सौम

इस्लामी न्यायशास्त्र द्वारा विनियमित उपवास

सौम: (صوم) और बहुवचन सियाम अरबी भाषा के शब्द हैं। व्रत उपवास को अरबी में "सौम" कहते हैं। रमज़ान के पवित्र माह में रोज़ा रखना मुसलमानों पर फ़र्ज़ (अनिवार्य) है। उर्दू और फ़ारसी भाषा में सौम को "रोज़ा" कहते हैं। इस्लाम के पांच मूल स्तंभ में से एक सौम है। जिसका अर्थ है रुक जाना।[1]रोज़े के तक़वा, पाप से दूरी, भूख को जानना और अल्लाह से माफ़ी जैसे बुनियादी मक़सद भी हैं |[2]

मस्जिद मे इफ़्तारी करते हुये।

नाम संपादित करें

जैसे के सौम अरबी भाषा का शब्द है। अरबी देशों में इसको सौम के नाम से ही जाना जाता है। लेकिन फ़ारसी भाषा के असर रुसूख रखने वाले देश जैसे, तुर्की, ईरान, पाकिस्तान, भारत, बंग्लादेश, में इसे रोज़ा के नाम से जाना जाता है। मलेशिया, सिंगपूर, ब्रूनै जैसे देशों में इसे पुआसा कहते हैं, इस शब्द का मूल संस्कृत शब्द उपवास है।


सौम (रोज़ा) और रमज़ान संपादित करें

रमजान मास को अरबी में माह-ए-सियाम भी कहते हैं रमजान का महीना कभी २९ दिन का तो कभी ३० दिन का होता है। इस महीने में उपवास रखते हैं।

रोज़े का तरीक़ा संपादित करें

  • इफ़्तारी: दिन भर न कुछ खाते हैं न पीते हैं। शाम को सूर्यास्त समय के बाद खाते पीते हैं जिसे इफ़्तारी कहते हैं।

रोजे के नियम संपादित करें

'रोज़े' के कुछ नियम हैं, कुछ काम एसे होते हैं जिन के करने से रोज़ा टूट (खतम हो) जाता है, ओर उन से मिलते जुलते कुछ काम एसे होते हैं जिन के करने से रोजे पर कोई असर नहीं पड़ता, जिन कारणों से रोज़ा टूट जाता है वह दो प्रकार के होते हैं, एक वह जिन की वजह से रोज़े की क़ज़ा के साथ-साथ कफ्फारा भी वाजिब होता है और दूसरा वह जिन जिन की वजह से सिर्फ रोज़े की क़ज़ा करनी पड़ती है, कफ्फरा वाजिब नहीं होता।

वह चीज़ें जिन से रोज़ा टूट जाता है और कफ्फारा भी वाजिब होता है संपादित करें

कुछ चीज़ें एसी हैं कि अगर रोज़ा दार उन में से कोई एक भी अपनी मरज़ी से जान बूझ कर बग़ैर मजबूरी के कर ले तो उस पर क़ज़ा ओर कफ्फारा दोनों वाजिब हो जाते हैं:

तक़रीबन पंद्रह चीज़ें एसी हैं कि अगर रोज़ा दार उन में से कोई एक भी अपनी मरज़ी से जान बूझ कर बग़ैर मजबूरी के कर ले तो उस पर क़ज़ा ओर कफ्फारा दोनों वाजिब हो जाते हैं:

1. हम्बिसतरी करना, (मियां-बीवी का रोज़े की हालत में शारीरिक संबंध बनाना, दोनों पर क़ज़ा ओर कफ्फारा दोनों वाजिब हो जाते हैं), 2. जान बूझ कर खाना, 3. पीना,(चाहे एसी चीज़ हो जो बतौरे ग़िज़ा के खाई जाती हो या एसी जो बतौरे दवा के इस्तेमाल की जाती हो) 4. बारिश का क़तरा जो मुंह में पड़ गया हो निगल लेना, 5. गैंहू खाना, 6. गैंहू चबाना, 7. गैंहू का दाना निगल लेना, 8. तिली का दाना या उस जैसी कोई चीज़ बाहर से मुंह में ले जाकर निगलना, 9. सूंधी मिट्टी खाना, 10. अगर किसी की आदत सामान्य मिट्टी खाने की हो तो उस के लिए सामान्य मिट्टी का भी यही हुक्म है, 14. नमक खाना!

इन कामों से क़ज़ा ओर कफ्फारा दोनों के वाजिब होने के लिए तीन चीजों का होना जरूरी है,1. मरज़ी से किया हो, 2. मजबूर न हो, 3. जान बूझ कर किया हो।[1][मृत कड़ियाँ]


क़ुर'आन में सौम संपादित करें

क़ुरआन में रोज़े के बारे में यूं प्रकटित होता है:

"ऐ ईमान वालो! तुमपर रोज़ा रखना फ़र्ज़ (अनिवार्य) कर दिया गया है, जैसे उन लोगों पर फ़र्ज़ (अनिवार्य) किया गया जो तुमसे पहले थे, ताकि तुम परहेज़गार बन जाओ।"
—क़ुरान, सूरह २, (अल-बक़रा) आयत 183[3]


क़ुर'आन में सौम के प्रकार संपादित करें

  1. आहार का सौम (सौम उत त'आम).[4]
  2. धन का सौम (सौम उल माल).[5]
  3. शब्द का सौम (सौम उल कलाम).[6]

साधारण रूप में "सौम" का अर्थ "उपवास" (आहार का सौम) है।

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. प्रोफेसर जियाउर्रहमान आज़मी, कुरआन मजीद की इन्साइक्लोपीडिया (20 दिसम्बर 2021). "रोज़ा (उपवास)". www.archive.org. पृष्ठ 582.
  2. मौलाना मुहम्मद नजीब कासमी, रमज़ान अल्लाह का एक उपहार (20 दिसम्बर 2021). "रोज़े के चंद अहम बुनियादी मक़ासिद". www.archive.org. पृष्ठ 11.
  3. Qur'an 2:183
  4. Qur'an 2:187
  5. Qur'an 2:188
  6. Qur'an 19:26