हकीम अजमल ख़ान

भारतीय राजनेता

हकीम अजमल ख़ान या अजमल ख़ान (1868-1927) (1284 Shawwal 17)[3][4] एक यूनानी चिकित्सक और भारतीय मुस्लिम राष्ट्रवादी राजनेता एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्हें बीसवीं शताब्दी के आरम्भ में दिल्ली में तिब्बिया कॉलेज की स्थापना करके भारत में यूनानी चिकित्सा का पुनरुत्थान करने के लिए जाना जाता है और साथ ही एक रसायनज्ञ डॉ॰ सलीमुज्ज़मन सिद्दीकी को सामने लाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है जिनके यूनानी चिकित्सा में उपयोग होने वाले महत्वपूर्ण चिकित्सीय पौधों पर किये गए आगामी शोधों ने इसे एक नई दिशा प्रदान की थी।[5][6][7]. वे गाँधी जी के निकट सहयोगी थे। उन्होने असहयोग आन्दोलन (सत्याग्रह) में भाग लिया था, खिलाफत आन्दोलन का नेतृत्व किया था, साथ ही वो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष भी निर्वाचित हुये थे, तथा 1921 में अहमदाबाद में आयोजित कांग्रेस के सत्र की अध्यक्षता भी की थी।[8].

हकीम अजमल ख़ान

हकीम अजमल ख़ान
जन्म 11 फ़रवरी 1868[1][2]
दिल्ली
मौत 29 दिसम्बर 1927
राष्ट्रीयता भारतीय
पेशा चिकित्सक, राजनीतिज्ञ
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वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष बनने वाले पांचवें मुस्लिम थे।

वे जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापकों में से एक थे और 1920 में इसके कुलाधिपति बने तथा 1927 में अपनी मृत्यु तक इसी पद पर बने रहे.[9]

प्रारंभिक जीवन संपादित करें

हकीम अजमल ख़ान साहिब का जन्म 1863 में हुआ था। अजमल ख़ान के पूर्वज, जो प्रसिद्ध चिकित्सक थे, भारत में मुग़ल साम्राज्य के संस्थापक बाबर के शासनकाल में भारत आए थे। हकीम अजमल ख़ान के परिवार के सभी सदस्य यूनानी हकीम थे। उनका परिवार मुग़ल शासकों के समय से चिकित्सा की इस प्राचीन शैली का अभ्यास करता आ रहा था। वे उस ज़माने में दिल्ली के रईस के रूप में जाने जाते थे। उनके दादा हकीम शरीफ ख़ान मुग़ल शासक शाह आलम के चिकित्सक थे और उन्होंने शरीफ मंजिल का निर्माण करवाया था, जो एक अस्पताल और महाविद्यालय था जहाँ यूनानी चिकित्सा की पढ़ाई की जाती थी।[10][11]

उन्होंने अपने परिवार के बुजुर्गों, जिनमें से सभी प्रसिद्ध चिकित्सक थे, की देखरेख में चिकित्सा की पढ़ाई शुरु करने से पहले, अपने बचपन में कुरान को अपने ह्रदय में उतारा और पारंपरिक इस्लामिक ज्ञान की शिक्षा भी प्राप्त की जिसमें अरबी और फारसी शामिल थी। उनके दादा हकीम शरीफ ख़ान तिब्ब-इ-यूनानी या यूनानी चिकित्सा के अभ्यास के प्रचार पर जोर देते थे और इस उद्देश्य के लिए उन्होंने शरीफ मंजिल नामक अस्पताल रूपी कॉलेज की स्थापना की, जो पूरे उपमहाद्वीप में सबसे लोकोपकारी यूनानी अस्पताल के रूप में प्रसिद्ध था जहां गरीब मरीजों से कोई भी शुल्क नहीं लिया जाता था।

योग्य होने पर हकीम अजमल ख़ान को 1892 में रामपुर के नवाब का प्रमुख चिकित्सक नियुक्त किया गया. कोई भी प्रशस्ति हकीम साहेब की लिए बहुत बड़ी नहीं है, उन्हें "मसीहा-ए-हिंद" और "बेताज बादशाह" कहा जाता था। उनके पिता की तरह उनके इलाज में भी चमत्कारिक असर था और ऐसा माना जाता था कि उनके पास कोई जादुई चिकित्सकीय खजाना था, जिसका राज़ केवल वे ही जानते थे। चिकित्सा में उनकी बुद्धि इतनी कुशाग्र थी कि यह कहा जाता था कि वे केवल इन्सान का चेहरा देखकर उसकी किसी भी बीमारी का पता लगा लेते थे। हकीम अजमल ख़ान मरीज को एक बार देखने के 1000 रुपये लेते थे। शहर से बाहर जाने पर यह उनका दैनिक शुल्क था, लेकिन यदि मरीज उनके पास दिल्ली आये तो उसका इलाज मुफ्त किया जाता था, फिर चाहे वह महाराजा ही क्यों न हों.

