"बौद्ध धर्म": अवतरणों में अंतर

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* बोधिसत्त्वतन्त्रयान / वज्रयान
* [[महायान]] में बुद्ध की पूजा करता है।
=== वज्रयान ===
=== नवयान ===
== प्रमुख तीर्थ ==
भगवान बुद्ध के अनुयायिओं के लिए विश्व भर में चार मुख्य तीर्थ मुख्य माने जाते हैं :
 
(1) लुम्बिनी – जहां भगवान बुद्ध का जन्म हुआ।
(2) बोधगया – जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त हुआ।
(3) सारनाथ – जहां से बुद्ध ने दिव्यज्ञान देना प्रारंभ किया।
(4) कुशीनगर – जहां बुद्ध का महापरिनिर्वाण हुआ।
(5) दीक्षाभूमी – जहां बौद्ध धर्म पूनर्जीवीत हुआ।
===लुम्बिनी==
यह स्थान [[नेपाल]] की तराई में नौतनवां रेलवे स्टेशन से 25 किलोमीटर और गोरखपुर-गोंडा लाइन के नौगढ़ स्टेशन से करीब 12 किलोमीटर दूर है। अब तो नौगढ़ से [[लुम्बिनी]] तक पक्की सडक़ भी बन गई है। ईसा पूर्व 563 में राजकुमार सिद्धार्थ गौतम (बुद्ध) का जन्म यहीं हुआ था। हालांकि, यहां के बुद्ध के समय के अधिकतर प्राचीन विहार नष्ट हो चुके हैं। केवल [[सम्राट अशोक]] का एक स्तंभ अवशेष के रूप में इस बात की गवाही देता है कि भगवान बुद्ध का जन्म यहां हुआ था। इस स्तंभ के अलावा एक समाधि स्तूप में बुद्ध की एक मूर्ति है। नेपाल सरकार ने भी यहां पर दो स्तूप और बनवाए हैं।
 
=== बोधगया ===
करीब छह साल तक जगह-जगह और विभिन्न गुरुओं के पास भटकने के बाद भी बुद्ध को कहीं परम ज्ञान न मिला। इसके बाद वे [[गया]] पहुंचे। आखिर में उन्होंने प्रण लिया कि जब तक असली ज्ञान उपलब्ध नहीं होता, वह पिपल वृक्ष के नीचे से नहीं उठेंगे, चाहे उनके प्राण ही क्यों न निकल जाएं। इसके बाद करीब छह दिन तक दिन रात एक पिपल वृक्ष के नीचे भूखे-प्यासे तप किया। आखिर में उन्हें परम ज्ञान (बुद्धत्व) उपलब्ध हुआ। सिद्धार्थ गौतम अब बुद्धत्व पाकर आकाश जैसे अनंत ज्ञानी हो चूके थे। जिस पिपल वृक्ष के नीचे वह बैठे, उसे बोधि वृक्ष यानी ज्ञान का वृक्ष कहा जाता है। वहीं गया को तक [[बोधगया]] (बुद्ध गया) के नाम से जाना जाता है।
 
=== सारनाथ ===
[[बनारस]] छावनी स्टेशन से छह किलोमीटर, बनारस-सिटी स्टेशन से साढ़े तीन किलोमीटर और सडक़ मार्ग से [[सारनाथ]] चार किलोमीटर दूर पड़ता है। यह पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है और बनारस से यहां जाने के लिए सवारी तांगा और रिक्शा आदि मिलते हैं। सारनाथ में बौद्ध-धर्मशाला है। यह बौद्ध तीर्थ है। लाखों की संख्या में बौद्ध अनुयायी और बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले लोग हर साल यहां पहुंचते हैं। बौद्ध अनुयायिाओं के यहां हर साल आने का सबसे बड़ा कारण यह है कि भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। सदियों पहले इसी स्थान से उन्होंने धर्म-चक्र-प्रवर्तन प्रारंभ किया था। बौद्ध अनुयायी सारनाथ के मिट्टी, पत्थर एवं कंकरों को भी पवित्र मानते हैं। सारनाथ की दर्शनीय वस्तुओं में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का प्राचीन मंदिर, धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप, आदि शामिल हैं।
 
=== कुशीनगर ===
[[कुशीनगर]] बौद्ध अनुयायिओं का बहुत बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल है। भगवान बुद्ध कुशीनगर में ही [[महापरिनिर्वाण]] को प्राप्त हुए। कुशीनगर के समीप हिरन्यवती नदी के समीप बुद्ध ने अपनी आखरी सांस ली। रंभर स्तूप के निकट उनका अंतिम संस्कार किया गया। [[उत्तर प्रदेश]] के जिला गोरखपुर से 55 किलोमीटर दूर कुशीनगर बौद्ध अनुयायिओं के अलावा पर्यटन प्रेमियों के लिए भी खास आकर्षण का केंद्र है। 81 वर्ष की आयु में शरीर त्याग से पहले भारी संख्या में लोग बुद्ध से मिलने पहुंचे। माना जाता है कि 120 वर्षीय ब्राह्मण सुभद्र ने बुद्ध के वचनों से प्रभावित होकर संघ से जुडऩे की इच्छा जताई। माना जाता है कि सुभद्र आखरी भिक्षु थे जिन्हें बुद्ध ने दीक्षित किया।
 
=== दीक्षाभूमी ===
[[दीक्षाभूमी]] [[महाराष्ट्र]] राज्य के [[नागपूर]] शहर में स्थित प्रवित्र एवं महत्त्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ स्थल है। 12वी शताब्धी के बाद बौद्ध धर्म भारत नहीं के बराबर रहा, लेकिन २०वी शताब्धी के मध्य में 14 अक्तुबर, 1956 को लाखों हिंदू दलितों द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने का विशाल सामूदायिक धर्मांतरण का कार्यक्रम हुआ। प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान एवं बोधिसत्व डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर ने अपने लाखों अनुयायिओं को बुद्ध धम्म की दीक्षा नागपूर में दी थी। इसलिए इसका नाम दीक्षाभूमी, नागपूर हो गया है। यही से बौद्ध धर्म का पूर्नस्थापना बोधिसत्व बाबासाहेब के माध्यम से हुई। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर नागपूर में करीब 8,50,000 लोगों को बौद्ध धर्म में प्रवर्तीत किया था। यह विश्व का सबसे बडा धार्मिक रूपांतरण एवं धर्मांतरण माना जाता है।
 
==बौद्ध समुदाय ==