"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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→‎आंबेडकर जी के सिद्धान्त: आंबेडकर का दर्शन
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== आंबेडकर जी के सिद्धान्त ==
{{main|आंबेडकरवाद}}
 
3 अक्तूबर 1954 को बाबासाहेब ने ‘मेरा दर्शन’ इस विषय पर आकाशवाणी पर दिए गए अपने भाषण में कहा —
 
“[[शंकराचार्य]] के [[दर्शन]] के कारण हिन्दू समाज-व्यवस्था में जाति-संस्था और विषमता के बीज बोए गए। मैं इस दर्शन को नकारता हूँ। मेरा सामाजिक दर्शन केवल तीन शब्दों में रखा जा सकता है। ये शब्द हैं — [[स्वतन्त्रता]], [[समता]] और [[बन्धुभाव]] । मैंने इस शब्दों को [[फ्रेंच राज्य क्रान्ति]] से उधार नहीं लिया है। मेरे दर्शन की जड़ें [[धर्म]] में हैं, [[राजनीति]] में नहीं। मेरे गुरु [[बुद्ध]] के व्यक्तित्व और कृतित्व से मुझे ये तीन मूल्य मिले हैं।”
 
===स्वतंत्र्यता===
क्रांतिकारी देशभक्त डॉ. भीमराव आंबेडकर को ब्रिटीशों से मुक्त भारत के अलावा देश के ९ करोड़ो (आज ३५ करोड़) शोषित, पिडीत एवं दलित लोगों की धार्मिक गुलामी से मुक्ती चाहते थे। उन्हें भारत के साथ भारतीओं की स्वतंत्र्यता चाहिए थी। वे मनुष्य की स्वतंत्र्यता को सबसे बडी स्वतंत्र्यता मानते थे।