यदु (English:Yadu), हिंदू धर्म के परमपवित्र यदु राजवंश के संथापक थे।[1] इन्हे चन्द्रवंशी क्षत्रिय सम्राट ययाति और उनकी ब्राह्मण रानी देवयानी का सबसे बड़ा पुत्र बताया गया है।[2]

यदु
माता-पिता
भाई-बहन तुर्वसु (भाई)
पुरु, द्रुह्यु, और अनु (सौतेले भाई)
संतान सहस्रजीत, क्रोस्टा, नल और रिपु
शास्त्र रामायण, महाभारत, पुराण
क्षेत्र हस्तिनापुर

कथा

महाभारत, और विष्णु पुराण में पाई गई एक कथा के अनुसार, यदु ने अपने पिता ययाति के साथ अपनी युवावस्था के वर्षों को बदलने से इनकार कर दिया था, जब ययाति को उसके ससुर, शुक्र ने बुढ़ापे का श्राप दिया था। इस प्रकार, ययाति ने उसे अपनी संतान को राज्य से बेदखल करने का श्राप दिया था।[3][4] इस उद्घोषणा के कारण, यदु को चन्द्रवंश या प्रयागराज के सिंहासन के उत्तराधिकारी के रूप में उनके सौतेले भाई, पुरु को नियुक्त किया गया। यदु ने राजवंश की अपनी कैडेट शाखा की स्थापना की, जिसे यदुवंश कहा जाता है।[5]

वंशज

  • हैहयवंश

पुराणों में लिखा है कि यदु का वंश उनके सबसे बड़े पुत्र सहस्रजीत द्वारा जारी रखा गया था। सहस्रजीत के पुत्र थे सतजीत। सतजित के तीन पुत्र हुए: हैहय, रेनुहय और हय, जिसमे हैहय विष्णु और लक्ष्मी के मानस पुत्र थे। हैहय से हैहयवंश चला, हैहय का यह हैहयवंश समस्त क्षत्रिय वंशो में सर्वश्रेष्ठ और परमपवित्र है।[6] हैहय के बाद इस वंश में एक से एक पराक्रमी महान राजा हुए जिन्होंने कई बार अयोध्या, काशी इत्यादि के राजा को युद्ध से भागने पर मजबूर कर दिया। इसी वंश में भगवान सहस्त्रबाहु अर्जुन के बाद उनके उत्तराधिकारी का वंश 5 कुलों में विभाजित हो गए जिसमें राजा मधु के बड़े पुत्र से वृष्णि राजवंश (माधव भी कहा जाता था) चला। वृष्णि कुल का नाम बाद में राजा चिदि ने बदलकर चेदि कर दिया। बाद में शिशुपाल के समय कुल का नाम चेदि से चन्देल या समानार्थी शब्द चन्देल हो गया। चन्देलो की ही शाखा कलचूरी हुए। चेदि-चन्देल वंश में सम्राट खारवेल या भिक्षुराजवर्मन चन्देल हुए जिनके वंश में आगे चलकर हैहयवंशी चन्देल राजा चन्द्रवर्मन द्वितीय (नन्नूक) ने जेजाकभुक्ति के चन्देल राजवंश की स्थापना की। ये चन्देल राजवंश मध्यकालीन भारत का प्रसिद्ध राजवंश हुआ जिसने भारत पर 8 से 13 वी शताब्दी तक स्वतंत्र रूप से शासन किया।[7]

त्रैकुटक-अभिर नामक एक राजवंश ने सामाजिक रूप से उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए हैहयों से वंश का दावा किया था।[6]

आधुनिक भारत में कई चरवाहे या दूधवाली जातियाँ और समुदाय, जैसे अहीर[8] खुद को यदुवंशी दावा मारती है। वो यादव वंश को स्वयं में जाति यानि यादव जाति बताती है।

संदर्भ

  1. www.wisdomlib.org (2018-01-18). "Yaduvansha, Yaduvaṃśa, Yadu-vansha: 3 definitions". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-11-18.
  2. www.wisdomlib.org (2012-06-29). "Yadu, Yādu: 17 definitions". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-11-18.
  3. Thapar, Romila (1996) [1978]. Ancient Indian Social History: Some Interpretations (Reprinted संस्करण). Orient Longman. पपृ॰ 268–269. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 81-250-0808-X.
  4. www.wisdomlib.org (2019-01-28). "Story of Yayāti". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-11-18.
  5. www.wisdomlib.org (2019-01-28). "Story of Yadu". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-11-18.
  6. www.wisdomlib.org (2021-11-15). "Description of the dynasty of Yadu (yaduvaṃśa) [Chapter 275]". www.wisdomlib.org (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2022-11-18.
  7. sakalle, Jairam Sitaram Pawar & Vinayak (2023-06-13). Raja Bhoj Parmaron Ki Gorvanshiya Virasat. Blue Rose Publishers.
  8. Pinch, William R. (1996). Peasants and Monks in British India. University of California Press. पृ॰ 91. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-520-91630-2.