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==आंबेडकर जयंती कैसे मनायी जाती है==
पूरे भारत भर में वाराणसी, दिल्ली सहित दूसरे बड़े शहरों में बेहद जुनून के साथ अंबेडकर जयंती मनायी जाती है। कचहरी क्षेत्र में डॉ अंबेडकर जयंती समारोह समिति के द्वारा डॉ अंबेडकर के जन्मदिवस उत्सव के लिये कार्यक्रम वाराणसी में आयोजित होता है। वो विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित करते हैं जैसे चित्रकारी, सामान्य ज्ञान प्रश्न-उत्तर प्रतियोगिता, चर्चा, नृत्य, निबंध लेखन, परिचर्चा, खेल प्रतियोगिता और नाटक जिसके लिये पास के स्कूलों के विद्यार्थीयों सहित कई लोग भाग लेते हैं। इस उत्सव को मनाने के लिये, लखनऊ में भारतीय पत्रकार लोक कल्याण संघ द्वारा हर वर्ष एक बड़ा सेमीनार आयोजित किया जाता है।
== आंबेडकर जयंती कहां मनाई हैं ==
== संयुक्त राष्ट्र में आंबेडकर जयंती ==
पहली बार [[संयुक्त राष्ट्र]] ने डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की जयंती मनाई। संस्था के शीर्ष अधिकारी ने इन प्रख्यात भारतीय समाज सुधारक को हाशिए पर जी रहे लोगों के लिए ‘एक वैश्विक प्रतीक’ करार दिया और उनके विजन को पूरा करने के लिए भारत के साथ मिल कर काम करने की इस वैश्विक निकाय की कटिबद्धता प्रदर्शित की।
यूएनडीपी की प्रशासक [[हेलेन क्लार्क]] ने भारत के स्थायी मिशन द्वारा इस वैश्विक निकाय में डॉ. आंबेडकर की 125 वीं जयंती पर पहली बार आयोजित विशेष समारोह में अपने संबोधन में कहा, ‘संयुक्त राष्ट्र में इस महत्त्वपूर्ण वर्षगांठ को मनाए जाने पर मैं संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से भारत की सराहना करती हूं।’
संयुक्त राष्ट्र के अगले महासचिव पद के उम्मीदवारों में शामिल क्लार्क ने कहा, ‘हम वर्ष 2030 के एजंडे और दुनिया भर के गरीब एवं वंचित लोगों के लिए डॉ. आंबेडकर की सोच को हकीकत में बदलना सुनिश्चित करने के लिए भारत के साथ अपनी बेहद करीबी साझेदारी को जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’
भारतीय संविधान के शिल्पी डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर की 125वीं जयंती [[14 अप्रेल]] [[2016]], [[बुधवार]] को इस वैश्विक संस्था में मनाई गई थी। उसका आयोजन नागरिक समाज के समूहों [[कल्पना सरोज]] फाउंडेशन और फाउंडेशन आॅफ ह्यूमन होराइजन के साथ मिल कर किया गया। संयुक्त राष्ट्र विकास समूह की अध्यक्ष क्लार्क ने राजनयिकों, विद्वानों और डॉ. आंबेडकर के अनुयायियों को अपने संबोधन में कहा कि “यह अवसर ऐसे ‘बहुत महान व्यक्ति की विरासत’ को याद करता है, जिन्होंने इस बात को समझा कि ‘अनवरत चली आ रहीं और बढ़ती असमानताएं’ देशों और लोगों की आर्थिक और सामाजिक कल्याण के समक्ष मूल चुनौतियां पेश करती हैं।”
[[न्यूजीलैंड][ की पूर्व [[प्रधानमंत्री]] क्लार्क ने कहा कि “डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के आदर्श आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वे 60 साल पहले थे। वंचित समूहों के समावेश और सशक्तीकरण, श्रम कानूनों में सुधार और सभी के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने पर आंबडेकर की ओर से किए गए काम ने उन्हें ‘भारत और अन्य देशों में हाशिए पर जी रहे लोगों के लिए प्रतीक बना दिया।”<ref>http://www.jansatta.com/international/he-struggled-for-people-around-the-globe-plea-in-un-to-declare-ambedkar-jayanti-world-equality-day/85974/#sthash.uNBoiKuT.dpuf</ref>
इस मौके पर '''संपोषणीय विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए असमानता से संघर्ष''' विषयक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें डॉ. आंबेडकर से जुड़े [[कोलंबिया विश्वविद्यालय]] के प्रोफेसर [[स्टान कचनोवस्की]] और एसोसिएट प्रोफेसर [[अनुपमा राव]] एवं [[हार्वर्ड विश्वविद्यालय]] के विख्याता [[क्रिस्टोफर क्वीन]] ने हिस्सा लिया।
क्लार्क ने कहा कि, “अांबेडकर के विजन एवं कार्य का आधार असमानताएं एवं भेदभाव घटाना भी नए विकास एजंडे के मूल में है जिसे 2030 तक हासिल करने के प्रति विश्व ने कटिबद्धता दिखाई है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को असमानताएं दूर करने के लिए जरूरी दूरगामी उपायों की गहरी समझ थी।”
== आंबेडकर के योगदान ==
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