मैक्स वेबर (जर्मन : Maximilian Carl Emil "Max" Weber ; 21 अप्रैल 1864 - 14 जून 1920) एक जर्मन समाजशास्त्री और राजनीतिक अर्थशास्त्री थे। इन्हें आधुनिक समाजशास्त्र के जन्मदाताओं में से एक भी माना जाता है।

सन् १८९४ में मैक्स वेबर

मैक्स वेबर नौकरशाही का व्यवस्थित अध्ययन करने वाले प्रथम जर्मन समाजशास्त्री थे। इन्होंने सैद्धांतिक ढांचे के रूप में नौकरशाही का अध्ययन किया। वेबर ने अपनी पुस्तक ‘सामाजिक और आर्थिक संगठन का सिध्दांत’ (The Theory of Economic and Social Organizations) में नौकरशाही के आदर्श प्रकार का वर्णन किया जिसके अंतर्गत नौकरशाही को प्रशासन की तर्कपूर्ण (Rational) व्यवस्था माना है। उन्होंने सत्ता के वर्गीकरण का प्रयास किया तथा यह माना कि नौकरशाही सिद्धान्त, प्रभुत्व (authority) के सिद्धान्त का ही एक अंग है। वेबर का मानना था कि नौकरशाही संगठन के प्रशासन और स्थापना में प्रभावी ढंग से सहायता करती है।

मैक्स वेबर का जन्म 21 अप्रैल, 1864 में पश्चिमी जर्मनी के कपड़ा निर्माण से जुड़े एक व्यवसायिक परिवार में हुआ। उनके पिता एक सुप्रसिद्ध न्यायाधीश तथा राष्ट्रीय उदार दल के प्रमुख नेता थे। सन् 1882 में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात उन्होंने हीडलवर्ग (Heidelberg) विश्वविद्यालय से कानून का अध्ययन किया। कानून में डॉक्टरेट के बाद बर्लिन विश्वविद्यालय में कानूनी प्रशिक्षक/प्राध्यापक के पद पर कार्य किया। सन् 1920 में इनका निधन हो गया।

सामाजिक संस्था के रूप में धर्म की प्रकृति कार्यों, परिणामों को गहन व्याहारिक अंतरादृष्टि प्रदान करने में मैक्स वेबेर का बहुत बड़ा योगदान है।

कृतियाँ संपादित करें

वेबर एक प्रगतिशील दृष्टिकोण के व्यक्ति थे, अत: उन्होंने अपनी रचनाओं में मुख्य ध्यान विश्लेषणात्मक तथा व्यवस्थित अध्ययन कर दिया। वह सदैव व्यावहारिक अनुभव के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने पर बल देते थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-

  • द प्रोटेस्टेण्ड एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैप्टिलीज़म (1905)
  • द रिलीज़न ऑफ इंडिया (1916)
  • द रिलीज़न ऑफ चाइना (1916)
  • द थ्योरी ऑफ सोसियल एन्ड इकनोमिक ऑर्गनाइजेशन (1922)
  • द सिटी (1922)
  • ऐंनसीएन्ट जुडेइजम (प्राचीन यहूदी धर्म)
  • एसेज़ इन सोशियोलॉजी
  • द मैथेडॉलॉजी ऑफ सोसियल सांइसेज
  • जनरल इकनोमिक हिस्ट्री
  • द रेसनल एन्ड सोसियल फाउंडेशन ऑफ म्यूजिक

मैक्स वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त संपादित करें

मैक्स वेबर ने नौकरशाही के आदर्श रूप का वर्णन किया है। वे पहले ऐसे विद्वान हैं जिन्होंने नौकरशाही के नकारात्मक पहलुओं के बजाय सकारात्मक पहलुओं पर अधिक बल दिया और नौकरशाही के आदर्श मॉडल का प्रतिपादन किया। वेबर ने नौकरशाही के बारे में बताया कि, नियुक्त किये गए अधिकारियों का समूह नौकरशाही कहलाता है। सन 1920 में वेबर की पुस्तक "विर्टशॉफ्ट अण्ड गेसलशॉफ्ट" (Wirtschaft und Gesellschaft) प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने सत्ता के सिद्धान्त के बारे में बताया है।

