"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
No edit summary
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 750:
{{"|'''डॉ॰ आंबेडकर के इस 'दि प्रोब्लम ऑफ रूपी' विषये के चिंतन का मूल्य उनके द्वारा विषय वस्तु के किये गये वास्तविक, एवं तटस्थ चिंतन से प्रतिबिंबीत होता है, जिसमें उन्होंने इस मुल्क की वास्तविकताओं को बडी खूबी के साथ रखा है। ऐसे सिद्धांतों का गहन पिरशिलन मैंने मेरे जीवन में कही अन्यत्र आजतक कभी नहीं देखा हैं।'''|[[एडवीन सेलिग्मन]]}}
 
{{"|'''''स्त्री दीन है ! उसको पुरुष ने कह रखा है, कि तुम दीन हो ! और मजा यह है कि स्त्री ने भी मान रखा है कि वह दीन है! असल में हजारों साल तक भारत में शुद्र समझते थे कि वह शुद्र है; क्योंकि हजारों साल तक ब्राहमणों ने समझाया था कि तुम शुद्र हो ! डॉ. आंबेडकर के पहले, शुद्रों के पांच हजार साल के इतिहास में किमती आदमी शुद्रों में पैदा नहीं हुआ ! इसका यह मतलब नहीं कि शुद्रों में बुद्धि न थी और डॉ. आंबेडकर पहले पैदा नहीं हो सकते थे ! पहले पैदा हो सकते थे, लेकिन शुद्रों ने मान रखा था कि उनमें कभी कोई पैदा हो ही नहीं सकता ! वे शुद्र हैं, उनके पास बुद्धि हो नहीं सकती ! डॉ. आंबेडकर भी पैदा न होते, अगर अंग्रेजों ने आकर इस मुल्क के दिमाग में थोडा हेर-फेर न कर दिया होता तो डॉ. आंबेडकर भी पैदा नहीं हो सकते थे ! हालांकि जब हमको भारत का संविधान बनाना पड़ा तो कोई [[ब्राह्मण]] काम नहीं पड़े, वह शुद्र डॉ. आंबेडकर काम पड़े ! वह बुद्धिमान से बुद्धिमान आदमी सिद्ध हो सके! लेकिन दौ सौ साल पहले वह भारत में पैदा नहीं हो सकते थे ! क्योंकि शूद्रों ने स्वीकार कर लिया था, खुद ही स्वीकार कर लिया था कि उनके पास बुद्धि नहीं है ! स्त्रियों ने भी स्वीकार कर रखा है कि वे किसी न किसी सीमा पर हीन हैं !'''''|आचार्य [[ओशो]] ([[रजनीश]])}}
 
{{"|'''डॉ॰ आंबेडकर ज्ञान और बुद्धिमत्ता के झरना है।'''|ऑस्ट्रेलियन गव्हर्नर [[रिचार्ड कॅसे]]}}