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7 जुलाई 2021

  • 12:5212:52, 7 जुलाई 2021 अन्तर इतिहास +2,990 सदस्य:रमन विनीत कवि हमारे प्रेम की परिणति तुम्हारा साथ पाना है। प्रिये तुम जानती हो सब तुम्हें अब क्या बताना है? प्रीति के पथ पर निरन्तर बढ़ रहे हैं हम। स्वप्न से सुन्दर मनोरथ गढ़ रहे हैं हम। तुम हमारे साथ में चलती रहो प्रतिपल, लक्ष्य के उन्नत शिखर पर चढ़ रहे हैं हम। सोचने दो सोचता जो भी जमाना है। आँख में हैं स्वप्न तेरे प्रिय नाम अधरों पर। आपकी स्वीकृति मधुर परिणाम अधरों पर। मुस्कुराते से नयन जब बोलने लगते, दिख रहा होता सुखद विश्राम अधरों पर। बोलना कुछ भी नहीं बस मुस्कुरा... टैग: यथादृश्य संपादिका