हरिकृष्ण प्रसाद गुप्ता अग्रहरि

डॉ हरिकृष्ण प्रसाद गुप्ता अग्रहरि का जन्म 25 फरवरी 1950 को परसौनी भाटा नेपाल में हुआ। इनहोने भारत और हंगरी से पी एच डी किया है। इनके अनुसंधात्मक शोध-पत्र बुडापेस्ट विश्व विद्यालय हंगरी द्वारा पुरस्कृत है। इनकी विभिन्न विधाओं में लगभग दो दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हैं। ये नेपाल सरकार की सेवा में अभियंता के पद पर कार्यरत हैं।[1]

याद तुम्हारी ले आती है;
रात न जाने क्यों आती है।
शीतलता भी अब तन-मन में;
ना जाने क्यों झुलसाती है।
शाम ढले परछाई हमसे;
चुपके-चुपके बतियाती है।
झील लगे जंगल में जैसे;
पायलिया-सी खनकाती है।
तपते मन पर आँख की बदली;
शीतल आँसू बरसाती है।
कोयल चुप ही रहती है या;
गीत खुशी के ही गाती है।
बीच भँवर में हिम्मत हमको;
जीवन जीना सिखलाती है।
चाक किया जाना है सीना;
धरती फिर भी मुसकाती है।
पी सकता है विष ये 'अग्रहरि' ही;
फौलादी उसकी छाती है।।

-डॉ॰ हरिकृष्ण प्रसाद गुप्त "अग्रहरि"

सन्दर्भ संपादित करें

  1. उर्विजा (अनियतकालिक पत्रिका), सीतामढ़ी, समकालीन नेपाली साहित्य पर केन्द्रित अंक, संपादक : रवीन्द्र प्रभात, पृष्ठ 95