नौकरशाही की विशेषताएँ संपादित करें

वेबर ने अपने सिद्धान्त में नौकरशाही की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं-

  • पदसोपान- नौकरशाही में विशिष्ट कार्य, विशेष पदों के लिये ही निर्धारित होते हैं। यहाँ कार्य, योग्यता, अधिकार व उत्तरदायित्व में एक अंतर रहता है। प्रत्येक अधीनस्थ कार्यालय अपने ऊपर के कार्यालय के नियंत्रण व देखरेख में होता है।
  • व्यवसायिक योग्यता- सभी कर्मचारियों को एक वस्तुनिष्ठ कसौटी के आधार पर चुना जाता है, जिसके चलते उनमें व्यवसायिक योग्यता होती है। वे अपने संबंधों, खर्चों व अन्य चीजों को लेकर दूसरों के साथ औपचारिक तरीके से व्यवहार करते हैं। साथ ही, उनकी आमदनी में स्थायित्व होता है और उन्हें उन्नति के पर्याप्त अवसर उपलब्ध होते हैं।
  • नियम व प्रक्रिया- किसी भी संगठन में कर्मचारियों के कर्तव्य व अधिकार तथा काम करने की पद्धति स्पष्ट रूप से कुछ निश्चित नियमों द्वारा तय व प्रशासित होती है, जो लिखित, तार्किक व अवैयक्तिक होते हैं। ये भी कहा जाता है कि, इन नियमों का पालन स्वेच्छाचारिता को रोकता है और कार्यकुशलता को बढ़ावा देता है।
  • विशेषीकरण- किसी भी संगठन में प्रत्येक कर्मचारी की भूमिका उसके काम के अनुसार तय कर दी जाती है और निर्धारित किये गए उन्हीं कामों की सीमा के भीतर उससे अपेक्षाएँ की जाती हैं।
  • संगठनात्मक संसाधन- नौकरशाह, संगठन के संसाधनों को निजी तौर पर उपयोग नहीं कर सकते हैं। जैसे- आधिकारिक कर व निजी आमदनी पूरी तरह से अलग होती है।
  • लिखित दस्तावेज- लिखित दस्तावेज़ वेबेरियन नौकरशाही के केंद्र में हैं। सभी प्रशासनिक कार्य, निर्णय और नियम लिखित रूप में रिकॉर्ड किये जाते हैं। ये दस्तावेज प्रशासन को लोगों के प्रति उत्तरदायी बनाते हैं।
  • एकतंत्री प्रारूप- इसका अर्थ यह है कि, नौकरशाही के कुछ कार्यों को अन्य संगठनों द्वारा नहीं किया जा सकता है। कुछ कार्यों पर उनका एकाधिकार होता है और केवल प्राधिकृत अधिकारी ही उस कार्य को संपन्न कर सकते हैं।

नौकरशाही के सामाजिक परिणाम संपादित करें

वेबर ने कर्मचारीतंत्र के सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों पक्षों पर गहनता से विचार किया है।

सकारात्मक परिणाम संपादित करें

मैक्स वेबर के अनुसार, नौकरशाही ने निम्नलिखित रूप से समाज के विकास में योगदान दिया है-