हकीम मोहम्मद अजमल ख़ान अपने समय के सबसे कुशाग्र और बहुमुखी व्यक्तित्व के रूप में प्रसिद्ध हुए. भारत की आजादी, राष्ट्रीय एकता और सांप्रदायिक सद्भाव के क्षेत्रों में उनका योगदान अतुलनीय है। वे एक सशक्त राजनीतिज्ञ और उच्चतम क्षमता के शिक्षाविद थे।

हकीम अजमल ने यूनानी चिकित्सा की देशी प्रणाली के विकास और विस्तार में काफी दिलचस्पी ली. हकीम अजमल ख़ान ने शोध और अभ्यास का विस्तार करने के लिए तीन महत्वपूर्ण संस्थाओं का निर्माण करवाया, दिल्ली में सेंट्रल कॉलेज, हिन्दुस्तानी दवाखाना तथा आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बिया कॉलेज; और इस प्रकार भारत में चिकित्सा की यूनानी प्रणाली को विलुप्त होने से बचाने में मदद की. यूनानी चिकित्सा के क्षेत्र में उनके अथक प्रयास ने ब्रिटिश शासन में समाप्ति की कगार पर पहुंच चुकी भारतीय यूनानी चिकित्सा प्रणाली में नई ऊर्जा और जीवन का संचार किया।[12][13]

जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के संस्थापकों में से एक, अजमल ख़ान को 22 नवम्बर 1920 में इसका प्रथम कुलाधिपति चुना गया और 1927 में अपनी मृत्यु तक उन्होंने इस पद को संभाला. इस अवधि के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय को अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित करवाया और आर्थिक तथा अन्य संकटों के दौरान व्यापक रूप से कोष इकट्ठा करके और प्रायः खुद के धन का उपयोग करके उन्होंने इसकी सहायता भी की.[14][15]

राष्ट्रवाद संपादित करें

अजमल ख़ान के परिवार के द्वारा शुरू किये गए उर्दू साप्ताहिक 'अकमल-उल-अख़बार' के लिए लेखन कार्य आरम्भ करने के पश्चात से उनके जीवन ने चिकित्सा के क्षेत्र से राजनीति के क्षेत्र की ओर रुख कर लिया। ख़ान उस मुस्लिम दल का नेतृत्व भी कर रहे थे, जो 1906 में शिमला में भारत के वायसरॉय को ज्ञापन सौपने के लिए किया गया था। उसी साल, 30 दिसम्बर 1906 को जब इशरत मंजिल पैलेस में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की स्थापना की गयी तब वे भी ढाका में मौजूद थे। एक समय जब कई मुस्लिम नेताओं को गिरफ्तार किया गया, तब डॉ अजमल ख़ान ने मदद के लिए महात्मा गांधी से संपर्क किया। इसी प्रकार, प्रसिद्ध खिलाफत आन्दोलन में गांधीजी उनसे और अन्य मुस्लिम नेताओं से जुड़े, जैसे मौलाना आजाद, मौलाना मोहम्मद अली और मौलाना शौकत अली. अजमल ख़ान ऐसे एकमात्र व्यक्ति भी हैं जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, मुस्लिम लीग और ऑल इंडिया खिलाफत कमेटी का अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। उन्होंने अपनी यूनानी पढ़ाई दिल्ली के सिद्दीकी दवाखाना के हकीम अब्दुल जमील की देखरेख में पूरी की.

विरासत संपादित करें

हकीम अजमल ख़ान का पूरा जीवन परोपकार और बलिदान का प्रतिरूप है। हकीम अजमल ख़ान की मृत्यु 29 दिसम्बर 1927 को दिल की समस्या के कारण हो गयी थी। हकीम अजमल ख़ान ने अपनी सरकारी उपाधि छोड़ दी और उनके भारतीय प्रशंसकों ने उन्हें मसीह-उल-मुल्क (राष्ट्र को आरोग्य प्रदान करने वाला) की उपाधि दी. उनके बाद डॉ॰ मुख्त्यार अहमद अंसारी जेएमआई के कुलाधिपति बने. एक अतालता-रोधी एजेंट अज्मलिन और एक कारक संकर अज्मलन का नामकरण उनके नाम पर ही किया गया.[16]

 
दवाखाना हकीम अजमल ख़ान प्राइवेट लिमिटेड

विभाजन के बाद संपादित करें

भारत के विभाजन के बाद हकीम ख़ान के पौत्र हकीम मुहम्मद नबी ख़ान पाकिस्तान चले गए। हकीम नबी ने हकीम अजमल ख़ान से तिब्ब (औषधि) सीखी और लाहौर में 'दवाखाना हकीम अजमल ख़ान' की स्थापना की, जिसकी शाखाएं पूरे पाकिस्तान में हैं। अजमल ख़ान के परिवार का आदर्श वाक्य है 'अज़ल-उल-अल्लाह-खुदातुल्मल', जिसका अर्थ है 'किसी को व्यस्त रखने का सबसे अच्छा ज़रिया है मानवता की सेवा' और उनके वंशज इसी भावना का अनुसरण करते आ रहे हैं।

उद्धरण संपादित करें

  • असहयोग की भावना पूरे देश में व्याप्त है और संपूर्ण भारत में शायद ही ऐसा कोई सच्चा भारतीय होगा जो स्वराज हासिल करने और पंजाब तथा खिलाफत के दौरान किये गए अत्याचारों को सुधारने के लिए पीड़ा और त्याग की भावना से भरा न हो. सभापति की ओर से, आई.एन.सी., 1921 सत्र, अहमदाबाद.[8]

अग्रिम पठन संपादित करें

  • मोहम्मद अब्दुर रज्ज़ाक द्वारा लिखित हकीम अजमल ख़ान, दी वर्सटाइल जीनियस . यूनानी चिकित्सा में अनुसन्धान के लिए केन्द्रीय परिषद, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार, 1987.
  • जफर अहमद निजामी द्वारा हकीम अजमल ख़ान, प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार, 1988.[1]..
  • श्री राम बख्शी द्वारा हकीम अजमल ख़ान (भारतीय स्वतंत्रता सेनानी श्रृंखला). अनमोल पब्लिकेशन्स, 1996. आईएसबीएन 8174882642.
  • हकीम सैयद जिल्लुर रहमान द्वारा हकीम अजमल ख़ान (हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी संस्करण), नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत सरकार, नई दिल्ली, भारत, 2004.

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Hameed, A., Institute of History of Medicine, Medical Research (नई दिल्ली, भारत). Dept. of History of Medicine, Science (1986). Exchanges Between India and Central Asia in the Field of Medicine. Department of History of Medicine and Science, Institute of History of Medicine and Medical Research. मूल से 12 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मई 2013.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 मई 2013.
  3. Hameed, A., Institute of History of Medicine, Medical Research (नई दिल्ली, भारत). Dept. of History of Medicine, Science (1986). Exchanges Between India and Central Asia in the Field of Medicine. Department of History of Medicine and Science, Institute of History of Medicine and Medical Research. मूल से 12 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 मई 2013.सीएस1 रखरखाव: एक से अधिक नाम: authors list (link)
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 12 सितंबर 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 मई 2013.
  5. "Hakim Ajmal Khan (Biography)". Publications Division, Govt of India. मूल से 24 सितंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2011.
  6. हाकिम सैयद जिल्लुर रहमान द्वारा हाकिम अजमल खान (हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी संस्करण), नेशनल बुक ट्रस्ट, भारत सरकार, नई दिल्ली, भारत, 2004.
  7. "Unani". Department of Ayurveda, Yoga and Naturopathy, Unani, Siddha and Homoeopathy, Govt. of India. मूल से 23 दिसंबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2011.
  8. "Hakim Ajmal Khan (1863-1927) President - Ahmedabad, 1921". Congress Sandesh, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस publication. मूल से 3 मई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2011.
  9. "Hakim Ajmal Khan". Jamia Millia Islamia website. मूल से 18 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2011.
  10. हकीम सैयद जिल्लुर रहमान द्वारा शरीफ मंज़िल, आइवन-आई उर्दू, दिल्ली, जून 1988, पी. 29-35
  11. "Sharif Manzil & Hindustani Dawakhana". The South Asian. अप्रैल 2002. मूल से 6 जून 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2011.
  12. सिंह, पी. 35
  13. हकीम सैयद जिल्लुर रहमान द्वारा मसीह-अल मुल्क हकीम अजमल ख़ान, शईदा-89, (स्मारिका), आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बिया कॉलेज, दिल्ली, 1989
  14. "History of Jamia". Jamia Milia Islamia website. मूल से 16 अप्रैल 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 अप्रैल 2011.
  15. फारुकी, पी. 108
  16. अहमद नसीम संदिल्वी (2003, सलीमुज्ज़मन सिद्दीकी: पाकिस्तान में वैज्ञानिक अनुसंधान के अग्रगामी Archived 2007-09-27 at the वेबैक मशीन. डेली डॉन. 12 अप्रैल 2003.

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें