स्फुरदीप्ति

एक प्रक्रिया जिसमें किसी पदार्थ द्वारा अवशोषित ऊर्जा को प्रकाश के रूप में अपेक्षाकृत धीरे-धीरे

स्फुरदीप्ति (Phosphorescence) पदार्थ का वो गुण है जिस के कारण पदार्थ से प्रकाश का उत्सर्जन ज्ञेय ऊष्मा के बिना होता है। ऍसे पदार्थ, जिस मे से प्रकाश का उत्सर्जन उत्तेजक विकिरण के समाप्त हो जाने के पश्चात्‌ होता है, 'स्फुरदीप्त पदार्थ' (Phosphorescent material) कहलाते हैं। स्फुरदीप्ति विभिन्न पदार्थो में भिन्न भिन्न काल तक बनी रह सकती है तथा यह काल माइक्रोसेकंड (10e-6 सेकंड) से लेकर कई घंटों तक का हो सकता है। नाभिकीय गणित्र के लिये केवल लघुकालवाले स्फुरदीप्त पदार्थ ही उपयोगी होते हैं। इसमें कई ऐसे पदार्थ पाए जाते है, जो प्रकाश को अवशोषित कर एक अलग तरह का प्रकाश उत्सर्जित करते है | इसमें कुछ पदार्थ ऐसे हो है, जिन पर जब तक प्रकाश पड़ता है, तब तक वे प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं | इस तरह के पदार्थों को प्रतिदीप्ति पदार्थ कहते है | वहीँ कुछ पदार्थ ऐसे भी होते है, जिन पर प्रकाश पड़ना बंद भी हो जाए, फिर भी उनके द्वारा कुछ देर तक प्रकाश का उत्सर्जन होता रहता है | इस घटना को ही ' स्फुरदीप्ति ' (Phosphorescence) कहते है और ऐसे पदार्थों को ' स्फुरदीप्ति पदार्थ ' कहा जाता हैं | जिंक सल्फाइड . केल्सियम सल्फाइड, बेरियम सल्फाइड आदि स्फुरदीप्ति पदार्थों के उदाहरण है | प्रकाश डालना बंद करने पर जितने समय तक स्फुरदीप्ति पदार्थ प्रकाश का उत्सर्जन करते हैं, उसे ' स्फुरदीप्ति काल ' कहा जाता है, जो प्रकाश की प्रकृति पर निर्भर करता है | गर्म करने पर स्फुरदीप्ति पदार्थों की क्षमता नष्ट हो जाती है | आजकल घडी की सुइयों, साइन बोर्ड, विद्युत बोर्ड इत्यादि पर स्फुरदीप्ति पदार्थों का लेप चढाते हैं | ये पदार्थ दिन में सूर्य का प्रकाश अवशोषित कर रात में चमकते हैं | स्फुरदीप्ति पदार्थों के अध्ययन के दौरान ही वर्ष 1897 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक हेनरी बैकेरल ने रेडियोधर्मिता की खोज की थी |

स्फुरदीप्ति

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