राणा लाखा

मेवाड़, चित्तौड़ के शासक

. राणा लाखा ( 1382 ई.- 1421 ई. ) चित्तौड़ ,मेवाड़ में सिसोदिया राजपूत राजवंश राजा थेे इनके पिता का नाम राणा क्षेत्र सिंह था।

मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के शासक
(1326–1948 ईस्वी)
राणा हम्मीर सिंह (1326–1364)
राणा क्षेत्र सिंह (1364–1382)
राणा लखा (1382–1421)
राणा मोकल (1421–1433)
राणा कुम्भ (1433–1468)
उदयसिंह प्रथम (1468–1473)
राणा रायमल (1473–1508)
राणा सांगा (1508–1527)
रतन सिंह द्वितीय (1528–1531)
राणा विक्रमादित्य सिंह (1531–1536)
बनवीर सिंह (1536–1540)
उदयसिंह द्वितीय (1540–1572)
महाराणा प्रताप (1572–1597)
अमर सिंह प्रथम (1597–1620)
करण सिंह द्वितीय (1620–1628)
जगत सिंह प्रथम (1628–1652)
राज सिंह प्रथम (1652–1680)
जय सिंह (1680–1698)
अमर सिंह द्वितीय (1698–1710)
संग्राम सिंह द्वितीय (1710–1734)
जगत सिंह द्वितीय (1734–1751)
प्रताप सिंह द्वितीय (1751–1754)
राज सिंह द्वितीय (1754–1762)
अरी सिंह द्वितीय (1762–1772)
हम्मीर सिंह द्वितीय (1772–1778)
भीम सिंह (1778–1828)
जवान सिंह (1828–1838)
सरदार सिंह (1838–1842)
स्वरूप सिंह (1842–1861)
शम्भू सिंह (1861–1874)
उदयपुर के सज्जन सिंह (1874–1884)
फतेह सिंह (1884–1930)
भूपाल सिंह (1930–1948)
नाममात्र के शासक (महाराणा)
भूपाल सिंह (1948–1955)
भागवत सिंह (1955–1984)
महेन्द्र सिंह (1984–वर्तमान)

जब राणा लाखा गद्दी पर बैठे,तब मेवाड़ आर्थिक समस्याओं से ग्रसित था, लेकिन लाखा के शासनकाल में ही जावर नामक स्थान पर चाँदी की खान निकल आती है जो की एशिया की सबसे बडी चाँदी की खान है जिससे लाखा की समस्त आर्थिक समस्याएँ हल हो जाती हैं, इसी घटना से राणा लाखा का शासनकाल उन्नति की ओर बढ जाता है |

इनके शासनकाल में उदयपुर शहर केे बीचों बीच पीछू नामक एक बंजारे ने पिछौला झील का निर्माण कराया , यह झील लाखा के शासनकाल में मेवाड़ के लिए पेयजल का एकमात्र साधन रही।

राणा लाखा के जीवन का सबसे बड़ा रोचक तथ्य यह था कि इन्होंने अपने जीवन के अन्तिम दिनों में मारवाड़ के राजा राव की राजकुमारी हंसाबाई सेे विवाह किया, लेकिन यह विवाह इस शर्त पर हुआ कि लाखा का ज्येष्ठ पुत्र कुंवर चूड़ा मेेेवाड़ राज्य का उत्तराधिकारी नहीं बनेगा, बल्कि लाखा व रानी हंंसाबाई से उत्पन्न पुत्र ही मेवाड़ का उत्तराधिकारी होगा , जोकि आगे चलकर महाराणा मोकल हुए। इस कारण कुंवर चूड़ा राजस्थान का भीष्म पितामह कहलाए


राणा लाखा एक विद्वान शासक होनेे के साथ-साथ एक प्रसिद्ध संगीतज्ञ भी थे इनके दरबार में भी दो प्रसिद्ध संगीतज्ञ मेेेवाड़ दरबार की शोभा बढ़ाते थे जिन्हें धनेेेश्वर भट्टझोटिंगभट्ट के नाम से जाने जाते थे।

नियम संपादित करें

राणा लाखा सिंह सबसे सफल महाराणाओं में से एक थे। उसने मेवाड़ की अधीनता और उसके मुख्य गढ़, बेरहतगढ़ को नष्ट करके अपने प्रभुत्व का विस्तार किया, जिसके खंडहरों पर उसने बदनौर की स्थापना की। यह इस समय था कि जवार के टिन और चांदी की खानों की खोज उनके पिता द्वारा भीलों से जीतकर देश में की गई थी। राणा लाखा ने बिहार के गया तक छापा मारा और वहां तीर्थयात्रा कर समाप्त कर दिया। इस प्रकार राजस्व में वृद्धि के साथ उन्होंने अलाउद्दीन खिलजी द्वारा नष्ट किए गए महलों और मंदिरों का पुनर्निर्माण किया, जलाशयों और झीलों की खुदाई की, उनके पानी को बांधने के लिए विशाल प्राचीर बनाए, और कई किलों का निर्माण किया। उसने शेखावाटी (नगरचल क्षेत्र) के सांखला राजपूतों पर विजय प्राप्त की और अपने पिता की तरह बदनोर में सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के नेतृत्व में दिल्ली की शाही सेना को हराया।[1][2]

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Sarda, Har Bilas (2016). Maharana Kumbha: Sovereign, Soldier, Scholar. Creative Media Partners, LLC. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1371562045. अभिगमन तिथि 2020-09-12.
  2. Ahluwalia, M.S. (1978). Muslim Expansion in Rajasthan. Delhi: Yugantar Prakashan. पृ॰ 168. Lakshman Simha is said to have defeated the Sultan of Delhi near Badnor and got exemption from the pilgrimage tax imposed on the Hindus for their visits to holy places like Kashi, Gaya and Paryag