  • (१) विश्वास बनाए रखने में - नौकरशाही अवैयक्तिक नियमों द्वारा संचालित होती है, जिसके चलते लोगों का प्रशासन पर विश्वास बना रहता है। इस प्रणाली के अंतर्गत कार्य अधिक सूक्ष्मता, तेजी, मितव्ययिता और बिना किसी विवाद के संपन्न होता है।
  • (२) प्रजातंत्र के लिये अनिवार्य - मैक्स वेबर कहते हैं कि, जैसे-जैसे प्रजातंत्र का विस्तार होता है वैसे-वैसे नौकरशाही पर आधारित प्रशासन व्यवस्था की ज़रूरत भी बढ़ती जाती है। वेबर की इन भावनाओं के लिये जूलियन फ्रायड ने लिखा है, ‘’यह सामान्यत: स्वीकार कर लिया गया है कि प्रजातंत्रीकरण और नौकरशाही साथ-साथ चलते हैं।’’
  • (३) शिक्षा के स्वरूप में बदलाव - नौकरशाही की ज़रूरतों ने शिक्षा के स्वरूप को भी प्रभावित किया है। विभिन्न क्षेत्रों में कर्मचारियों की माँगों को देखते हुए स्कूलों, कॉलेज़ों और विश्वविद्यालयों में शिक्षण के पाठ्यक्रम व प्रशिक्षण के तरीके बदले जा रहे हैं। आज के समय में डिप्लोमा, सर्टिफिकेट्स, डिग्री आदि का महत्त्व बढ़ गया है।
  • (४) सामाजिक अंतरों को कम करना - नौकरशाही एक ऐसी संगठन प्रणाली है जो आर्थिक और सामाजिक भेदों को दूर करती है और सामाजिक समानता लाने का प्रयास करती है। वस्तुनिष्ठ शैक्षिक प्रमाणपत्रों व औपचारिक परीक्षाओं के आधार पर विभिन्न पदों पर नियुक्तियाँ की जाती हैं। इन नियुक्तियों को परिवार, वंश या आर्थिक संपन्नता प्रभावित नहीं करती है। इस प्रकार नौकरशाही सामाजिक अंतरों को पाटने का भी कार्य करती है।

नकारात्मक परिणाम संपादित करें

मैक्स वेबर द्वारा बताए गए नौकरशाही के नकारात्मक परिणाम निम्नलिखित हैं-

  • (१) रचनात्मक निजी पहल में बाधक - नौकरशाही में कर्मचारी औपचारिक नियमों व अपने पद के दायित्वों से बंधे होते हैं जिससे उनकी निजी रचनात्मकता, सूझ-बूझ एवं पहल करने के साहस जैसी शक्तियों का गला घूंट जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि, व्यक्ति केवल एक कर्मचारी के रूप में अपनी नौकरी को सुरक्षित रखने के बारे में सोचने लगता है और वह एक नीरस और उबाऊ दिनचर्या में फंसा रहता है।
  • (२) आत्मविहीन विशेषज्ञों का उदय - नियमों एवं विधियों की अवैयक्तिकता ऐसे विशेषज्ञों को जन्म दे सकती है, जो अपने सीमित कार्यक्षेत्र में सिमटे समग्र संगठन के लक्ष्यों को भूल जाएँ। यह भी संभावना हो सकती है कि नियमावली व प्रक्रिया ही उनके लिये साध्य बन जाए। इस संबंध में वेबर का कहना है कि, दफ्तरी आचरण की अवैयक्तिकता की प्रवृत्ति ‘आत्मविहीन विशेषज्ञों’ को जन्म देने की होती है।
  • (३) शांति, व्यवस्था और सुरक्षा के आदी - नौकरशाही में अधिकारी जनता से दूर बड़े-बड़े भवनों में काम करते हैं जिससे वे शांति, व्यवस्था और सुरक्षा के आदी हो जाते हैं। इसलिये वेबर का कहना है कि, हम जान-बूझ कर ऐसे व्यक्ति बन जाते हैं जिसे व्यवस्था या शांति की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है और यदि एक क्षण के लिये भी यह व्यवस्था नष्ट हो जाए तो हम घबरा जाते हैं तथा खुद को निस्सहाय समझने लगते हैं।
  • (४) परंपरागत मूल्यों का ह्रास - वेबर का मानना है कि, युक्तिकरण या तार्किकता (Rationalization) की एक प्रमुख अभिव्यक्ति नौकरशाही है, जो कि वस्तुत: अतार्किक है। तार्किकता हमें उन परंपरात्मक मूल्यों से अलग कर देती है जो मानव जीवन को अर्थ और लक्ष्य प्रदान करते हैं।

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें