सिक्खों के सुधारवादी संगठन के रूप में की स्थापना 1873 में अमृतसर में हुई। यह आन्दोलन ईसाइयों, ब्राह्मसमाजियों, आर्यसमाजियों, अलीगढ़ मूवमेन्ट के समर्थकों, और अहमदिया मुसलमानों के धर्म-परिवर्तक कार्वाइयों के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया के रूप में आरम्भ हुई। मुख्यधारा के सिख बड़ी तेजी से दूसरे धर्मों और पन्थों में चले जा रहे थे।[1]

बाद में 1879 में लाहौर में भी सिंह सभा का गठन किया गया।

इस आन्दोलन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे-

  • (१) सच्चे सिख धर्म का प्रचार-प्रसार करना,
  • (२) सिख धर्म के खोए गौरव को पुनः प्राप्त करना,
  • (३) सिखों के ऐतिहासिक एवं धार्मिक पुस्तकें लिखना और उनका वितरण करना,
  • (४) पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से गुरुमुखी पंजाबी का प्रचार करना,
  • (५) सिख धर्म में सुधार करना और दूसरे धर्मों में चले गए लोगों की घर-वापसी करना,

जब सिंह सभा की स्थापना हुई थी, उस समय इसकी नीति यह थी कि दूसरे पन्थों की आलोचना न की जाय

इन्हें भी देखें संपादित करें

रेशमी पत्र आन्दोलन

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Barrier, N. Gerald; Singh, Nazer (1998). Singh, Harbans (संपा॰). Singh Sabha Movement in Encyclopedia of Sikhism Volume IV (अंग्रेज़ी में) (4th संस्करण). Patiala, Punjab, India: Punjab University, Patiala, 2002. पपृ॰ 205–212. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788173803499. अभिगमन तिथि 3 December 2019.