"सविता आंबेडकर": अवतरणों में अंतर

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विवाह के बाद डॉक्टर सविता को डॉक्टर सविता माई कहा जाने लगा। वे आजीवन सेवा और समर्पण की मूर्ति बनी रहीं। अंबेडकर का स्वास्थ्य लगातार खराब होता चला जा रहा था। वे पूरी निष्ठा के साथ अंबेडकर की मरते दम तक सेवा करती रहीं। अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ''द बुद्धा एंड हिज धर्मा'' की 15 मार्च 1956 को लिखी भूमिका में भावुक अंदाज में पत्नी से मदद मिलने का उल्लेख किया। अंबेडकर के निधनोपरांत उनके करीबियों और अनुयायियों ने यह भूमिका हटवा दी। इसका पता १९८० ई. में चला जब पंजाबी बुद्धवादी लेखक भगवान दास ने उनकी इस भूमिका को दुर्लभ भूमिका के रूप में प्रकाशित करायी।
==धर्मांतरण==
[[File:Dr. Babasaheb Ambedkar accepting Dhamma Deeksha - Buddhism from Mahasthavir Chandramani along with Wali Sinha, Rewaramji Kawade and wife Maisaheb on October 14, 1956.jpg|thumb| महास्थवीर चंद्रमणी (left) इनसे बौद्ध धम्म की दीक्षा ग्रहन करते समय भीमराव आंबेडकर एवं उनके साथ सविता आंबेडकर, वाली सिन्हा और रेवरामजी कवाडे. १४-१०-१९५६]]
[[File:Dr Babasaheb Ambedkar with his second wife Dr Savita Ambedkar, holding a statue of the Buddha, during the Dhamma Diksha ceremony in Nagpur. October 14, 1956.jpg|thumb|नागपूर के धम्मदीक्षा समारोह में भीमराव आंबेडकर व हात में बुद्ध मुर्ति थमाये हुई डॉ. सविता आंबेडकर, १४ ऑक्टोबर १९५६]]
 
[[विजयादशमी|अशोक विजयादशमीला]] ([[सम्राट अशोक]]ांनी बौद्ध धम्माचा स्वीकार केला होता तो दिवस), [[१४ ऑक्टोबर]] [[इ.स.१९५६|१९५६]] रोजी [[दीक्षाभूमी]], [[नागपूर]] येथे बाबासाहेबांसोबत सविता आंबेडकरांनी [[बौद्ध धम्म]] स्वीकारला. [[श्रीलंका|श्रीलंकेचे]] [[भिक्खू]] महास्थवीर चंद्रमणी यांचेकडून डॉ. बाबासाहेब व सौ. डॉ. सविता आंबेडकर यांनी [[त्रिशरण]] व [[पंचशील]] ग्रहण करून सर्वप्रथम धम्मदीक्षा घेतली आणि त्यानंतर बाबासाहेबांनी स्वत: आपल्या ५,००,००० अनुयायांना त्रिशरण, पंचशील आणि [[बावीस प्रतिज्ञा]] देऊन बौद्ध धम्माची दीक्षा दिली. हे शपथग्रहण सकाळी ९.०० वाजता झाले. माईसाहेब या धर्मांतर आंदोलनातील बौद्ध धम्म स्वीकारणाऱ्या त्या पहिल्या महिला होत्या.<ref>{{स्रोत बातमी|url=http://divyamarathi.bhaskar.com/article/EDT-babasaheb-ambedkar-column-2481860.html|title=डॉ. आंबेडकरांचा बौद्ध धम्म|date=2011-10-06|work=marathibhaskar|access-date=2018-03-14|language=mr}}</ref>
 
== आरोप एवं उसका खंडन==
भीमराव आंबेडकर के निधन के बाद सविता जी पर कुछ आंबेडकरवादियों ने अंबेडकर की हत्या करने का आरोप लगाया। तत्कालीन प्रधानमंत्री [[जवाहरलाल नेहरू]] ने इस मामले की जांच के लिए एक कमेटी बनाई, और उस कमेटी ने जांच के बाद सविता जी को आरोपों से मुक्त कर दिया गया।<ref>https://www.loksatta.com/lekha-news/the-buddha-and-his-dhamma-dr-b-r-ambedkar-1594868/</ref>