"पोवाड़ा": अवतरणों में अंतर

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इसी दौरान यह व्यवसाय करनेवाले जो गायक सामने आये है उन्हें गोंधली कहते है। पोवाडा मराठी साहित्य की एक प्रमुख विधा है पोवाडा जिसे गोंधल (गोंधिया) दलित जाति के लोग गाते थे पर आगे चलकर, शिवाजी के बाद, सभी जातियों के लोगों ने इसे अपना लिया। युद्धों का वर्णन पोवाडा गायकों का प्रमुख विषय होता था जिसका वे बेहद सजीव और ओजपूर्ण वर्णन करते थे, वह भीतरी कलहों और बाहरी आक्रमणों का काल था। अतः अपने आश्रयदाताओं को उनकी पूरी ताकत से युद्ध लड़ने के लिए प्रेरित करना, उस काल के कवि का प्रमुख कर्तव्य-सा बन गया था। लेकिन [[महात्मा फुले]] ने पोवाडा का जनजागृति के लिए इस्तेमाल किया. आजादी की लड़ाई के दिनों में और आजादी के बाद पोवाडा क्रमशः राष्ट्रीय आन्दोलन और जनान्दोलनों का गीत बन गया।
 
== शिवाजी ==
पोवाड़ा को समकालीन मराठा इतिहास का विश्वसनीय साक्षी माना गया है। यूं तो पोवाड़ा का इतिहास 17वीं शताब्दी से शुरू होता है पर शिवाजी के राज्याभिषेक के पहले, यादव काल में, ज्ञानेश्वरी में जो भक्ति गीत गाए जाते थे, वे पोवाड़ा का ही एक रूप थे। शिवाजी महाराज के काल में क्लासिक पोवाड़ा के बीज बोए गए। शाहिर साहित्य की परम्परा की शुरूआत छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल (1630-1680) में हुई। शिवाजी के काल में प्रथम पोवाड़ा ‘अफजल खानाचा वध’ (अफजल खान का वध) 1659 में अग्निदास द्वारा गाया गया, जिसमें शिवाजी द्वारा अफजल खान के वध का वर्णन किया गया था। यह महाराष्ट्र के गजट में दर्ज है। दूसरा महत्वपूर्ण पोवाडा था तानाजी मालसुरे द्वारा सिंहगढ़ पर कब्जा करने के बारे में, जिसे तुलसीदास ने गया। उतना ही महत्वपूर्ण है बाजी पासालकर के बारे में यमजी भास्कर द्वारा गाया गया पोवाड़ा। शिवाजी के अनेक पोवाड़ा गाए गए जैसे शिवाजी अवतारी पुरूष, शिव प्रतिज्ञा, प्रतापगढचा रणसंग्राम, [[शाहिस्ताखान]] चा पराभव, शिवाजी महाराज पोवाड़ा, छत्रपति राजमाता [[जीजाबाई]], शिवरांयाचे पुण्य स्मरण, सिंहगढ़, शिवराज्याभिषेक, समाजवादी शिव छत्रपति, शिव-गौरव, शिवदर्शन, पुरोगामी शिवाजी, शिवसंभव, शिवकाव्य इत्यादि।
== फुले का पोवाड़ा ==
महात्मा जोतिबा फुले ने छत्रपति शिवाजी महाराज की समाधि ढूंढ निकाली और 1869 में उन्होंने [[पूना]] में पहली बार शिवाजी महाराज की [[जयंती]] मनाई। उन्होंने ही शिवाजी की समाधि की मरम्मत करवाई तथा अपनी पहली पुस्तक लिखी ‘ए बलाड ऑन शिवाजी’ (शिवाजी की महागाथा के गीत), जिसे अंग्रेजों ने रिकार्ड किया। फुले को यह अहसास था कि इतिहास के साक्षी के रूप में पोवाड़ा का बहुत महत्व है। गीत और गद्य दोनो होने के कारण, पोवाड़ा के माध्यम से मनोरंजन और प्रचार दोनों संभव हैं। फुले ने अशिक्षित जनता को पोवाड़ा के माध्यम से शिवाजी के कार्यों के बारे में बताया. उन्होंने मात्र व्यक्ति-आधारित पोवाड़ा नहीं लिखे बल्कि उपमा देकर लिखा. शिवाजी के कार्यों से प्रेरणा लेने के लिए उनके बारे में सरल पोवाड़ा के माध्यम से अशिक्षित जनता को जानकारी देते थे।