लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर

विश्व की सबसे बड़ी कण त्वरक मशीन,जो ब्रह्मांड के रहस्यों को सुलझाने में सहायक है

लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर या वृहद हैड्रॉन संघट्टक (अंग्रेज़ी: Large Hadron Collider; संक्षेप में LHC) जिनेवा में स्थित एक कण त्वरक है जो विश्व का सबसे विशाल और शक्तिशाली कोलाइडर त्वरक है। इसका निर्माण १९९८ से लेकर २००८ के बीच में हुआ।[1] यह यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन (सर्न/CERN) की महत्वाकांक्षी परियोजना है जो जेनेवा के समीप फ़्रान्स और स्विट्ज़रलैण्ड की सीमा पर भूमि की सतह से लगभग १०० मीटर नीचे स्थित है। इसकी रचना २७ किलोमीटर परिधि वाली एक वृत्ताकार सुरंग के रूप में हुई है।[2] इसी सुरंग में इस त्वरक के चुम्बक, संसूचक (डिटेक्टर), बीम-लाइनें एवं अन्य उपकरण लगे हैं।

एल एच सी का योजनामूलक चित्र जिसमें इसके प्रमुख अवयव दिखाए गए हैं।

इसमें सबसे पहला कणॉं का संघट्ट सन २०१० में किया गया था जो ३.५ TeV ऊर्जा वाले दो कण पुंजों (बीमों) का संघट्ट था। कुछ और परिवर्तन-परिवर्धन करने के बाद ६.५ TeV ऊर्जा वाली बीमों का संघट्ट कराया गया, जो अभी विश्व रिकॉर्ड है। २०१८ के बाद, इसे कुछ और परिवर्तन-परिवर्धन के लिए दो वर्ष के लिए अभी बन्द रखा गया है।

सुरंग के अन्दर दो बीम पाइपों में दो विपरीत दिशाओं से आ रही ७ TeV (टेरा एले़ट्रान वोल्ट्) की प्रोट्रॉन किरण-पुंजों (बीम) को आपस में संघट्ट (टक्कर) कराने का उद्देश्य यह था कि इससे वही स्थिति उत्पन्न की जाय जो ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के समय बिग बैंग के रूप में हुई थी। ज्ञातव्य है कि ७ TeV उर्जा वाले प्रोटॉन का वेग प्रकाश के वेग के लगभग बराबर होता है। एल एच सी की सहायता से किये जाने वाले प्रयोगों का मुख्य उद्देश्य स्टैन्डर्ड मॉडेल की सीमाओं एवं वैधता की जाँच करना है। स्टैन्डर्ड मॉडेल इस समय कण-भौतिकी का सबसे आधुनिक सैद्धान्तिक व्याख्या या मॉडल है। १० सितंबर २००८ को पहली बार इसमें सफलता पूर्वक प्रोटान धारा प्रवाहित की गई।[3] इस परियोजना में विश्व के ८५ से अधिक देशों नें अपना योगदान किया है। परियोजना में ८००० भौतिक वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं जो विभिन्न देशों, या विश्वविद्यालयों से आए हैं। प्रोटॉन बीम को त्वरित (accelerate) करने के लिये इसके कुछ अवयवों (जैसे द्विध्रुव (डाइपोल) चुम्बक, चतुर्ध्रुव (quadrupole) चुमबक आदि) का तापमान लगभग 1.90केल्विन या -२७१.२५0सेन्टीग्रेड तक ठंडा करना आवश्यक होता है ताकि जिन चालकों (conductors) में धारा बहती है वे अतिचालकता (superconductivity) की अवस्था में आ जांय और ये चुम्बक आवश्यक चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकें।[4][5] इस प्रयोग में बोसोन कण के के प्रकट होने तथा पहचाने जाने की उम्मीद है जिसके अस्तित्व की कल्पना अब तक सिर्फ गणनाओं द्वारा ही की जाती रही है।[6] इसके द्वारा द्रव्य एंव उर्जा के संबधों को जानने की कोशिश का जा रही है। इससे ब्रह्मांड के उत्पत्ति से जुड़े कई रहस्यो पर से भी पर्दा उठने की आशा है।

विशिष्टताएं संपादित करें

  • एल एच सी के सामान्य विशिष्टताएं (पैरामीटर्स)
  • संघट्ट की उर्जा- 7 TeV
  • प्रवेश (इन्जेक्शन) उर्जा- 450 GeV
  • द्विध्रुव (Dipole) चुम्बक के अन्दर चुम्बकीय क्षेत्र (7 TeV पर)- 8.33 टेस्ला
  • प्रदीप्ति (Luminosity) - 1×1034 cm−2s−1
  • प्रोटॉन बीम धारा का मान- 0.56 अम्पीयर/A

