"बौद्ध धर्म के तीर्थ स्थल": अवतरणों में अंतर

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[[File:Ancient Buddhist monasteries near Dhamekh Stupa Monument Site, Sarnath.jpg|right|300px|thumb|[[धामेक स्तूप]] के पास प्राचीण बौद्ध मठ, [[सारनाथ]], [[मध्य प्रदेश]], [[भारत]]]]
[[बनारस]] छावनी स्टेशन से छह किलोमीटर, बनारस-सिटी स्टेशन से साढ़े तीन किलोमीटर और सडक़ मार्ग से [[सारनाथ]] चार किलोमीटर दूर पड़ता है। यह पूर्वोत्तर रेलवे का स्टेशन है और बनारस से यहां जाने के लिए सवारी तांगा और रिक्शा आदि मिलते हैं। सारनाथ में बौद्ध-धर्मशाला है। यह बौद्ध तीर्थ है। लाखों की संख्या में बौद्ध अनुयायी और बौद्ध धर्म में रुचि रखने वाले लोग हर साल यहां पहुंचते हैं। बौद्ध अनुयायिओं के यहां हर साल आने का सबसे बड़ा कारण यह है कि भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। सदियों पहले इसी स्थान से उन्होंने धर्म-चक्र-प्रवर्तन प्रारंभ किया था। बौद्ध अनुयायी सारनाथ के मिट्टी, पत्थर एवं कंकरों को भी पवित्र मानते हैं। सारनाथ की दर्शनीय वस्तुओं में अशोक का चतुर्मुख सिंह स्तंभ, भगवान बुद्ध का प्राचीन मंदिर, [[धामेक स्तूप]], [[चौखंडी स्तूप]], आदि शामिल हैं।
 
सारनाथ बौद्ध धर्म का प्रधान केंद्र था किंतु [[मोहम्मद गौरी]] ने आक्रमण करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। वह यहाँ की स्वर्ण-मूर्तियाँ उठा ले गया और कलापूर्ण मूर्तियों को उसने तोड़ डाला। फलतः सारनाथ उजाड़ हो गया। केवल [[धामेख स्तूप]] टूटी-फूटी दशा में बचा रहा। यह स्थान चरागाह मात्र रह गया था। सन्‌ 1905 ई. में पुरातत्व विभाग ने यहाँ खुदाई का काम प्रारंभ किया। इतिहास के विद्वानों तथा बौद्ध-धर्म के अनुयायियों का इधर ध्यान गया। तब से सारनाथ महत्व प्राप्त करने लगा। इसका जीर्णोद्धार हुआ, यहाँ नवीन विहार व वस्तु-संग्रहालय स्थापित हुआ, भगवान बुद्ध का विहार और बौद्ध-धर्मशाला भी बनी। सारनाथ अब बराबर विस्तृत होता जा रहा है।
 
जैन ग्रंथों में इसे सिंहपुर कहा गया है। जैन धर्मावलंबी इसे अतिशय क्षेत्र मानते हैं। श्रेयांसनाथ के यहाँ गर्भ, जन्म और तप- ये तीन कल्याण हुए हैं। यहाँ के जैन मंदिरों में श्रेयांसनाथजी की प्रतिमा भी है। इस मंदिर के सामने ही [[अशोक स्तम्भ]] है।
 
=== कुशीनगर ===