विद्युतरसायन (eletro-chemistry), भौतिक रसायन की वह शाखा है जिसमें उन रासायनिक अभिक्रियों का अध्ययन किया जाता है जो किसी विलयन (सलूशन्) के अन्दर एक एलेक्ट्रान चालक और एक ऑयनिक चालक (विद्युत अपघट्य) के मिलन-तल (इन्टरफेस) पर होती है। इसमें इलेक्ट्रान चालक कोई धातु या अर्धचालक हो सकता है।

जॉन डेनियल और माइकल फैराडे (दायें तरफ), जिन्हे विद्युतरसायन का जनक माना जाता है

यदि रासायनिक अभिक्रिया किसी बाहर से आरोपित विभवान्तर (वोल्टेज्) के कारण घटित होती है (जैसे विद्युत अपघटन में) ; या रासायनिकभिक्रिया के परिणामस्वरूप विभवान्तर पैदा होता है (जैसे बैटरी में) तो ऐसी रासायनिक अभिक्रियों को विद्युत्त्-रासायनिक अभिक्रिया (electrochemical reaction) कहते हैं। सामान्य रूप से देखें तो पाते हैं कि विद्युत रासायनिक अभिक्रियाओं में ऑक्सीकरण एवं अपचयन क्रियाएं निहित होती हैं जो समय या स्थान (स्पेस और टाइम) में अलग होती हैं और किसी बाहरी परिपथ से जुड़ी होती हैं।

महत्व संपादित करें

अनेक रसायन (chemicals) विद्युत् से दूसरे रसायनकों में परिवर्तित किए जा सकते हैं। यह विषय आज बहुत विशाल और महत्व का हो गया है। इसकी इस बात से पुष्टि हो जाती है कि बाजारों में बिकनेवाली अनेक वस्तुएँ, जैसे धातुएँ, मिश्रधातुएँ, रसायन, साज-सज्जा के सामान आदि विद्युत् विधियों द्वारा ही आज बनती हैं। विद्युत् विधियाँ पुरानी अविद्युत् विधियों का स्थान बड़ी तीव्रता से ले रही हैं। विद्युत् ऊर्जा की अधिक उपलब्धि के साथ साथ विद्युतरासायनिक उद्योगों का आज अधिकाधिक विकास हो रहा है।

रासायनिक क्रियाओं में साधारणतया ऊष्मा परिवर्तन, ऊष्मा का निष्कासन, या ऊष्मा का अवशोषण होता है, पर कुछ विशिष्ट परिस्थितियों में रासायनिक क्रियाओं से विद्युत् ऊर्जा का भी उत्पादन हो सकता है। रासायनिक ऊर्जा के विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तन का अच्छा उदाहरण प्राथमिक सेल और बैटरियाँ हैं। शुष्क बैटरियाँ भी इसी सिद्धांत पर बनी हैं। विद्युत् रासायनिक परिवर्तनों में विद्युत् प्रवाह से सोडियम और क्लोरीन में विघटित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप हमें दाहक सोडा, हाइड्रोजन और क्लोरीन प्राप्त होते हैं। वे तीनों ही उत्पाद औद्योगिक दृष्टि से बड़े महत्व के हैं।

इतिहास संपादित करें

 
जल का विद्युत अपघटन

वोल्टा ने 1800 ई. के लगभग विभिन्न धातुओं का पुंज (piles) बनाकर पहले पहल विद्युत् धारा प्राप्त की थी। फिर निकलसन और कारलाइल ने वोल्टीय पुंज की विद्युत् धारा द्वारा जल को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में विघटित किया था। इसके बाद 1807 ई. में द्रवित सोडियम के लवण में विद्युत् प्रवाह से सोडियम के लवण में विद्युत् प्रवाह से सोडियम धातु पहले पहल प्राप्त की थी। शीघ्र ही बाद इसी विधि से कैल्सियम, स्ट्रौशियम और वेरियम धातुएँ भी प्राप्त हुई थीं। फिर तो अनेक वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण योगदान देकर, विद्युत् रसायन को बहुत आगे बढ़ाया। ऐसे वैज्ञानिकों में वर्जीलियस, फैराडे, ओम, हिटॉर्फ, कॉलरॉश, अरेनियस, नर्नस्ट तथा लुईस के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

इस संबंध में फैराडे ने कुछ नियमों का प्रतिपादन किया है, जो "फैराडे के नियम" के नाम से सुप्रसिद्ध हैं। एक नियम यह है कि "विद्युत् धारा से रासायनिक विघटन की मात्रा प्रवाहित विद्युत् की मात्रा के अनुपात में रहती है"। दूसरा नियम है कि "यदि विभिन्न यौगिकों में विद्युत् धारा प्रवाहित की जाए, तो इलेक्ट्रोड पर प्राप्त विभिन्न पदार्थों की मात्रा उनके रासायनिक तुल्यांक भार के अनुपात में होती है। इन दोनों नियमों का सत्यापन प्रयोगों से प्रमाणित हो चुका है।

जब कोई लवण पानी में घुलता है, तब वह साधारणतया दो भागों में बँट जाता है। इन्हें "आयन" कहते हैं। कुछ आयनों पर धनावेश रहता है और कुछ आयनों पर ऋणावेश रहता है। पर इन आवेशों की मात्रा एक समान रहने के कारण विलयन वैद्युत् दृष्टि से उदासीन होता है। ऐसे विलयन में विद्युत् के प्रवाहित करने से ऋणायन एक इलेक्ट्रोड पर और धनायन दूसरे इलेक्ट्रोड पर उन्मुक्त होते हैं। जो यौगिक आयनों में विघटित होते हैं, वे ही विद्युत् के चालक होते हैं। ऐसे यौगिक सामान्यत: अम्ल, क्षार और लवण होते हैं। ऐसे विलयन, जो विद्युत् के चालक होते हैं, विद्युत् अपघट्य (Electrolyte) कहे जाते हैं। कुछ लवण द्रवित अवस्था में विद्युत् चालक होते हैं। विद्युत् अपघट्य से जब विद्युत् प्रवाहित की जाती है, तब उसे विद्युत् अपघटन (Electroiysis) कहते हैं। विद्युत् अपघटन से आज अनके वस्तुएँ तैयार होती हैं। इसका सबसे अधिक महत्व का उपयोग विद्युत्लेपन (electroplating) में होता है। इससे धातुओं का परिष्कार भी किया जाता है। शुद्ध ताँबा विद्युत् अपघटन से ही प्राप्त होता है। विद्युत् मुद्रण का भी विद्युत् अपघटन से ही संबंध है।

विद्युत् रसायन के अंतर्गत ऐसे परिवर्तन भी आते हैं जो ऊँचे ताप पर संपन्न होते हैं। ऊँचे ताप के लिए अनेक प्रकार की विद्युत् भट्ठियाँ या आर्क भट्ठियाँ बनी हुई हैं। इस विधि से आज अनेक धातुएँ धातु खनिजों से प्राप्त होती हैं। ऐलुमिनियम का निर्माण इसका अच्छा उदाहरण है। धातुओं की प्राप्ति के अतिरिक्त अनेक बड़ी उपयोगी वस्तुएँ जैसे कैल्सियम कार्बाइड, सिलिकन कार्बाइड, फॉस्फरस, सिलिकन, मैग्नीशियम, ग्रैफाइट आदि भी विद्युत् भट्ठियों में ही तैयार होते हैं।

उपयोग संपादित करें

 
क्लोर अल्कली प्रक्रम के लिये पारद सेल

इन्हें भी देखें संपादित करें

 
ईंधन सेल (अल्कोहल से चालित)

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें