गणित में जब किसी संख्या को शून्य से भाग करते हैं तो इसे शून्य से भाजन (division by zero) कहते हैं। इस भाजन में भाजक (divisor) शून्य होता है। ऐसे भाजन को a/0 लिखा जा सकता है जहाँ a भाज्य (dividend (अंश)) है। सामान्य अंकगणित में यह व्यंजक अर्थहीन है क्योंकि कोई ऐसी संख्या नहीं है जिसको 0 से गुणा करने पर a मिलता है (यहाँ माना गया है कि a≠0)। अतः शून्य से भाजन अपरिभाषित है। चूँकि किसी भी संख्या में शून्य का गुणा करने पर परिणाम शून्य ही आता है, इस कारण 0/0 का भी कोई निश्चित मान नहीं है। पर भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन ने अपनी प्रमेय में ये सिद्ध किया है कि 0/0=1 पर बात अगर प्रयोगिक या प्रेक्टिकल की हो तो ये सिद्ध नही किया जा सकता।। पर गणित में ऐसी बहुत सी बातें है जिन्हें मैथेमेटिकल थेराम के जरिये सिद्ध कर सकते है पर प्रेक्टीकली नही।यही बात क्वाण्टम स्टेटेस्टिक्स (बोस आइंस्टाइन और फर्मी डीराक) और क्लासिकल स्टेटिस्टिक्स (मैक्सवेल वोल्टज़मेन)पर लागू है। रामानुजन् के अनुसार 0 को हम सापेक्ष या रिलेटिव प्लेट फार्म पर अस्तित्व हीं या nul मानते है पर निरपेक्ष या अब्सल्यूट प्लेट फॉर्म पर 0 कभी भी nul नही हो सकता। इसी लिए किसी संख्या के दाहिने और 0 लग जाय तो वो दस गुना बढ़ जाती है।।

इतिहास संपादित करें

ब्रह्मगुप्त (598-668) द्वारा रचित ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त वह सबसे प्राचीन ग्रन्थ है जिसमें शून्य तथा शून्य से सम्बन्धित संक्रियाएं (ऑपरेशन्स) वर्णित हैं। ब्रह्मगुप्त ने 0/0 = 0 बताया है किन्तु a/0 (जहाँ a ≠ 0) के बारे में कुछ नहीं कहा है।

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