हर्षनाथ राजस्थान राज्य में सीकर जिले के निकट स्थित एक ऐतिहासिक मंदिर है। वर्तमान में हर्षनाथ नामक ग्राम हर्षगिरि पहाड़ी की तलहटी में बसा हुआ है और सीकर से प्रायः १४ किमी दक्षिण-पूर्व में है। स्थानीय अनुश्रुति के अनुसार यह स्थान पूर्वकाल में 36 मील के घेरे में बसा हुआ था।

हर्षनाथ मंदिर, राजस्थान
हर्षनाथ मंदिर
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिसीकर जिला, भारत
हर्षनाथ मंदिर is located in पृथ्वी
हर्षनाथ मंदिर
लुआ त्रुटि Module:Location_map में पंक्ति 42 पर: The name of the location map definition to use must be specified। के मानचित्र पर अवस्थिति
भौगोलिक निर्देशांक27°30′59.79″N 75°11′1.76″E / 27.5166083°N 75.1838222°E / 27.5166083; 75.1838222निर्देशांक: 27°30′59.79″N 75°11′1.76″E / 27.5166083°N 75.1838222°E / 27.5166083; 75.1838222
वास्तु विवरण
प्रकारमहामेरु शैली, वास्तु शास्त्र एवं पंचरात्र शास्त्र
निर्माताशैव संत भावरक्त द्वारा

हर्षगिरि ग्राम के पास हर्षगिरि नामक पहाड़ी है, जो 3,000 फुट ऊँची है और इस पर लगभग 900 वर्ष से अधिक प्राचीन मंदिरों के खण्डहर हैं। इन मंदिरों में एक काले पत्थर पर उत्कीर्ण लेख प्राप्त हुआ है, जो शिवस्तुति से प्रारम्भ होता है और जो पौराणिक कथा के रूप में लिखा गया है। लेख में हर्षगिरि और मन्दिर का वर्णन है और इसमें कहा गया है कि मन्दिर के निर्माण का कार्य आषाढ़ शुक्ल त्रयोदशी, सोमवार 1030 विक्रम सम्वत् (956 ई.) को प्रार[[म्भ होकर विग्रहराज चौहान के समय में 1030 विक्रम सम्वत (973 ई.) को पूरा हुआ था। यह लेख संस्कृत में है और इसे रामचन्द्र नामक कवि ने लेखबद्ध किया था। मंदिर के भग्नावशेषों में अनेक सुंदर कलापूर्ण मूर्तियाँ तथा स्तंभ आदि प्राप्त हुए हैं, जिनमें से अधिकांश सीकर के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

चाहमान शासकों के कुल देवता – शिव हर्षनाथ का यह मंदिर हर्षगिरी पर स्थित हैं तथा महामेरु शैली में निर्मित है। विक्रम संवत 1030 (973 ई.) के एक अभिलेख के अनुसार इस मंदिर का निर्माण चौहान शासक विग्रहराज प्रथम के शासनकाल में एक शैव संत भावरक्त द्वारा करवाया गया था। मन्दिर में एक गर्भगृह, अंतराल, कक्षासन युक्त रंग मंडप एवं अर्द्धमंडप के साथ एक अलग नदी मंडप भी है। अपनी मौलिक अवस्था में यह मन्दिर एक शिखर से परिपूर्ण था जो अब खंडित हो चुका है। वर्तमान खंडित अवस्था में भी यह मन्दिर अपनी स्थापत्य विशिष्टताओं एवं देवी-देवताओं की प्रतिमाओं सहित नर्तकों, संगीतज्ञों, योद्धाओं व कीर्तिमुख के प्रारूप वाली सजावटी दृश्यावलियों के उत्कृष्ट शिल्प कौशल हेतु उल्लेखनीय है। इस मन्दिर से संलग्न एक ऊंचे अधिष्ठान पर स्थित दूसरा मन्दिर उत्तर मध्यकालीन है, तथा शिव को समर्पित है। कुछ दूरी पर स्थित एक अन्य मन्दिर भैरव को समर्पित है।

वास्तुशिल्प संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें