"पोवाड़ा": अवतरणों में अंतर
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शाहिर साहित्य ने कई महान लेखकों को पैदा किया जिनमें श्रीपाद महादेव वर्दे, एमवी धोंध तथा अन्य शामिल थे। वर्दे ने कई पोवाडा एकत्रित कर उन्हें ‘विविधवार्ता’ नाम से प्रकाशित किया। उन्होंने ‘मराठी कविताचा उषाकाल किंवा मराठीं साहित्य’ नाम से पुस्तक भी लिखी। एम एन सहस्त्रबुद्धे का ‘मराठी शाहिरी- वागंमय’ 1950 के दशक में मुंबई मराठी साहित्य संघ ने प्रकाशित किया। इन सभी लेखकों ने पोवाड़ा को संग्रहित कर प्रकाशित करवाकर बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
== संयुक्त महाराष्ट्र आन्दोलन ==
1956 में संयुक्त महाराष्ट आंदोलन में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) ने शाहिर [[अमर शेख]] [[अन्ना भाऊ साठे]] तथा गव्हाणकर को जन्म दिया। सरकार की गलत नीतियों व निर्णयों को उजागर करने के लिए इन सभी शाहिरों ने पोवाड़ा का उपयोग किया। यह नए प्रकार के क्रांतिकारी पोवाड़ा थे, जो जनजागृति पैदा कर रहे थे। ये पोवाड़ा न तो धार्मिक थे और ना ही राजाश्रित बल्कि ये जनता की मांगों को सामने ला रहे थे। ये मजदूरों की समस्यायों व अकाल का चित्रण थे, वे गरीबों की जुबान थे। वे आधुनिक जमाने की सामाजिक समस्याओं का चित्रण कर रहे थे। शाहिर समाज में व्याप्त शोषण, अन्याय व अत्याचार के बारे में पोवाड़ा गा रहे थे। अब पोवाड़ा मात्र इतिहास का वर्णन नहीं रह गया था बल्कि सामान्य जन की समस्याओं से जुड़ गया था। आज विषयों की विविधता पोवाड़ा में दिखाई देती है।
== १९८० का दशक ==
१९८० के दशक में विलास घोगरे और जी संभाजी भगत ने महाराष्ट्र के [[अन्नाभाऊ साठे]] तथा अमर शेख की परंपरा को आगे बढ़ाया। वामपंथी आंदोलनों की ये लोग हुंकार बने। मजदूरों-किसानों की समस्याओं को पोवाड़ा का विषय बनाया। आज संभाजी भगत साम्रज्यवादी ताकतों, धार्मिक-साम्प्रदायिक उन्मादों व जाति व्यवस्था के विरूद्ध तथा नवजनवादी सांस्कृतिक एकता के लिए व [[आम्बेडकरवाद]]ी - [[मार्क्सवाद]]ी विचारधारा को फैलाने के लिए पोवाड़ा गाते हैं। महाराष्ट्र के वे सबसे बड़े लोक शाहिर है। ‘शिवाजी अण्डरग्राउण्ड इन भीमनगर मोहल्ला’ नाटक पोवाड़ा पर आधारित है, जिसके तीन सौ से ज्यादा शो हो चुके हैं।
==संदर्भ==
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