"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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== ग्रामीण जीवन पर अम्बेडकर बनाम गांधी ==
डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर, महात्मा गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उग्र आलोचक थे। उनके कई समकालीनों और कुछ आधुनिक विद्वानों ने उनके महात्मा गांधी (जो कि पहले भारतीय नेता थे जिन्होने अस्पृश्यता और भेदभाव करने का मुद्दा सबसे पहले उठाया था) के विरोध की आलोचना है, तो कई आधुनिक विद्वान डॉ. आंबेडकर, उनके विचार, कार्य और आंदोलन को सही मानकर उन्हें गांधी से बडा और महानतम् महापुरूष मानते है।
 
गांधी का दर्शन भारत के पारंपरिक ग्रामीण जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक, लेकिन रूमानी था और उनका दृष्टिकोण अस्पृश्यों के प्रति भावनात्मक था उन्होने उन्हें [[हरिजन]] कह कर पुकारा। अम्बेडकर ने इस विशेषण को सिरे से अस्वीकार कर दिया। उन्होंने अपने अनुयायियों को गांव छोड़ कर शहर जाकर बसने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया। बाबासाहेब का दर्शन भारत के हर शोषित गरीब एवं दलित व्यक्ति ने स्विकार करके उनके बाताए हुए रास्ते पर चलकर सफलता पाई।
 
=== आधुनिक भारत के निर्माता – अंबेडकर ===
 
बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर का भारत के विकास में जितना योगदान रहा है, उतना शायद ही किसी और राजनेता का रहा हो। एक अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, शिक्षाविद् और कानून के जानकार के तौर पर अंबेडकर ने आधुनिक भारत की नींव रखी थी और देश उनके इस योगदान को लेकर आज भी जागरूक नहीं है।
 
- डॉ. अंबेडकर संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। उन पर आधुनिक भारत का संविधान बनाने की जिम्मेदारी थी और उन्होंने एक ऐसे संविधान की रचना की जिसकी नज़रों में सभी नागरिक एक समान हों, धर्मनिरपेक्ष हो और जिस पर देश के सभी नागरिक विश्वास करें। एक तरह से भीमराव अंबेडकर ने आज़ाद भारत के DNA की रचना की थी।
 
- इसके अलावा डॉक्टर अंबेडकर की प्रेरणा से ही भारत के Finance Commission यानी वित्त आयोग की स्थापना हुई थी।
 
- डॉ. अंबेडकर के Ideas से ही भारत के केन्द्रीय बैंक की स्थापना हुई, जिसे आज हम Reserve Bank of India के नाम से जानते हैं।
 
- दामोदर घाटी परियोजना, हीराकुंड परियोजना और सोन नदी परियोजना को स्थापित करने में डॉ. अंबेडकर ने बड़ी भूमिका निभाई थी।
 
- भारत में Employment Exchanges की स्थापना भी डॉक्टर अंबेडकर के विचारों की वजह से हुई थी।
 
- भारत में पानी और बिजली के Grid System की स्थापना में भी डॉक्टर अंबेडकर का अहम योगदान माना जाता है।
 
- भारत को एक स्वतंत्र चुनाव आयोग भी डॉ. भीमराव अंबेडकर की ही देन है।
 
ये वो योगदान है जिन्हें आज़ादी के बाद की तमाम सरकारों ने हमेशा ही अनदेखा किया है। यानी योजनाएं और विचार अंबेडकर के थे, लेकिन उनका श्रेय दूसरे लोगों ने लूटा।
 
 
भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और संविधान निर्माता डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के बीच चले राजनीतिक शीत युद्ध यानी Political Cold War के कुछ उदाहरण ...
 
-डॉ. अंबेडकर, जवाहर लाल नेहरू की सरकार में प्लानिंग का मंत्रालय चाहते थे लेकिन नेहरू ने अंबेडकर को सिर्फ कानून मंत्रालय दिया।
 
-डॉ. अंबेडकर विदेश और रक्षा मामलों की समितियों में सदस्यता चाहते थे, लेकिन नेहरू सरकार ने डॉ. अंबेडकर को ऐसी किसी समिति का सदस्य नहीं बनाया।
 
- डॉ. अंबेडकर, नेहरू सरकार की विदेश नीति से असहमत थे।
 
- डॉ. अंबेडकर हिंदुओं में सामाजिक अधिकार और महिलाओं को संपत्ति का अधिकार देने की बात करने वाले हिंदू कोड को समाज सुधार के लिए ज़रूरी मानते थे लेकिन नेहरू सरकार ने अंबेडकर के मंत्री रहते हुए हिंदू कोड को स्वीकार नहीं किया।
 
- डॉ. अंबेडकर को भारत रत्न सम्मान देने के लिए भी कोई पहल नहीं की गई। उनकी मौत के 34 वर्षों के बाद 1990 में वीपी सिंह सरकार ने उन्हें 'भारत रत्न' से सम्मानित किया जबकि कांग्रेस ने डॉ. अंबेडकर को 'भारत रत्न' से सम्मानित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
 
बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर से जुड़ी तमाम सच्चाइयां है। इन सच्चाइयों को जानना और समझना आधुनिक भारत के निर्माण के लिए बहुत ज़रूरी हैं। डॉ. अंबेडकर को जातियों की सीमा में बांधना और उन्हें सिर्फ़ दलितों के मसीहा के तौर पर पेश किया जाना उनके साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा इसीलिए डॉ. अंबेडकर के मूल विचारों को Decode किया हैं।
 
अंबेडकर ने तो अपने स्कूल जीवन में ही तिरस्कार सहा था। स्कूल में बाकी दलित बच्चों की ही तरह अंबेडकर को भी बाकी सवर्ण बच्चों से अलग बिठाया जाता था। अंबेडकर के संस्कृत शिक्षक ने उन्हें संस्कृत पढ़ाने से ही इनकार कर दिया था। बाकी के शिक्षक अंबेडकर की किताबों को हाथ भी नहीं लगाते थे।
 
- अंबेडकर के साथ ये भेदभाव और तिरस्कार सिर्फ स्कूल जीवन तक ही सीमित नहीं रहा। उनका जीवन ऐसे तिरस्कार की घटनाओं से भरा हुआ है ।
 
- एक बार अंबेडकर और उनके भाई बैलगाड़ी से जा रहे थे, लेकिन जैसे ही गाड़ीवान को पता चला कि वो दोनों अछूत हैं, उन्हें बैलगाड़ी से नीचे फेंक दिया गया।
 
- निचली जाति से होने की वजह से अंबेडकर का शोषण हर स्तर पर होता रहा। अंबेडकर जब विदेश से पढ़कर हिंदुस्तान लौटे तो बड़ौदा के महाराजा ने उन्हें अपना सचिव बना दिया। बेशक अंबेडकर का पद बड़ा था लेकिन उनकी नौकरी के दौरान भी कोई उनकी इज्जत नहीं करता था। चपरासी अंबेडकर के हाथ में फाइल पकड़ाने के बजाए फेंक दिया करते थे। उन्हें पीने के लिए पानी नहीं दिया जाता था।
 
- मुंबई में अंबेडकर को उनके निचली जाति का होने की वजह से एक पारसी धर्मशाला से बाहर फेंक दिया गया था। उस दौर में अंग्रेजों से लड़ने के लिए पूरा देश खड़ा था तो दलित और शोषित लोगों के अधिकारों के लिए अकेले भीमराव अंबेडकर समाज के उच्च वर्ग और कांग्रेस से संघर्ष कर रहे थे।
 
- डॉ अंबेडकर का मानना था देश की तरक्की के लिए देश के हर वर्ग को समानता का अधिकार मिलना ज़रूरी है। बचपन में हुए भेदभावों की वजह से अंबेडकर हिंदू धर्म को छोड़ना चाहते थे।
 
- डॉ. अंबेडकर का मानना था कि हिंदू धर्म को छोड़ना धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि गुलामी की ज़ंज़ीरें तोड़ने जैसा है। डॉ. अंबेडकर की इस घोषणा के बाद हैदराबाद के निजाम समेत कई मुस्लिम संगठनों ने अंबेडकर को धर्म परिवर्तन के ऑफर दिए, लेकिन बाबा साहब ने हर ऑफर को ठुकरा दिया क्योंकि वो अपने समाज के लोगों को इज्जत से जीने वाला धर्म देना चाहते थे इसीलिए वो हिंदू धर्म को छोड़कर 1956 में बौद्ध धर्म की शरण में चले गए।
 
- 15 अगस्त 1947 को आज़ादी का जश्न डॉ बाबा साहेब अंबेडकर के लिए एक बड़ी ज़िम्मेदारी लेकर आया। देश की नई सरकार को देश का संविधान बनाने के लिए एक काबिल व्यक्ति की तलाश थी जिसे कानून की जानकारी के अलावा देश और दुनिया की समझ और समाज की ज़रूरतों बारे में पूरी जानकारी हो और ये तलाश डॉ. अंबेडकर पर ख़त्म हुई।
 
- डॉ भीमराव अंबेडकर को देश का पहला कानून मंत्री बनाया गया जिन्होंने अपनी बिगड़ती सेहत के बावजूद महज 2 साल के अंदर देश को एक मजबूत संविधान दिया।
 
- अंबेडकर ने 1951 में हिंदू कोड बिल तैयार कर संसद में पेश किया जिसमें महिलाओं को भी समान अधिकार की बात कही गयी।
 
हिंदू कोड बिल के तहत पिता की संपत्ति में बेटी को समान अधिकार, विवाहित पुरूष को एक से अधिक पत्नी रखने पर प्रतिबंध, महिलाओं को भी तलाक़ का अधिकार शामिल था, लेकिन रूढ़िवादी हिंदू ताकतों और सरकार के अंदर ही बिल का विरोध करने वालों के सामने हिंदू कोड बिल लागू नहीं हो सका और सरकार में अपना प्रभाव घटने से निराश होकर डॉ. अंबेडकर ने 1951 में मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में डॉ अंबेडकर ने लिखा--
 
'आज हिंदू कोड बिल की हत्या कर दी गयी। ऐसे में मेरा मंत्री बने रहने का अर्थ समझ में नहीं आता। बिल में शादी और तलाक संबंधी विधेयक पर दो दिन की चर्चा चली फिर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने पूरे हिंदू कोड बिल को वापिस लेने की घोषणा कर दी, मैं हैरान रह गया। मैं ये मानने को तैयार नहीं हूं कि तलाक और विवाह संबंधी बिल को समय की कमी के चलते पास नहीं करवाया जा सकता, मुझे प्रधानमंत्री की नीयत पर शक नहीं है लेकिन हिंदू कोड बिल पास कराने के लिए जिस संकल्प और ईमानदारी की ज़रूरत थी वो उनमें नहीं दिखी।'
 
अपने इस्तीफे के बाद डॉ. भीमराव अंबेडकर ने ख़ुद राजनैतिक ज़िम्मेदारी से भले ही अलग कर लिया था लेकिन सामाजिक ज़िम्मेदारी को वो अपने अंतिम समय तक निभाते रहे। डॉ. भीमराव अंबेडकर को हम तक सिर्फ़ दलितों के मसीहा और संविधान निर्माता के तौर पर पेश किया गया है लेकिन उनकी भूमिका एक राष्ट्रनेता की रही जो चाहते थे देश का हर वर्ग आज़ादी की खुली हवा में सम्मान की सांसें ले सके। बाबा साहेब आंबेडकर विश्वमानव थे।
 
== विरासत ==