श्रीवत्स हिन्दू धर्म और बौद्ध धर्म, दोनों के लिए ही मंगलकारी चिह्न है।

  • ब्रह्म पुराण में लक्ष्मी व भगवान विष्णु का क्रीड़ा स्थल द्रोण पर्वत को बताया गया है। इस पुराण में विष्णु के वक्षस्थल पर श्रीवत्स के चिन्ह का वर्णन मिलता है। श्रीवत्स के चिन्ह कारण ही ब्रrापुराण में भगवान विष्णु को श्रिया युक्त भी कहा गया है। इनके अनेक नामों में श्रीपति, श्रीधर, श्रीनवास आदि नाम भी मिलते हैं। अर्थात श्री लक्ष्मी ही लक्ष्मी है। जो कि विष्णु की प्रिया के रूप में उनसे व उनके नामों से युक्त हैं।
प्रमुख बौद्ध चिह्नः श्रीवत्स त्रिरत्न् के साथ, दोनों एक चक्र के ऊपर मण्डित हैं व चक्र एक तोरण के ऊपर बना है
  • भगवान की दिव्य मूर्ति कुछ हरित वर्ण की, पाषाण शिला में है। मूर्ति की ऊंचाई लगभग डेढ फुट है। भगवान पद्मासन में विराजमान हैं। पद्मासन योग मुद्रा में हैं। पद्मासन के ऊपर भगवान बदरीनाथजी के गम्भीर बर्तुलाकार ’नाभिहृद‘ के दर्शन होते हैं। यह ध्यान साधक को साधना में गाम्भीर्य प्रदान करता है तथा मन की चपलता नष्ट करता है। नाभि से ऊपर भगवान बदरीनाथजी के विशाल वक्षस्थल के दर्शन होते हैं। वक्षस्थल के बामभाग में ’भृगुलता‘ का चिह्व तथा दायें भाग में ’श्रीवत्स‘ चिह्व स्पष्ट दृष्टिगत होते हैं। भृगुलता भगवान की सहिष्णुता और क्षमाशीलता का प्रतीक है तथा श्रीवत्स दर्शन शरणागति दायक और भक्तवत्सलता का प्रतीक हैं।