मनुष्य, पशुओं और पक्षियों के शरीर में श्वास नलिका (trachea) या साँस की नली वह नली होती है जो गले में स्थित स्वरयंत्र (लैरिंक्स) को फेफड़ों से जोड़ती है और मुंह से फेफड़ों तक हवा पहुँचाने के रास्ते का एक महत्वपूर्ण भाग है। श्वासनली की आन्तरिक सतह पर कुछ विशेष कोशिकाओं की परत होती है जिन से श्लेष्मा (mucus) रिसता रहता है। साँस के साथ शरीर में प्रवेश हुए अधिकतर कीटाणु, धूल व अन्य हानिकारक कण इस श्लेष्मा से चिपक कर फँस जाते हैं और फेफड़ों तक नहीं पहुँच पाते। अशुद्धताओं से मिश्रित यह श्लेष्मा या तो अनायास ही पी लिया जाता है, जिस से ये पेट में पहुँच कर वहां पर हाज़में के रसायनों द्वारा नष्ट कर दिया जाता है, या फिर बलग़म बन कर मुंह में उभर आता है जहाँ से इसे थूका या निग़ला जा सकता है। मछलियों के शरीर में श्वासनली नहीं होती।

श्वासनली (trachea) और उस से सम्बंधित अंग

मनुष्यों में संपादित करें

मनुष्यों में श्वासनली की भीतरी चौड़ाई 21 से 27 मिलीमीटर और लम्बाई 10 से 16 सेन्टीमीटर तक होती है। यह स्वरग्रंथि से शुरू हो कर नीचे फेफड़ों की तरफ आती है और फिर दो नालियों में बट जाती है जिन्हें श्वस्नियाँ (ब्रोंकाई) कहते हैं। दाईं श्वसनी दाएँ फेफड़ें में सांस ले जाती है और बाईं श्वसनी बाएँ फेफड़ें में। श्वासनली को अकड़कर सांस के लिए खुला रखने के लिए श्वासनली के अंदर थोड़ी-थोड़ी दूरी पर 25 से 20 उपस्थि (कार्टिलिज) के बने छल्ले होते हैं। इन सब छल्लों से जुड़ी हुई एक मांसपेशी होती है। जब मनुष्य ख़ांसी करता है तो यह मांसपेशी सिकुड़ जाती है जिस से यह छल्ले भी सिकुड़ जाते हैं और श्वासनली थोड़ी तंग हो जाती है जाती है। श्वासनली के सिकुड़ने से गुज़रने वाली हवा का दबाव और गति ठीक उसी तरह से बढ़ जाती है जिस तरह अगर किसी पानी की नली को सिकोड़ा जाए तो पानी ज़्यादा ज़ोर से आता है। अगर कोई बलग़म या किसी चीज़ के कण श्वासनली में चिपके या फंसे हों तो वो हवा के इस तेज़ बहाव से मुंह की तरफ उड़ते हुए चले जाते हैं। ज़ुक़ाम या कोई ग़लत पदार्थ श्वासनली में जाने की हालत में ख़ांसने की इसी व्यवस्था से श्वासनली स्वयं को साफ़ कर लेती है।

ग्रासनाल और श्वासनली संपादित करें

गले से पेट तक चलती हुई एक और भी नली होती है जिसे ग्रासनाल (esophagus) या खाने की नली कहते हैं। ग्रासनाल और श्वासनली दोनों ही गले से शुरू होतीं हैं। श्वासनली के ऊपर एक छोटा सा लोलक (पल्ला) होता है जिसे कंठच्छद (epiglottis / एपिग्लाटिस) कहते हैं। जब कोई खाना खाता है या कुछ पीता है तो यह कंठच्छद गिर कर श्वासनली को कस के बंद कर देता है। इसी कारण से खाना ग्रासनाल से होते हुए पेट में तो जाता है लेकिन श्वासनाल या फेफड़ों में बिलकुल प्रवेश नहीं करता।

इन्हें भी देखें संपादित करें