जाता है। पर वो उससे काफी बड़ी रहती है और उसकी शादी हो जाती है। इस कारण उसका दिल टूट जाता है पर उसे ये भी एहसास होता है कि वो पूरी दुनिया को हंसाने के लिए बना है।

बड़े होने के बाद राजू (राज कपूर) को जेमिनी सर्कस में काम मिल जाता है। वो सर्कस महेन्द्र सिंह (धर्मेन्द्र) का होता है, जो राजू के क्षमता को अच्छी तरह जानते रहता है और उसे काम पर रख लेता है। सर्कस में रूस से कलाकारों का एक समूह आता है, उनमें से एक लड़की, मरीना (सोनिया रियाबिनकिना) से राजू को प्यार हो जाता है। राजू को लगते रहता है कि वे दोनों साथ रहेंगे, पर सर्कस के खत्म हो जाने के बाद मरीना वापस रूस चले जाती है, जिससे राजू का दिल फिर टूट जाता है। इसी दौरान सर्कस में राजू की माँ भी राजू के करतब देखते रहती है और उसे अपने पति के मौत याद आ जाती है, उसी तरह के करतब अपने बेटे को करते देख उसकी मौत हो जाती है।

अब राजू सर्कस छोड़ देता है और बिना किसी लक्ष्य के इधर उधर घूमते रहता है। उसकी मुलाक़ात मीनू (पद्मिनी) से होती है, जो अनाथ लड़की है और एक प्रसिद्ध अभिनेत्री बनना चाहते रहती है। वे दोनों मिल कर छोटा सा सर्कस दिखाने लगते हैं और बाद में थियेटर में काम करने लगते हैं। वे दोनों काफी सफल हो जाते हैं और मीनू को फिल्म में काम करने का मौका भी मिल जाता है। वो अपने सपने को पूरा करने के लिए उसे छोड़ कर फिल्म में काम करने का फैसला करती है। इस तरह से राजू का तीसरी बार दिल टूट जाता है।

फिल्म के अंत में वो महेन्द्र से किए वादे के अनुसार अपना आखिरी करतब करता है। वो इसे दिखाने के लिए उन तीन लड़कियों को भी बुलाता है, जिससे उसने कभी प्यार किया था। वो दर्शकों को विश्वास दिलाता है कि वो फिर से आएगा और पहले से भी ज्यादा हँसाएगा।

मुख्य कलाकार संपादित करें

संगीत संपादित करें

सभी शंकर-जयकिशन द्वारा संगीतबद्ध।

क्र॰शीर्षकगीतकारगायकअवधि
1."दाग ना लग जाये"हसरत जयपुरीआशा भोंसले, मुकेश4:51
2."जाने कहाँ गये वो दिन"हसरत जयपुरीमुकेश4:48
3."कहता है जोकर सारा जमाना"नीरजमुकेश5:28
4."ऐ भाई ज़रा देख के चलो"नीरजमन्ना डे6:02
5."तीतर के दो आगे तीतर"हसरत जयपुरीआशा भोंसले, सिमी गरेवाल, मुकेश3:47
6."अंग लग जा बलमा"शैली शैलेन्द्रआशा भोंसले4:40
7."जीना यहाँ मरना यहाँ"शैली शैलेन्द्रमुकेश4:19
8."काटे ना कटे रैना" (संवाद सहित)शैली शैलेन्द्रमन्ना डे, आशा भोंसले11:13
9."सदके हीर तुझ पे" (संवाद सहित)प्रेम धवनमोहम्मद रफ़ी4:20

नामांकन और पुरस्कार संपादित करें

प्राप्तकर्ता और नामांकित व्यक्ति पुरस्कार वितरण समारोह श्रेणी परिणाम
राज कपूर फिल्मफेयर पुरस्कार फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म पुरस्कार नामित
राज कपूर फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ निर्देशक पुरस्कार जीत
शंकर जयकिशन फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार जीत
नीरज ("ऐ भाई ज़रा देख के चलो ") फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ गीतकार पुरस्कार नामित
मन्ना डे ("ऐ भाई ज़रा देख के चलो") फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ पार्श्व गायक पुरस्कार जीत

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें