ली-एन्फील्ड (Lee–Enfield) एक प्रसिद्ध राइफल है जिसका उपयोग ब्रितानी साम्राज्य तथा कामनवेल्थ देश २०वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में करते थे और आज भी कुछ देशों में इसका उपयोग होता है। यह राइफल बोल्ट-ऐक्शन, मैगजीन से चलने वाली, रीपीटिंग राइफल है। १८९५ से आरम्भ होकर १९५७ तक यह ब्रितानी सेना की मानक राइफल थी [3][4]

ली-एन्फील्ड
Lee–Enfield

Short Magazine Lee–Enfield Mk I (1903), Swedish Army Museum, Stockholm.
प्रकार Bolt-action rifle
उत्पत्ति का मूल स्थान United Kingdom
सेवा इतिहास
सेवा में MLE: 1895–1926
SMLE: 1904–present
द्वारा प्रयोग किया See Users
युद्ध Second Boer War
World War I
Various Colonial conflicts
Irish War of Independence
Irish Civil War
World War II
Indonesian National Revolution
Indo-Pakistani Wars
Greek Civil War
Malayan Emergency
French Indochina War
Korean War
Arab-Israeli War
Suez Crisis
Border Campaign (Irish Republican Army)
Mau Mau Uprising
Vietnam War
The Troubles
Sino-Indian War
Bangladesh Liberation War
Soviet invasion of Afghanistan
Nepalese Civil War
Afghanistan conflict
उत्पादन इतिहास
डिज़ाइनर James Paris Lee, RSAF Enfield
उत्पादन तिथि MLE: 1895–1904
SMLE: 1904–present
निर्माणित संख्या 17,000,000+[1]
संस्करण See Models/marks
निर्दिष्टीकरण
वजन 4.19 कि॰ग्राम (9.24 पौंड) (Mk I)
3.96 कि॰ग्राम (8.73 पौंड) (Mk III)
4.11 कि॰ग्राम (9.06 पौंड) (No. 4)
लंबाई MLE: 49.6 इंच (1,260 मि॰मी॰)
SMLE No. 1 Mk III: 44.57 इंच (1,132 मि॰मी॰)
SMLE No. 4 Mk I: 44.45 इंच (1,129 मि॰मी॰)
LEC: 40.6 इंच (1,030 मि॰मी॰)
SMLE No. 5 Mk I: 39.5 इंच (1,003 मि॰मी॰)
बैरल लंबाई MLE: 30.2 इंच (767 मि॰मी॰)
SMLE No. 1 Mk III: 25.2 इंच (640 मि॰मी॰)
SMLE No. 4 Mk I: 25.2 इंच (640 मि॰मी॰)
LEC: 21.2 इंच (540 मि॰मी॰)
SMLE No. 5 Mk I: 18.8 इंच (480 मि॰मी॰)

कारतूस .303 Mk VII SAA Ball
कार्रवाई Bolt-action
आग की दर 20–30 aimed shots per minute
थूथन वेग 744 मी/से (2,441 फुट/सेकंड)
दूरी जहाँ तक अस्त्र मार कर सके 550 गज़ (503 मी॰)[2]
अधिकतम सीमा 3,000 गज़ (2,743 मी॰)[2]
फ़ीड करने के लिए प्रणाली 10-round magazine, loaded with 5-round charger clips
आकर्षण Sliding ramp rear sights, fixed-post front sights, "dial" long-range volley; telescopic sights on sniper models. Fixed and adjustable aperture sights incorporated onto later variants.

भारत में ली-इन्फील्ड संपादित करें

अपने समय के प्रसिद्ध और पुरातन बोल्ट-एक्शन ली-एन्फील्ड राइफल ने भारत में छोटे हथियारों की अधिप्राप्ति की पहली आधुनिक लहर को परिभाषित किया। 1907 से 1974 के बीच इंडियन ऑर्डिनेन्स फैक्टरीज ईशापुर ने इस राइफल के कई संस्करण निकाले। इसकी जगह दूसरे हथियार लाने की तमाम कोशिशों के बावजूद 2013 के अंत तक भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने अन्य हथियारों की बजाए इसी को इस्तेमाल में रखा हुआ है। ली-एन्फील्ड की सर्वविद्यमानता के बावजूद भारतीय ली-एन्फील्ड का इतिहास अभी तक समझा नहीं जा सका है। 20वीं सदी की शुरुआत में भारत ने तकरीबन 50,000 की दर से हर साल ली-एनफील्ड राइफलों को आयात करना शुरू किया (वॉल्टर, 2005, पृ. 87)। ब्रिटिश सरकार ने अपनी बढ़ती जरूरतों को देखते हुए स्थानीय उत्पादन का निर्णय लिया , और तमाम विरोधों के बावजूद हथियारों का घरेलू उद्योग शुरू कर दिया गया। घरेलू उत्पादन 1901 में शुरू हुआ (ओएफबी, 1999)। शुरू में लाइसेंसी उत्पादन में दिक्कतें आईं, लेकिन उसके बाद 1907 से शृंखलाबद्ध उत्पादन शुरू हो गया, जिससे छोटे मैगज़ीन वाले ली-एन्फील्ड (एसएमएलई) MK-III को मानकीकृत किया जा सका। अगले 60 सालों तक ये प्रोडक्शन में रहा (स्केर्नेटन, 1993)

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Skennerton 1993, पृ॰ 153, 230.
  2. "Rifle, Short Magazine Lee Enfield". The Lee–Enfield Rifle Website. मूल से 22 सितंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 13 May 2010.
  3. Skennerton 2007, पृ॰ 90.
  4. Hogg 1978, पृ॰ 215.

इन्हें भी देखें संपादित करें