शुक्राचार्य

हिन्दू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार राक्षसों के गुरु
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शुक्राचार्य के रहस्यों कोबजन्ने वाला व्यक्ति कभी गरीब नहीं रह सकता। दैत्य गुरु शुक्राचार्य भगवान शिव के अनन्य उपासक थे। राहु और शुक्र के 100 से अधिक रहस्य जानकर आप भी अरबपति बन सकते हैं। जाने दुर्लभ बातें

क्या आप जानते है शुक्राचार्य का वंश आज भी मौजूद है, जिसे डाकोत ब्राह्मण (भार्गव, जोशी) के नाम से जाना जाता है ।

ज्योतिष की एक रहस्मयी जानकारी आपको धन वैभव से परिपूर्ण कर देगी। एक बार शुक्र और राहु के इन उपायों को आजमाकर अवश्य देखें। जाने-100 से अधिक रोचक रहस्य…

क्यों दीपावली उत्सव के कारक हैं-शुक्राचार्य?… क्या चांदी पहनने से समृद्धि आती है? क्या शुक्र ग्रह बिना रत्न के भी बलवान हो सकता है। शुक्र का रत्न हीरा/डायमंड सभी को लाभकारी है?. सोना पहनने से धन क्यों बढ़ता है… शुक्राचार्य की एक आंख क्यों फूटी है?… दीपावली का रहस्य क्या है?… !!ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै बिच्चे!! का महत्व महादेव ने अपने परम शिष्य शुक्राचार्य को ही क्यों दिया? -मृतसंजीवनीमन्त्र… दैत्यगुरु शुक्राचार्य का जन्म राहु के स्वाति नक्षत्र में ही क्यों हुआ था। शुक्राचार्य के सदगुरू महादेव ही क्यों बने?… जन्मपत्रिका का शुक्र की स्थिति…. दीपावली की रात दीपदान का क्या रहस्य है? राहु और केतु कौन हैं? के लिए Ashok Gupta का जवाब राहु और केतु कौन हैं? के लिए Ashok Gupta का जवाब

कलयुग में भौतिक सुख, समृद्धि के कारक शुक्र ग्रह हैं और शुक्र के ही परम शिष्य राहु विज्ञान, टेक्नोलॉजी के दाता हैं। जिसने भी इन दोनों को प्रसन्न कर लिया या बलवान बना लिया उनकी सफलता को कोई रोक नहीं सकता। शुक्र का वैदिक नाम अग्नि भी है। भगवान शिव से दीक्षित होने के कारण शुक्र को अग्निश्वर भी कहा गया है। दीपदान की परंपरा का आरंभ राहु ने अपने दैत्यगुरु शुक्राचार्य को प्रसन्नता के लिए किया था। घर के मंदिर या किसी भी देवालय, शिवालय और दीपावली की रात में दीपक जलाने से राहु और शुक्र बहुत खुश होते हैं। स्मरण रहे की दीपावली हमेशा राहु के स्वाति नक्षत्र में ही मनाई जाती है। इस रात दीपों की श्रंखला लगाकर जलाने से महालक्ष्मी की कृपा बरसने लगती है और दीपावली की रात को तांत्रिक सिद्धियां भी की जाती हैं। कुंडली में शुभकारी शुक्र की पहचान केसे करें

जन्मपत्रिका में स्थिर राशि वृषभ, सिंह, कुंभ एवम वृश्चिक के शुक्र होने से उस जातक के परिवार में तीन से 5 पीढ़ी तक श्री महालक्ष्मी का निवास रहता है। स्थिर राशि के शुक्र स्थिर होने पर गरीब से गरीब घर में जन्मा जातक अपने दम पर अथाह सम्पदा का मालिक बन जाता है। शुक्र को बलवान बनाने की विधि

शुक्र को बलवान बनाने के लिए हीरा सबसे बलशाली रत्न है। हीरे को सोने की धातु में मध्यमा, अनामिका या कनिष्ठका में पहनना चाहिए। जन्मपत्रिका के अनुसार यदि शुक्र स्वनक्षत्र भरणी, पूर्वाफाल्गुनी एवं पूर्वाषाढा में जन्म हो, तो हीरा जबरदस्त फायदा देता है। दूसरी बात यह कि अगर कुंडली में शुक्र दशम भाव में बैठा, तो हीरे की अंगूठी धारण करने से जीवन में चमत्कार शुरू होने लगते हैं। शुक्र नीच राशि कन्या में हो हीरा कभी न पहिने। अगर आपका जन्म गुरु के नक्षत्रों पुनर्वसु, विशाखा तथा पूर्वाभाद्रपद में से किसी एक नक्षत्र में हुआ हो, तो भी हीरा हितकारी नहीं रहेगा। हीरा पहनते समय इस बात का विशेष ख्याल रखें कि जिस दिन भी हीरा धारण करें, तो अपनी उम्र के मुताबिक, उतने दीपक पंच अन्न के आटे के बनाकर पान के पत्ते पर रखकर देशी घी के जरूर जलाएं। शनि में बुध, राहु या शुक्र की अंतर्दशा हो, तो हीरा अवश्य पहिने। शुक्र में राहु के अंतर में हीरा धन के द्वार खोल देता है। कब किस महादशा अंतर्दशा में हीरा शुभकर्ता होगा। यह जानकारी कभी अलग से देंगे। चांदी के छल्ले या अंगूठी के बारे में भय-भ्रम मिटाने वाली 73 रोचक और अदभुत जानकारी पढ़ें… स्कंदपुराण के ज्योतिष खण्ड के ग्रह शांति अध्याय में लिखा है कि- भक्त प्रह्लाद के पिता दैत्य हिरण्यकश्यप ने अपने गुरु शुक्राचार्य के आदेश पर स्वर्ण की खोज की थी। नवग्रह में शुक्र को अग्नि बताया हैं। दैत्य गुरु शुक्र वीर्य या शूक्राणु के स्वामी है। शुक्र (वीर्य) की कमी या कमजोरी से सन्तान पैदा नहीं होती। मान्यता है कि गर्भधारण या संतति निर्माण का कारक आग यानि शुक्र ही है। क्योंकि शुक्रदेव को स्वर्ण धातु से बहुत लगाव है। चांदी केवल चंद्रमा की धातु है। जिनका चंद्रमा दूषित हो, नीच राशि यानि वृश्चिक में, केमद्रुम दोष हो, उन्हें ही चांदी का छल्ला पहनने की सलाह दी गई है। महिलाओं की ठोकर में है-मन…स्त्रियों को पैरों में चांदी पहनने की सलाह इसलिए दी है क्योंकि मन का कारक चन्द्रमा उनके चरणों की ठोकर में रहता है, इसीलिए नारी कभी जल्दी भटकती नहीं है। स्त्री का मन व मनोबल, आत्मविश्वास बहुत मजबूत रहता है। महिलाएं बुरे वक्त में भी शक्त रहकर परेशानियों से पार हो जाती हैं। यह जानबूझकर भ्रम फैलाया जा रहा है कि चांदी की अंगूठी धारण करने से अचानक धन आएगा या कोई चमत्कार होगा। चांदी का छल्ला पहनने से अवसाद या डिप्रेशन में वृद्धि होगी। अतः मात्र सोना पहने। चांदी जल का प्रतिनिधित्व करती है और शरीर को जीने के लिए अग्नि की जरूरत है। ऊर्जा, शक्ति, उमंग आदि सब सोने से मिलता है। किसी विशेष परिस्थितियों में चांदी का छल्ला केवल अविवाहित बच्चों को पहनाने की सलाह शास्त्रों में बताई है। विभिन्न शास्त्रों का गहराई से अध्ययन करके इस बारे में संक्षिप्त जानकारी दी जा रही है और आप भी सुनी-सुनाई बातों में आकर अपने बहुमुल्य जीवन को तबाह न करें। अनेक शोकों में एक शौक प्राचीन पुराण पढ़ने का भी बना लें। शुक्र की धातु चांदी नहीं प्लेटिनम एवं स्वर्ण है और हीरा, जरकिन शुक्र की शुभता, शक्ति बढ़ाने के लिए पहना जाता है। अकेले चांदी का छल्ला अभिमंत्रित कराकर पहनने से शुक्र की कृपा नहीं मिलती। अग्नि से मिटाएं दरिद्रता - दीपदान गुरु शुक्राचार्य को विशेष प्रिय है। अग्नि पुराण के अनुसार सूर्य स्वर्ग की अग्नि है और वहां से संसार को तपाती है। अग्नि का दूसरा स्वरूप पर्जन्य कहलाता है। पर्जन्य का मतलब होता है जल या वर्षा। फिर, भौतिक संसार को तीसरी अग्नि और पुरुष को चौथी अग्नि कहा गया है। इस मायारूपी दुनिया में स्त्री पांचवीं अग्नि बताया गया है। दीपदान से ये अग्नियां भाग्योदय में मदद करती हैं। आयुर्वेदिक शास्त्रों में 13 तरह की अग्नियों का उल्लेख मिलता है और मुख्य 5 हैं। दीपदान से लाएं समृद्धि और सफलता - शुक्रवार के दिन किसी भी देवी माँ के मंदिर या शिवालय में पांच दीपक आटे के तैयार कर देशी घी के जलाएं औऱ 2 दीपक Raahukey oil राहु की तेल का जलाकर !! ॐ शंभूतेजसे नमः शिवाय तथा !!ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै बिच्चे!! का एक एक माला जाप करें और सफेद फूल एवं मख्खन-मिश्री का नैवेद्य अर्पित करें। यह प्रयोग 7 शुक्रवार करें। घर के मन्दिर में स्वर्ण 1 ग्राम , चांदी100 ग्राम , प्लेटीनम 2 ग्राम तीनों मिलाकर एक शिवलिंग बनाकर घर में रखें और रोज 5 ml कच्चा दूध, 3 साफ3द पुष्प अर्पित कर- !!ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं!!मन्त्र की एक माला रोज जपें। चाहें तो इस मन्त्र को चलते-फिरते भी जप सकते हैं। कुबेर की प्रसन्नता ओर श्रीगणेश की कृपा हेतु यह चमत्कारी है। सफेद वस्तुओं जैसे चीनी, दूध, पोहा, पारा, चावल, चांदी, इत्र आदि का दान करते रहें। दीपावली का महत्व…इस दिन घर की सभी महिलाएं स्वर्ण आभूषण ग्रहण कर गणेश-महालक्षमी की पूजा करती हैं। इस विषय पर आगे कभी विस्तार से बताया जाएगा। शुक्र का एक नाम अग्निश्वर है। इनके मन्दिर की चर्चा नीचे करेंगे। दीपावली की रात में स्वाति नक्षत्र होता है, जिसके स्वामी राहु हैं। इस उत्सव की रात दीपदान करने से शुक्र प्रसन्न होते हैं। आगे पूरी जानकारी है। शुक्राचार्य जी दैत्यों के गुरु होने की वजह से शुक्रदेव दैत्याचार्य कहलाते हैं। राहु शुक्र के परम शिष्य हैं। ब्रह्मांड की सम्पूर्ण शक्ति, ऊर्जा, सम्पदा मानव को राहु ही उन्हें देते हैं, जो राहु के गुरु शुक्राचार्य को दीप अर्पित करते हैं। उनके यहां सुख और स्वास्थ्य पर्याप्त होता है। शुक्रवार दीपदान किसी शिवालय या घर में भी जला सकते हैं। शुक्र मुसलमानों के आराध्य गुरु हैं- शुक्र के सबसे बड़े साधक मुसलमान है, जो हरेक शुक्रवार को निश्चित रूप से नमाज पढ़ते हैं। यह नमाज सबके लिए जरूरी है। मुस्लिमों का शुक्र के प्रति समर्पण भाव होने से दुनिया के 65 से अधिक देशों में कब्जा है तथा लगभग 10 से अधिक में जबरदस्त समृद्धि है। अगर गहराई से चिंतन किया जाए, तो राहु और मुस्लिम धर्म की परंपरा बिलकुल एक जेसी ही हैं। राहु हमेशा वक्री (उल्टे) रहते हैं! किस वैदिक गुरु ने इस धर्म की स्थापना की ओर इनके पैगम्बर की जानकारी अलग से देंगे। स्कंदपुराण सहित ज्योतिष शास्त्रों में मान्यता है की शुक्राचार्य शिवजी की पूजा, शिवलिंग पर देशी घी से रुद्राभिषेक और ध्यान से भारी प्रसन्न होते हैं। शुक्र क्या देते हैंजेड ज्योतिष के अनुसार शुक्र ग्रह रोमांस, एक से अधिक स्त्री, कामुकता, कलात्मक कार्य, चलचित्र अभिनेता, प्रतिभा, शरीर और भौतिक जीवन की गुणवत्ता, अटूट धन, विपरीत लिंग, खुशी और प्रजनन, स्त्रैण गुण और ललित कला, संगीत, नृत्य, चित्रकला और मूर्तिकला का प्रतीक है। नवग्रहों में शुक्र अकेला ऐसा ग्रह है, जो कुंडली में जिस स्थान पर बैठते हैं और जहां उनकी दृष्टि होती है, उन भाव को उपयोगी, लाभकारी बना देते हैं। यह शुभ ग्रहों में गिने जाते हैं। जबकि गुरु ग्रह जिस जगह बैठते हैं, उसे तबाह कर देते हैं तथा उनकी तीनों दृष्टियां शुभ होती हैं। लेकिन यदि गुरु वक्री हैं, तो दॄष्टि भी खराब डालते हैं। यह ज्योतिष का विषय बहुत लम्बा होने से केवल भ्रम दूर करने हेतु बताया है। शुक्राचार्य की एक आंख का रहस्य - कहते हैं कि शुक्र की एक आंख फूटी है, इसके पीछे किस्सा है कि शुक्र के केवल भौतिकता वाले नेत्र खुले हैं। धर्म आध्यात्म वाला नयन खराब है अर्थात ज्यादा सांसारिक सुख आने पर ईश्वर का स्मरण नहीं कर पाता। इस कारण धनशाली पुरुष केवल एक निगाह से दुनिया को देखता है। वह स्वयं को स्वयंभू मानने लगता है। शुक्रचार्य की एक नेत्र न होने की कहानी- श्रीमद भागवत, ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक भगवान श्रीहरि वामन अवतार लेकर विष्णु ने प्रह्लाद के पौत्र राजा बलि से छद्म रूप में दान स्वरूप त्रैलोक्य ले लेने का प्रयास किया। भगवान विष्णुजी को वामन रूप में शुक्राचार्य ने उन्हें पहचान कर राजा बलि को दान हेतु मना किया।हालांकि राजा बलि अपने वचन का पक्का होने से वामन देवता को मुंह मांगा दान दिया। शुक्राचार्य ने बलि के इस दान से दुःखी,अप्रसन्न हो, स्वयं को सूक्ष्म बनाकर वामन विष्णु के कमण्डल की चोंच में जाकर छिप गये। इसी कमण्डलु से जल लेकर बलि को दान का संकल्प पूर्ण करना था। तब विष्णु जी ने उन्हें पहचान कर भूमि से कुशा का एक तिनका उठाया और उसकी नोक से कमण्डलु की चोंच को खोल दिया। इस नोक से शुक्राचार्य की बायीं आंख फ़ूट गयी। तब से शुक्राचार्य काणे यानि एक आंख वाले ही कहलाते हैं। इनकी यही आंख धर्म का प्रतीक थी। दीपावली की आरंभ का वैदिक किस्सा - अगर लोग फालतू कथावाचकों की मनगढ़ंत बकवास पर ध्यान न देकर ग्रन्थों का अध्ययन करें, तो अनेकों भ्रमित ज्ञान से बचकर अपना कल्याण कर सकते हैं। वामन अवतार रूप में विष्णुजी से जब राजा बलि से सब कुछ छीन लिया, तो बलि ने भगवान विष्णुजी को शाप दिया था कि आपने धोखे से मेरा राज्य-पाठ छीना है मैं महान शिवभक्त हिरण्यकश्यप का वंशज राजा बलि शाप देता हूँ कि- जो भी व्यक्ति सूर्य के नीच राशिगत होने पर अर्थात कार्तिक मास की धन तेरस, चौदस (काल शिवरात्रि), दीपावली, एवं पड़वा-दोज की रात्रि में मेरे गुरु अग्निश्वर (शुक्र) का स्मरण कर दीप+अवली (दीपावली) को रात्रि में दीपों की श्रृंखला अर्पित करेगा, वहां विष्णु पत्नी लक्ष्मी निवास करेगी औऱ मेरे गुरु भाई राहु की कृपा बनी रहेगी। उसके यहां कभी धन-सम्पदा की कमी नहीं आएगी। यह किस्सा बिना किसी मन्त्र के संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया है। शुक्राचार्य के सदगुरू महादेव- शुक्र का एक नाम अग्नि है। इन्हें दैत्य गुरु शुक्राचार्य कहते हैं। रावण, परशुराम के अलावा शुक्र देव ने भी भोलेनाथ से ज्ञान, दीक्षा ली थी। श्रीगणेश के गुरु हैं शुक्राचार्य- शुक्र सन्सार के सभी भौतिक सुखों का दाता हैं। श्रीगणेश के शुक्राचार्य गुरु हैं। शुक्रदेव से ही गणपतिजी को !!ह्रीं ॐ नमः शिवाय ह्रीं!! गुरुमन्त्र मिला था। शुक्रदेव ने यहां पाया था-संजीवनी मन्त्र तमिलनाडु के कुम्भकोणम से लगभग 40 किलोमीटर दूर एक एकान्त गांव कंजनूर में अग्निश्वर के नाम से शुक्र देव का मंदिर है। दक्षिण भारत के कंजनूर में शुक्राचार्य जी ने महादेव की घनघोर तपस्या के फलस्वरूप मृत संजीवनी मन्त्र वरदान के रूप में पाया था। यह गायत्री एवं महामृत्यंजय मन्त्र का सामंजस्य है। भगवान कृष्ण बने त्रिलोक के स्वामी - यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण ने शुक्र अग्निश्वर महादेव की साधनाओं, तपस्या से ऐश्वर्य होने का वरदान पाया था। इस मंदिर में अग्निश्वर के रूप में भगवान शिव की मुख्य रूप से पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है की इस जगह पर खुद अग्निदेव ने भगवान शिव की पूजा की थी। शुक्र देव के अलावा भी इस मंदिर में अन्य देवताओ की पूजा की जाती है। विजयनगर और चोल वंश के समय के बहुत ही सुन्दर शिलालेख यहापर देखने को मिलते है साथ ही शिवकामी और नटराज की पत्थर से बनी सुन्दर मुर्तिया भी यहां देखने को मिलती है। एक विशेषता है कि दुनिया के सभी शिवालय में नन्दी शिवलिंग के सामने है, लेकिन कंजनूर के इस शिवमंदिर में नन्दी शिवलिंग के सामने नहीं हैं। बताते हैं कि नन्दी किसी भी अधर्मी को मन्दिर में आने से रोकते थे, तभी मुसलमानों ने इसे महादेव के सामने से हटा दिया। कंजंनूर के इस शुक्र मन्दिर में प्रसाद के रूप में केवल अपनी उम्र के दीपक जलाते हैं। यहां धन-वैभव पाने हेतु शुक्रवार को 108 दीपक जलाने का विधान है। यह मंदिर कुछ जीर्ण-शीर्ण औऱ प्राचीन है। कहते हैं कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहां से शिवलिंग ले जाने का प्रयास किया था, लेकिन इतना भारी हो गया गया कि, उन्हें वहीं छोड़ कर जाना पड़ा था। इश्क, मोहब्ब्त का शुक्र ग्रह ही कारक हैं - प्रेम, विवाह, आनंद और सुन्दरता के लिए शुक्र देव की पूजा की जाती है और अच्छी पत्नी पाने के लिए सभी पुरुष शुक्र देव की पूजा करते है। शुक्र को ब्राह्मणों पर कृपा करने वाला ग्रह बताया है। ये खुद भी ब्राह्मण जाति के हैं। संस्कृत शब्दकोश में शुक्र को सबसे शुद्ध, स्वच्छ श्वेत वर्णी, मध्यवयः, सहमति वाली मुखाकृति तथा ऊंट, घोड़े या मगरमच्छ पर सवार दिखाया जाता है। शुक्र कुछ-कुछ स्त्रीत्व स्वभाव वाला ग्रह है। शुक्र नाम उच्चारण में शुक्ल से मिलता हुआ है जिसका अर्थ है श्वेत या उजला। यह ग्रह भी श्वेत वर्ण का उज्ज्वल प्रकृति का ही है। यह सप्तवारों में शुक्रवार का स्वामी है। दैत्यगुरू शुक्र हाथों में दण्ड, कमल, माला और कभी-कभार धनुष-बाण भी लिये रहते हैं। शुक्राचार्य का परिवार- श्रीमद देवी भागवत के अनुसार इनकी माँ काव्यमाता थीं। शुक्र अपनी पत्नी दैत्यदुरु माँ द्वारजस्विनी के संग सदैव रहते हैं। शुक्राचार्य चार पुत्र हुए: चंड, अमर्क, त्वस्त्र, धारात्र तथा देवयानी नामक एक पुत्री है दैत्यगुरु शुक्राचार्य की जन्म तिथि - शुक्रचार्य का जन्म पार्थिव नामक सम्वत्सर वर्ष के सावन माह में यानि श्रावण मास शुद्ध अष्टमी को स्वाति नक्षत्र के उदय के समय हुआ था। अथाह दौलत की चाहत हो, तो सावन मास में शुक्ल पक्ष की अष्टमी को शिवलिंग पर देशी घी द्वारा रुद्राभिषेक कराये। वृहद ज्योतिष सहिंता में शुक्र के प्रभाव - शुक्र सर्वाधिक लाभदाता, विदेश यात्रा का कारक ग्रह माना गया है। शुक्र ग्रह 12 राशियों में दूसरे वृषभ राशि एवं सातवी राशि तुला राशियों का स्वामी है। यह बारहवीं राशि मीन में उच्च भाव में रहता है तथा कन्या राशि में नीच भाव में रहता है। राहु शुक्राचार्य के परम शिष्य हैं। बुध-शनि से अभिन्नता है। रवि-सोम शत्रु ग्रह हैं तथा गुरु तटस्थ ग्रह माना जाता है। कुण्डली में शुक्र मीन राशि में उच्च भाव में रहता है, उन्हें वास्तविक मूल्यों के बजाय भौतिक, सांसारिक सुख में बहुत ज्यादा लिप्त होने की संभावना रहती है। स्त्री के प्रति आकर्षण रहता है। मन्त्रमहोदधि के अनुसार शुक्र यदि जन्मपत्रिका में मीन एवं धनु राशि में होने से वह गुरु की तरह प्रभावी होता है अर्थात 9-12 वी राशि में शुक्र होने से वह गुरु जैसी दृष्टि 5, 7, 9 रूप से देखते हैं। शुक्र तीन राशि - नक्षत्रों का स्वामी है- भरणी {मेष राशि}, पूर्वाफाल्गुनी (सिंह राशि) तथा पूर्वाषाढा (धनु राशि)। इन तीनों नक्षत्रों की एक खाशियत यह भी है कि ये धनदायक, लक्ष्मी रूप हैं। अनेक ज्योतिष शास्त्रों एवं आदि शंकराचार्य द्वारा रचित सौन्दर्य लहरी आदि ग्रन्थों के अनुसार शुक्र के इन नक्षत्र-वारों में समृद्धि हेतु बहुत सी श्री पूजा की जाती हैं। स्थिर धन एवं स्थाई सम्पत्ति के दाता हैं- शुक्रचार्य - कुंडली में अगर शुक्रदेव स्थिर राशि जैसे- वृषभ, सिंह और कुंभ राशि में हों, तो ऐसा जातक घोर गरीबी परिवार में जन्म लेकर भी अंत में अथाह सम्पदा का मालिक बन जाता है। तीसरे भाव में बैठे शुक्र 5 से 7 भाई-बहिन देते हैं। शुक्र का महत्त्व क्या है? - पृथ्वी के ऊपर के सभी लोकों में शुक्र मंडल की स्थिति शुक्र जीवनसंगी, प्रेम, विवाह, विलासिता, समृद्धि, सुख, सभी वाहनों, कला, नृत्य, संगीत, अभिनय, जुनून और काम का प्रतीक है। शुक्र के संयोग से ही लोगों को इंद्रियों पर संयम मिलता है और नाम व ख्याति पाने के योग्य बनते हैं। शुक्र के दुष्प्रभाव क्यों जानना जरूरी है? - शुक्र के दुष्प्रभाव से सुंदरता नष्ट नहीं होती है। त्वचा पर अनेक निशान होते हैं। नेत्र रोग, यौन समस्याएं, अपच, कील-मुहासे, नपुंसकता, क्षुधा की हानि और त्वचा पर चकत्ते हो सकते हैं। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जातक का जिस नक्षत्र में जन्म होता है, उसी के स्वामी की महादशा होती है। भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढा नक्षत्र में जिनका जन्म होता है, उन्हें शुक्र की महादशा मिलती है। यह २० वर्षों के लिये सबसे लंबी सक्रिय होती है। जन्म पत्रिका में शुक्र शुभ होने से खासकर दूसरे, छठे, आठवें, बारहवें भाव में होने से उसे कहीं अधिक धन, सौभाग्य और विलासिता सुलभ हो जाती है। शुक्र को गुरु जैसा ही शुभ ग्रह है। केन्द्र में स्वग्रही या उच्च के शुक्र मालव्य योग बनाते हैं, जो मुख्य पंच महायोगों में से एक है। इसके अलावा कुण्डली में शुक्र अधिकतर लाभदायी ग्रह माना जाता है। शुक्र हिन्दू कैलेण्डर के माह ज्येष्ठ का स्वामी भी माना गया है। शुक्र को कुबेर के खजाने का रक्षक माना गया है। शुक्र के प्रिय वस्तुओं में श्वेत वर्ण, धातुओं में श्वेत स्वर्ण यानि प्लेटिनम एवं रत्नों में हीरा है। शुक्र की प्रिय दशा दक्षिण-पूर्व तथा ऋतुओं में वसंत ऋतु तत्व अग्नि है। चंद्र मंडल से २ लाख योजन ऊपर कुछ तारे हैं। इन तारों के ऊपर ही शुक्र मंडल स्थित है, जहां शुक्र का निवास है। इनका प्रभाव पूरे ब्रह्मांड के निवासियों के लिये शुभदायी होता है। तारों के समूह के १६ लाख मील ऊपर शुक्र रहते हैं। यहां शुक्र लगभग सूर्य के समान गति से ही चलते हैं। कभी शुक्र सूर्य के साथ 2 घर आगे या पीछे तक रहते हैं। शुक्र के गले में आप के शिष्य राहु का निवास है। पूरे शरीर भर में पुच्छल तारे तथा रोमछिद्रों में अनेक तारों का निवास है। बनारस में बाबा विश्वनाथ की गली के अंतिम छोर में शुक्रेश्वर महादेव का स्वयंभु शिवलिंग लाखों वर्ष पुराना है। अपनी पूजा-पाठ, साधना का बखान न करें - बहुत से लोग दिखावे की पूजा करते हैं, इससे शुक्र पीड़ित होते हैं। शुक्र की प्रसन्नता के लिए कभी भी खुलेआम माला जाप न करें। शुक्रनीति के अनुसार जो मनुष्य अपनी पूजा-पाठ और मंत्र को गुप्त रखता है, उसे ही अपने पुण्य कर्मों का फल मिलता है। लेकिन कई लोग अपने जप-तप, पूजा-पाठ आदि का बखान करते रहते हैं, तो ऐसे में उन पर न तो भगवान की कृपा होती है और न ही मंत्र फलित होता है। अपने फायदे के लिए किसी की झूठी तारीफ न करें, इससे शुक्र बहुत हानि करते हैं। शुक्र की जन्मतिथि तथा नक्षत्र - ब्रह्मा जी के मानस पुत्र भृगु ऋषि का विवाह प्रजापति दक्ष की कन्या ख्याति से हुआ जिससे धाता,विधाता दो पुत्र व श्री नाम की कन्या का जन्म हुआ। भागवत पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के कवि नाम के पुत्र भी हुए जो कालान्तर में शुक्राचार्य नाम से प्रसिद्ध हुए! अटाटूट बैभव चाहिए, तो केवल शुक्राचार्य के परम गुरु महादेव की पूजा कर दीपक जलाएं औऱ शिवलिंग पर जलयुक्त दूध चढ़ाएं। यह प्रक्रिया 20 दिन और महीने की है। शुक्र के बारे में विस्तार से दुर्लभ जानकारी आगे कभी दी जाएगी। हम इसे मुद्रित कर रहे हैं। कुछ समय लगेगा। सूर्य और राहु, शुक्र की शक्ति के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। दुनिया के सारे ज्योतिषी कालसर्प के धंधे में लगे हैं। कुछ शनि को पुजवा रहे हैं। कुछेक पितृदोष की शांति में लगे हैं। अगर जिसने भी शुक्र सूर्य को साध लिया, तो जीवन चमत्कारी हो सकता है। अल्प लोगों को ही ज्ञात होगा कि दीपावली का सीधा कनेक्शन शुक्राचार्य से ही है। दीपावली अर्थ है दीप+अवली। अवली का अर्थ है श्रंखला अर्थात दीपावली के दिन घर तथा निवास के नजदीक शिवालय में दीपों की अवली/श्रंखला बनाकर प्रज्ज्वलित करना। लक्ष्मी गणेश की पूजा का विधान नहीं है। केवल दीपदान का महत्व है। भक्तगण 500 रुपये के दीपक जलाने में हाथ खींचते हैं और अथाह धन-सम्पदा की कामना रखते हैं। वे सपने करोड़ों के देखते हैं।

शुक्र ग्रह के रूप में शुक्राचार्य की मूर्ति

असुराचार्य, भृगु ऋषि तथा दिव्या के पुत्र जो शुक्राचार्य के नाम से अधिक विख्यात हैं। इनका जन्म का नाम 'शुक्र उशनस' है। पुराणों के अनुसार यह असुरों ( दैत्य , दानव और राक्षस ) के गुरु तथा पुरोहित थे।

कहते हैं, भगवान के वामनावतार में तीन पग भूमि प्राप्त करने के समय, यह राजा बलि की झारी (सुराही) के मुख में जाकर बैठ गए थे और वामनावतार द्वारा दर्भाग्र (कुशा) से सुराही को साफ करने की क्रिया में इनकी एक आँख फूट गई थी। इसीलिए यह "एकाक्ष" भी कहे जाते थे। आरंभ में इन्होंने अंगिरस ऋषि का शिष्यत्व ग्रहण किया किंतु जब वह अपने पुत्र के प्रति पक्षपात दिखाने लगे तब इन्होंने शंकर की आराधना कर भगवान शंकर से मृतसंजीवनी विद्या प्राप्त की जिसके प्रयोग से उन्हें युद्ध में मृत्यु होने पर मृत योद्धा को पुनः जीवित करने की शक्ति प्राप्त थी। इसी कारण देवासुर संग्राम में असुर अनेक बार जीते। इन्होंने एक हजार अध्यायों वाले "बार्हस्पत्य शास्त्र" की रचना की। 'गो' और 'जयन्ती' नाम की इनकी दो पत्नियाँ थीं। असुरों के आचार्य होने के कारण ही इन्हें 'असुराचार्य' या शुक्राचार्य कहते हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि शुक्राचार्य ने भगवान शिव की घोर तपस्या की थी और उनसे मृतसंजीवनी मंत्र प्राप्त किया था, जिस मंत्र का प्रयोग उन्होंने देवासुर संग्राम में देवताओं के विरुद्ध किया था जब असुर देवताओं द्वारा मारे जाते थे, तब शुक्राचार्य उन्हें मृतसंजीवनी विद्या का प्रयोग करके जीवित कर देते थे। यह विद्या अति गोपनीय ओर कष्टप्रद साधनाओं से सिद्ध होती है।उनकी असली समाधी बेट कोपरगाव में है। और उसे देखने के लिये लोग आते है।

मृतसंजीवनी विद्या (परिचय व शोध):- by: Dr.R.B.Dhawan (Shukracharya)

विनियोग - अस्य श्रीमृत्संजीवनी मंत्रस्य शुक्र ऋषि:, गायत्री छ्न्द:, मृतसंजीवनी देवता, ह्रीं बीजं, स्वाहा शक्ति:, हंस: कीलकं मृतस्य संजीवनार्थे विनियोग:।

मृतसंजीवनी महामंत्र :- ॐ ह्री हंस: संजीवनी जूं हंस: कुरू कुरू कुरू सौ: सौ: हसौ: सहौ: सोsहं हंस: स्वाहा।

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