"अशोक": अवतरणों में अंतर
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बौद्ध धर्म स्वीकारने के बाद उसने उसे अपने जीवन मे उतारने का प्रयास भी किया। उसने शिकार तथा पशु-हत्या करना छोड़ दिया। उसने [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] एवं अन्य सम्प्रदायों के सन्यासियों को खुलकर दान देना भी आरंभ किया। और जनकल्याण के लिए उसने चिकित्यालय, पाठशाला तथा सड़कों आदि का निर्माण करवाया।
[[चित्र:AshokStambhaThailand.jpg|thumb|200px|left|सम्राट अशोक के चार मुखी शेरों का [[थाईलण्ड]] में पाया हुआ शिल्प]]
उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए धर्म प्रचारकों को [[नेपाल]], [[श्रीलंका]], [[अफ़ग़ानिस्तान]], [[सीरिया]], [[मिस्र]] तथा [[यूनान]] भी भेजा। इसी कार्य के लिए उसने अपने पुत्र एवं पुत्री को भी यात्राओं पर भेजा था। अशोक के धर्म प्रचारकों में सबसे अधिक सफलता उसके पुत्र [[महेन्द्र]] को मिली। महेन्द्र ने [[श्रीलंका]] के राजा तिस्स को बौद्ध धर्म में दीक्षित किया, और तिस्स ने बौद्ध धर्म को अपना [[राजधर्म]] बना लिया और अशोक से प्रेरित होकर उसने स्वयं को 'देवनामप्रिय' की उपाधि दी।
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