वर्तमान स्थिति संपादित करें

 
एलएचसी की सुरंग के अन्दर के एक छोटे से भाग का दृश्य सामने दिख रहा अवयव क्वाड्रूपोल चुम्बक है जो अमेरिका के फर्मीलैब द्वारा निर्मित है।

सभी अतिचालक चुम्बकों की जाँच हो चुकी थी। १.९ केल्विन के अतिनिम्न ताप पर इन्हें जाँचा जा चुका था। सितम्बर २००८ में इसमें प्रोटॉन किरण पुंज (बीम) डालकर उसकी उर्जा बढाई गई और उसके बाद १० सितंबर २००८ को पहली बार इसमें सफलता पूर्वक प्रोटान धारा प्रवाहित की गई। हालाँकि कुछ व्यक्तियों एंव वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग से पूरे विश्व के नष्ट हो जाने की सम्भावना और डर व्यक्त किया तथा इस परियोजना के सुरक्षा से जुड़े पहलुओं पर न्यायालय के माध्यम से सवाल उठाए। परंतु वैज्ञानिक समुदाय ने इनको बेबुनियाद करार दिया। न्यायालय ने भी इस परियोजना पर रोक लगाए जाने की याचिका को नामंजूर कर दिया। १९ सितंबर २००८ को दो अतिचालक चुम्बकों में खराबी आ जाने के कारण इस प्रयोग को रोक देना पड़ा।[7] इस क्षति के कारण जुलाई 2009 के पहले इसके शूरू न हो पाने की सम्भावना व्यक्त की गई।[8][9][10]

३० मार्च, २०१० को इस मशीन में वैज्ञानिक दो प्रोटोन किरणों की आमने-सामने की महाटक्कर करवाने में सफल रहे। अब तक किसी मशीन से पैदा किए गए सबसे अधिक बल से करवाई गई इस टक्कर से रिकॉर्ड ऊर्जा पैदा हुई। इस प्रयोग के आंकडों का अध्ययन कर वैज्ञानिक पता लगाएंगे कि बिग बैंग के बाद पदार्थ ठोस आधार में किस प्रकार बदल गये, तारों और ग्रहों की उत्पत्ति कैसे हुई![11][12]

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  2. 4913618,00.html "ब्रह्मांड को समझने का महाप्रयोग फिर शुरू" जाँचें |url= मान (मदद). Deutsche जर्मनी की प्रसारण सेवा. अभिगमन तिथि २२ नवंबर २००९. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  3. "First beam in the LHC - accelerating science". CERN Press Office. 10 सितंबर 2008. मूल से 6 जनवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अक्टूबर 2008. सीईआरएन प्रेस विज्ञप्ति, 10 अगस्त २००८]
  4. "LHC synchronization test successful Archived 2011-04-27 at the वेबैक मशीन". सीईआरएन बुलेटिन
  5. Overbye, Dennis (29 जुलाई 2008). "लेट द प्रोटॉन स्मैशिंग बिगिन। (द रैप इज़ आलरेडी रिटेन) Archived 2017-12-01 at the वेबैक मशीन". दि न्यू यॉर्क टाइम्स.
  6. "संग्रहीत प्रति". मूल से 10 सितंबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 सितंबर 2008.
  7. "Collider halted until next year". बीबीसी न्यूज़. 23 सितंबर 2008. मूल से 19 जून 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अक्टूबर 2008.
  8. "Large Hadron Collider to remain shut until middle of next year". Times Online. 17 नवम्बर 2008. अभिगमन तिथि 2008-18-11. |accessdate= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
  9. Tom Espiner (30 november 2008). "A longer delay for the Large Hadron Collider". CNET news. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)[मृत कड़ियाँ]
  10. "LHC to restart in 2009". CERN Press Office. 5 दिसम्बर 2008. मूल से 1 फ़रवरी 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 8 दिसंबर 2008.
  11. ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के जल्द खुलेंगे राज ![मृत कड़ियाँ]। गुरुवार, ०१ अप्रैल २०१०। राजस्थान पत्रिका
  12. ब्रह्मांड की गुत्थी सुलझाने के नजदीक पहुंचे वैज्ञानिक[मृत कड़ियाँ]। खबर-एनडीटीवी। जिनेवा। ३० मार्च २०१०

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