वैभाषिक मत, हीनयान परम्परा का बौद्ध दर्शन है। इसका प्रचार भी लंका में है। यह मत बाह्य वस्तुओं की सत्ता तथा स्वलक्षणों के रूप में उनका प्रत्यक्ष मानता है। अत: उसे बाह्य प्रत्यक्षवाद अथवा "सर्वास्तित्ववाद" कहते हैं।