"भगवान बुद्ध और उनका धम्म": अवतरणों में अंतर

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[[ब्रिटेन]] के एक बौद्ध [[विहार]] में बाबासाहेब की मूर्ति स्थापित है, और वहां बाबासाहेब के हाथ में ‘भगवान बुद्ध और उनका धम्म’ ग्रंथ है।
 
== हिन्दी संस्करण ==
इस प्रसिद्ध ग्रंथ के अनुवादक पू. डॉ॰ [[भदन्त आनन्द कौसल्यायन]] (१९०५-१९८८) सन् १९५८ में [[थाईलैंड]] जाने के लिए [[बम्बई]] (अब [[मुंबई]]) से [[कलकत्ता]] जा रहे थे। स्टेशन पर उन्हें '''The Buddha and His Dhamma'''' की एक प्रति उपलब्ध कराई गई थी। कलकत्ता पहुंचते पहुंचते उन्होंने उसे अधिकांश पढ डाला और अनुवाद आरंभ कर दिया।
 
[[विश्व बौद्ध सम्मेलन]] के उत्सव के अनन्तर वे थाईलैंड में दो महिने तक इस ग्रंथ का अनुवाद समाप्त करने की कामना से रूके रहे। वट महाधात, [[बैंकाक]] के उनके स्नेहीओं ने भी उनके अनुवाद कार्य में हर तरह से साहायता की।
 
अनुवाद का कार्य सम्प्त कर वे बैंकाक से [[जापान]] और [[बर्मा]] (म्यान्मार) गये। वे बर्मा से [[भारत]] आये एवं सन १९५९ जून महिने में [[श्रीलंका]] रवाना हो गये।
 
जब सन १९५७ में मूल अंग्रेजी ग्रंथ '''द बुद्ध एँड हिज् धम्म''' सर्व प्रथम प्रकाशित हुआ तो भारत एवं कई बौद्ध देशों में इसका स्वागत और विरोध भी हुआ। बोधिसत्व डॉ बाबासाहेब आंबेडकर इस ग्रंथ के प्रकाशन पूर्व ही [[महापरिनिर्वाण]] हुआ था, उन्होंने इस मूल अंग्रेजी ग्रंथ में किसी प्रकार के फूट नोट्स या उद्धारण नहीं दिये थे। आलोचकों का मुंह बंद करने के लिए प्राचीन ग्रंथो में से आधार खोजे गये। [[भन्तेजी]] कौसल्यायन ने श्रीलंका में मूल पालि संस्कृत ग्रंथों को देखकर फूट नोट्स तैयार किये। अब इसका अंग्रेजी अनुवाद तैयार कर अंग्रेजी संस्करण में जोडे गये हैं। इस प्रकार इस महान ग्रंथ की प्रामाणिकता सिद्ध की गई।
 
सन १९६० में विश्व विद्यालय के अवकाश के दिनों में भन्तेजी भारत आये। '''भगवान बुद्ध और उनका धम्म''' की पांडुलिपि उनके साथ थी। वे मुंबई गये और उस समय के [[पिपल्स एज्युकेशन सोसाईटी]] के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आर आर भोले से कहां मैंने बाबा साहेब के ग्रंथ का अनुवाद किया है।आप इसको छपवाने की व्यवस्था करें।
 
भोले साहब ने डॉ॰ आनंद कौसल्यायन को दो तीन जगह से अनुवाद पढवाकर सुना और कहां कि मैं संतुष्ट हूँ। पुस्तक जल्द ही छपेंगी।
 
इस का पहला हिन्दी संस्करण सन १९६१ में प्रकाशित हुआ। तब से आज तक इसके कई संस्करण निकले। भन्तेजी ने इस ग्रंथ का [[पंजाबी भाषा]] में भी अनुवाद किया है।
 
यह ग्रंथ [[ताईवान]] में पहुंचा तो '''दि कार्पोरेट बॉडी ऑफ दि बुद्धा एज्युकेशन फाउंडेशन, ताईवान''' के पदाधिकारीओं ने इसका हिन्दी एवं अंग्रेजी संस्करण छपवाकर बिना मूल्य वितरित करने इच्छा व्यक्त की है। भारतीय बौद्ध उनके इस पुण्यमय कार्य के लिए अत्यंत कृत्यज्ञ है।
'''सब्बे सत्ता सुखी होंतु।'''
 
==इतिहास==