मॉरिस ब्लूमफ़ील्ड (23 फरवरी, 1855 - 12 जून, 1928) पोलिश मूल के अमेरिकी दार्शनिक और संस्कृत के विद्वान् थे।

मॉरिस ब्लूमफ़ील्ड

जीवन-परिचय संपादित करें

मॉरिस ब्लूमफील्ड बेलिज (Bielitz, पोलिश : Bielsko) में पैदा हुआ था, जो उस समय ऑस्ट्रिया के सिलेसिया में था और अब पोलैंड में है। वे यहूदी माता-पिता की संतान थे। उनकी बहन फैनी ब्लूमफील्ड ज़िसलर थी और भाषाविद् लियोनार्ड ब्लूमफ़ील्ड उनके भतीजे थे। उन्होंने 1885 में रोजा ज़िसलर से शादी की तथा उनके एक बेटा और एक बेटी थी। 1920 में रोजा की मृत्यु हो गयी। 1921 में, उन्होंने हेलेन स्कॉट से शादी की।

ब्लूमफील्ड 1867 में संयुक्त राज्य अमेरिका गये और 10 साल बाद फरमान विश्वविद्यालय, ग्रीनविले, दक्षिण कैरोलिना से स्नातक उत्तीर्ण हुए। फिर उन्होंने डब्ल्यूडी व्हिटनी के तहत येल में और जॉन्स हॉपकिंस विश्वविद्यालय में संस्कृत का अध्ययन किया। जॉन्स हॉपकिन्स से उन्होंने 1879 में पीएचडी की उपाधि पायी। बर्लिन और लीपज़िग में दो साल के प्रवास के बाद वे 1881 में एसोसिएट प्रोफेसर के रूप में हॉपकिंस लौट आये और जल्द ही संस्कृत और तुलनात्मक भाषाशास्त्र के प्रोफेसर के रूप में उन्हें पदोन्नति मिल गयी। 1896 में प्रिंसटन विश्वविद्यालय से उन्होंने एलएलडी की उपाधि प्राप्त की। अस्वस्थ रहने के कारण मजबूरीवश उन्हें 1926 में सेवानिवृत्त होना पड़ा। हॉपकिंस संकाय में उनके 45 वर्षों की सेवा के सम्मान में उन्हें प्रोफेसर एमेरिटस का नाम दिया गया था। सेवानिवृत्ति के बाद वे अपने बेटे के पास रहने के लिए सैन फ्रांसिस्को चले गये। 13 जून, 1928 को उनकी मृत्यु हो गयी।

लेखन-कार्य संपादित करें

मॉरिस ब्लूमफ़ील्ड का सर्वाधिक प्रसिद्ध कार्य 'A Vedic Concordance' (वैदिक पादानुक्रम कोष) की रचना है। उनके इस 'पादानुक्रम कोष' में वैदिक साहित्य के किसी मंत्र या गद्यात्मक भाग के जितने पाद (=चरण, stanza) हैं, उनकी अक्षरक्रम से सन्दर्भसूची है (Being an alphabetic index to every line of every stanza of the published Vedic literature)। उदाहरणस्वरूप ऋग्वेद का पहला मन्त्र 'अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधातमम्।।' है, जो कि गायत्री छन्द में है। इस छन्द में तीन चरण हैं। ब्लूमफील्ड के कोष में इसका पहला चरण 'अग्निम् ईडे पुरोहितम्' इस रूप में 'अ' अक्षर के अंतर्गत[1], दूसरा चरण 'यज्ञस्य देवम् ऋत्विजम्' 'य' अक्षर के अंतर्गत[2] और तीसरा चरण 'होतारं रत्नधातमम्' 'ह' अक्षर के अंतर्गत[3] उचित स्थान पर संदर्भ सहित दिये गये हैं।

प्रकाशित कृतियाँ संपादित करें

  1. Historical and critical remarks introductory to a comparative study of Greek accent (1883)
  2. The origin of the recessive accent in Greek (1888)
  3. Hymns Of The Atharva Veda (Translated by Maurice Bloomfield; first published by Oxford University Press1897, reprinted by Motilal banarsidass Patna 1964)
  4. The Atharveda And The Gopatha Brahmana (first edition in 1899, strassburg)
  5. A Vedic Concordance -1906 [देवनागरी (हिन्दी) संस्करण 'वैदिक पादानुक्रम-कोष', सं॰ ओमनाथ बिमली एवं सुनील कुमार उपाध्याय, परिमल पब्लिकेशंस, शक्तिनगर, दिल्ली से दो खण्डों में प्रकाशित]
  6. The Religion Of The Veda (The Ancient Religion Of India) -1908
  7. Rig-Veda Repetitions (1916)
  8. Life And Stories Of The Jaina Savior Parçvanatha (1919)
  9. Vedic Variants Vol-1 to 3 (1930-1934)

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. A Vedic Concordance, by Maurice Bloomfield, Cambridge Massachusetts, published by Harvard University, first edition -1906, p.12. (देवनागरी संस्करण परिमल पब्लिकेशंस, शक्तिनगर, नयी दिल्ली से प्रकाशित)
  2. A Vedic Concordance, ibid, p.734.
  3. A Vedic Concordance, ibid, p.1074.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें