"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

बाबासाहेब
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→‎उच्च शिक्षा: उच्च शिक्षा
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रामजी सकपाल ने सन [[१८९८]] मे पुनर्विवाह कर लिया और परिवार के साथ [[मुंबई]] (तब बंबई) चले आये। यहाँ डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर [[एल्फिंस्टोन रोड]] पर स्थित गवर्न्मेंट हाई स्कूल के पहले अछूत छात्र बने।<ref name="Columbia2">{{cite web| last = Pritchett| first = Frances| date = | url = http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ambedkar/timeline/1900s.html| title = In the 1900s| format = PHP| accessdate = 2006-08-02}}</ref> पढा़ई में अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के बावजूद, छात्र भीमराव आंबेडकर लगातार अपने विरुद्ध हो रहे इस अलगाव और, भेदभाव से व्यथित रहे। सन [[१९०७]] में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद भीमराव आंबेडकर ने [[मुंबई विश्वविद्यालय]] में प्रवेश लिया और इस तरह वो भारतीय महाविद्यालय में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये। मैट्रिक परिक्षा पास की उनकी इस बडी सफलता से उनके पूरे समाज मे एक खुशी की लहर दौड़ गयी, क्योंकि तब के समय में मैट्रिक परिक्षा पास होना बहूत बडी थी और अछूत का मैट्रिक परिक्षा पास होना तो आश्चर्यजनक एवं बहूत महत्त्वपूर्ण बडी बात थी।इसलिए मैट्रिक परिक्षा पास होने पर उनका एक सार्वजनिक समारोह में सम्मान किया गया इसी समारोह में उनके एक शिक्षक [[कृष्णजी अर्जुन केलूसकर]] ने उन्हें अपनी लिखी हुई पुस्तक [[भगवान बुद्ध]] की जीवनी भेंट की, श्री केलूसकर, एक [[मराठा]] जाति के विद्वान थे। इस बुद्ध चरित्र को पढकर पहिली बार बाबासाहेब बुद्ध की शिक्षाओं से ज्ञान होकर बुद्ध से बहूत प्रभावी हुए। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की सगाई एक साल पहले हिंदू रीति के अनुसार दापोली की, एक नौ वर्षीय लड़की, रमाबाई से तय की गयी थी।<ref name="Columbia2"/> सन १९०८ में, उन्होंने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया और [[बड़ौदा]] के गायकवाड़ शासक [[सयाजीराव गायकवाड]] से [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] मे उच्च अध्ययन के लिये एक पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया। [[१९१२]] में उन्होंने [[राजनीति विज्ञान]] और [[अर्थशास्त्र]] में अपनी बी.ए. की डिग्री प्राप्त की और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गये। उनकी पत्नी ने अपने पहले बेटे यशवंत को इसी वर्ष जन्म दिया। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर अपने परिवार के साथ बड़ौदा चले आये पर जल्द ही उन्हें अपने पिता रामजी आंबेडकर की बीमारी के चलते बंबई वापस लौटना पडा़, जिनकी मृत्यु [[२ फरवरी]] [[१९१३]] को हो गयी।
 
==उच्च शिक्षा ==
[[File:Ambedkar Barrister.jpg|thumb| सन 1922 में एक वकील के रूप में डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकरआंबेडकर]]
गायकवाड शासक ने सन १९१३ में [[संयुक्त राज्य अमेरिका]] के [[कोलंबिया विश्वविद्यालय]] मे जाकर अध्ययन के लिये अम्बेडकरडॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का चयन किया गया साथ ही इसके लिये एक ११.५ डॉलर प्रति मास की छात्रवृत्ति भी प्रदान की। [[न्यूयॉर्क]] शहर में आने के बाद, अम्बेडकरडॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को राजनीति विज्ञान विभाग के स्नातक अध्ययन कार्यक्रम में प्रवेश दे दिया गया। शयनशाला मे कुछ दिन रहने के बाद, वे भारतीय छात्रों द्वारा चलाये जा रहे एक आवास क्लब मे रहने चले गए और उन्होने अपने एक पारसी मित्र नवल भातेना के साथ एक कमरा ले लिया। १९१६ में, उन्हे उनके एक शोध के लिए पी. एच'''पीएच.डी.''' से सम्मानित किया गया। इस शोध को अंततः उन्होंने पुस्तक "'इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया'" के रूप में प्रकाशित किया। हालाँकि उनकी पहला प्रकाशित काम, एक लेख जिसका शीर्षक, '''भारत में जाति : उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास''' है। अपनी डाक्टरेट की डिग्री लेकर अम्बेडकरसन १९१६ में डॉ. आंबेडकर [[लंदन]] चले गये जहाँ उन्होने ग्रे'सग्रेज् इन और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में [[कानून]] का अध्ययन और [[अर्थशास्त्र]] में डॉक्टरेट शोध की तैयारी के लिये अपना नाम लिखवा लिया। अगले वर्ष छात्रवृत्ति की समाप्ति के चलते मजबूरन उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौर बीच मे ही छोड़ कर भारत वापस लौटना पडा़ ये [[प्रथम विश्व युद्ध प्रथम]] का काल था।
बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन मे अचानक फिर से आये भेदभाव से अम्बेडकरडॉ. उदासबाबासाहेब आंबेडकर निराश हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। यहाँ तक कि अपनी परामर्श व्यवसाय भी आरंभ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार बंबईमुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम, के कारण उन्हें बंबईमुंबई के '''सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स''' मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। [[१९२०]] में कोल्हापुर के महाराजा अपने पारसी मित्र के सहयोग और अपनी बचत के कारण वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सक्षम हो गये। [[१९२३]] में उन्होंने अपना शोध '''प्रोब्लेम्स ऑफ द रुपी''' (रुपये की समस्यायें) पूरा कर लिया। उन्हें [[लंदन विश्वविद्यालय]] द्वारा "डॉक्टर ऑफ साईंस" की उपाधि प्रदान की गयी। और उनकी कानून का अध्ययन पूरा होने के, साथ ही साथ उन्हें ब्रिटिश बार मे बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। भारत वापस लौटते हुये अम्बेडकरडॉ. बाबासाहेब आंबेडकर तीन महीने [[जर्मनी]] में रुके, जहाँ उन्होने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, [[बर्लिन विश्वविद्यालय|बॉन विश्वविद्यालय]] में जारी रखा। उन्हेउन्हें औपचारिक रूप से [[८ जून]] [[१९२७]] को [[कोलंबिया विश्वविद्यालय]] द्वारा पी एचपीएच.डी. प्रदान की गयी।
 
== छुआछूत के विरुद्ध संघर्ष ==