लोमश रामकथा के वक्ताओं में से एक महर्षि थे। शरीर पर रोएँ अधिक होने से इन्हें यह नाम मिला था। कथा है कि सौ वर्षों तक कमलपुष्पों से इन्होंने शिव जी की पूजा की थी, इसी से इन्हें यह वरदान मिला था कि कल्पांत होने पर इनके शरीर का केवल एक बाल झड़ा करेगा। ये सदा तीर्थाटन किया करते थे और बड़े धर्मात्मा थे। तीर्थाटन के समय युधिष्ठिर ने इनसे अनेक आख्यान सुने थे। इन्होंने दुर्दम राजा को देवी भागवत की कथा पाँच बार सुनाई थी जिससे रवत नामक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। इन्होंने नर्मदा स्नान का निर्देश कर पिशाचयोनि में प्रविष्ट गंधर्वकन्याओं आदि का उद्धार किया था। इनके लिखे ये दो ग्रंथ बताए जाते हैं - लोमशसंहिता तथा लोमशशिक्षा। इनके नाम पर एक 'लोमाश रामायण' भी प्राप्त है।