हीरा डोम (जन्म- 1885 ई॰ के आसपास) उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में विद्यमान प्रथम दलित कवि के रूप में विख्यात हैं जिनकी एकमात्र उपलब्ध भोजपुरी कविता सुप्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिका सरस्वती में छपी थी और जिसमें तत्कालीन सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक विसंगतियों-विडम्बनाओं की विवेकपूर्ण अभिव्यक्ति मार्मिक रूप में हुई है। कुछ अन्य विद्वान स्वामी अछूतानन्द ‘हरिहर’ को पहला दलित कवि कहते हैं, उनकी कविताएँ 1910 से 1927 तक लिखी गई। उसी श्रेणी मे 40 के दशक में बिहारी लाल हरित ने दलितों की पीड़ा को कविता-बद्ध ही नहीं किया, अपितु अपनी भजन मंडली के साथ दलितों को जाग्रत भी किया

जीवन-परिचय संपादित करें

हीरा डोम का जन्म बिहार राज्य के पटना जिले के दानापुर में सन् 1885 के लगभग हुआ था।[1] इनका जीवन-विवरण प्रायः अनुपलब्ध है। डॉ॰ माताप्रसाद ने इन्हें वाराणसी का निवासी बताया है, परन्तु डॉ॰ रामविलास शर्मा[2] से लेकर रमणिका गुप्ता तक इन्हें पटना का निवासी ही मानते हैं।[3]

रचना संपादित करें

इनकी लिखी हुई एकमात्र कविता 'अछूत की शिकायत' उपलब्ध है। यह कविता महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित ‘सरस्वती’ (सितंबर 1914, भाग 15, खंड 2, पृष्ठ संख्या 512-513) में प्रकाशित हुई थी।[4] कवि-समीक्षक मदन कश्यप के अनुसार "हालांकि, सरस्वती में प्रकाशित होना ही इस बात का सुबूत है कि इस कविता को उस समय भी महत्व दिया गया था। फिर भी, समय रहते हिन्दी संसार ने हीरा डोम की खोज खबर नहीं ली अन्यथा उनकी कुछ और रचनाएं, उनके बारे में कुछ और सूचनाएं-- हमारे सामने होतीं।"[5]

अछूत की शिकायत संपादित करें

हीरा डोम तथा उनकी कविता 'अछूत की शिकायत' को प्रकाशन के लम्बे समय बाद व्यापक हिन्दी संसार में चर्चित करने का श्रेय डॉ॰ रामविलास शर्मा को है। "1977 में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण' में डॉ॰ रामविलास शर्मा ने इस कविता को उद्धृत किया। उसके बाद ही इसकी ओर लोगों का ध्यान गया।"[5]

डॉ॰ शर्मा ने इस कविता का परिचय देते हुए लिखा था कि "सितम्बर १९१४ की सरस्वती में पटना के हीरा डोम की कविता 'अछूत की शिकायत' प्रकाशित हुई। यह भोजपुरी में है और सम्भवतः उस भाषा में लिखी हुई यह एकमात्र कविता है जो द्विवेदी जी की सरस्वती में प्रकाशित हुई थी। यह कविता उनके पास भेजी गई थी क्योंकि कविता के ऊपर कोष्ठकों में छपा है-- 'प्राप्त'। हिन्दी में इससे पहले (और बाद को भी) किसी डोम-बन्धु की लिखी कविता मेरे देखने में नहीं आई।"[2]

आगे पूरी कविता उद्धृत करने के बाद डॉ॰ शर्मा की टिप्पणी है कि "हीरा डोम ने किसी से सरस्वती का नाम सुना होगा। मैथिलीशरण गुप्त की तरह सरस्वती में कविता प्रकाशित कराके प्रसिद्ध कवि बनने का स्वप्न तो उन्होंने न देखा होगा पर अपनी शिकायत सरस्वती के माध्यम से शिक्षितजनों तक उन्हें जरूर पहुँचानी थी। द्विवेदी जी ने साहसपूर्वक वह कविता अपनी उस पत्रिका में छापी जिसमें बड़े-बड़े लोग रचनाएँ छपाने को तरसते थे।"[6]

यह कविता पहली दलित कविता के रूप में प्रतिष्ठित है। इसमें निहित गहरी वैचारिकता इसका रचनात्मक वैशिष्ट्य है। सुप्रसिद्ध दलित साहित्यकार शरणकुमार लिंबाले के अनुसार "इसे दलित सोच की वर्तमान धारा की पहली रचना कहा जा सकता है चूँकि इसमें केवल दलितों की शिकायत या व्यथा ही दर्ज नहीं की गई बल्कि आक्रोश और विरोध भी जताया गया है।"[7]

महत्त्व संपादित करें

मदन कश्यप के अनुसार "इस कविता को पढ़ने से स्पष्ट हो जाता है कि यह रात-दिन दुख भोगने वाले जन की करुणा नहीं ताकत की अभिव्यक्ति है और इसका शीर्षक 'अछूत की शिकायत' निश्चित रूप से सम्पादक अथवा किसी अन्य व्यक्ति का दिया हुआ है। अन्यथा इसका शीर्षक 'अछूत की हुंकार' होना चाहिए था।"[8]

डॉ॰ रामविलास शर्मा के अनुसार:

"गाँव के सर्वहारा-समुदाय की वर्ग-चेतना यहाँ पहली बार साफ-साफ प्रतिबिम्बित हुई है।... हीरा डोम कि उक्त रचना में जो प्रतिरोध का स्वर है, शोषण-चक्र के भीतरी तंत्र की जो पहचान है, श्रम करने वालों के महत्व का जो ज्ञान है, करुणा और व्यंग्य के साथ आत्म सम्मान की जो भावना है, वह सब हिन्दी कविता में अभी दूसरी जगह व्यक्त नहीं हुआ।"[9]

मदन कश्यप के अनुसार:

"...अपने गुस्से का इजहार करने के साथ-साथ हीरा डोम ने धर्म-परिवर्तन की चालाकी और निरर्थकता को भी रेखांकित कर दिया है। सामन्ती समाज में श्रम को सबसे निचले पायदान पर रखा जाता है। और जिसके कर्म जितने श्रम विरोधी होते हैं, उसे उतना ही श्रेष्ठ समझा जाता है। हीरा डोम ने इस कविता में श्रम की प्रतिष्ठा और अपकर्मों की निन्दा के माध्यम से सामन्ती समाज के एक बड़े विपर्यय को उजागर किया है। ... इसकी दूसरी बड़ी विशेषता यह है कि यह कविता बिना किसी बौद्धिक विमर्श के सिर्फ अपने सहज अनुभव के आधार पर, यह स्थापित करने में सफल होती है कि ईश्वर एक वर्गीय अवधारणा है।..।"[10]

इन्हें भी देखें संपादित करें

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 21 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.
  2. महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण, डॉ॰ रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-357.
  3. दलित साहित्य के प्रतिमान, डॉ॰ एन॰ सिंह, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-2012, पृष्ठ-91.
  4. "हिन्दी समय में 'अछूत की शिकायत' शीर्षक कविता।". मूल से 5 जून 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जुलाई 2018.
  5. कविता के सौ बरस, संपादक- लीलाधर मंडलोई, शिल्पायन, शाहदरा (दिल्ली), संस्करण-2013, पृष्ठ-43.
  6. महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण, डॉ॰ रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-358-59.
  7. दलित साहित्य का सौन्दर्यशास्त्र, शरणकुमार लिंबाले, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, पेपरबैक संस्करण-2016, पृष्ठ-17.
  8. कविता के सौ बरस, संपादक- लीलाधर मंडलोई, शिल्पायन, शाहदरा (दिल्ली), संस्करण-2013, पृष्ठ-44.
  9. महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण, डॉ॰ रामविलास शर्मा, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2008, पृष्ठ-359.
  10. कविता के सौ बरस, संपादक- लीलाधर मंडलोई, शिल्पायन, शाहदरा (दिल्ली), संस्करण-2013, पृष्ठ-44-45.