"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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===लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में स्नातकोत्तर अध्ययन===
[[File:Dr. B. R. Ambedkar with his professors and friends from the London School of Economics and Political Science, 1916-17.jpg|thumb|लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के अपने प्रोफेसरों और दोस्तों के साथ आम्बेडकर (केंद्र रेखा में, दाएं से पहले), 1916 - 17]]
अपनी डाक्टरेट की डिग्री लेकर सन १९१६ में डॉ॰ आम्बेडकर [[लंदन]] चले गये जहाँ उन्होने ग्रेज् इन और [[लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स]] में [[विधि]] का अध्ययन और [[अर्थशास्त्र]] में डॉक्टरेट शोध की तैयारी के लिये अपना नाम दर्ज कराया। अगले वर्ष छात्रवृत्ति की समाप्ति के चलते मजबूरन उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौरपर बीच में ही छोड़ कर भारत वापस लौटना पड़ा; ये [[प्रथम विश्व युद्ध]] का काल था; [[बड़ौदा]] राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन में अचानक फिर से आये भेदभाव से डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर निराश हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। यहाँ तक कि अपनी परामर्श व्यवसाय भी आरंभ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम, के कारण उन्हें मुंबई के ''सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स'' मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। [[१९२०]] में कोल्हापुर के [[शाहू महाराज]], अपने पारसी मित्र के सहयोग और अपनी बचत के कारण वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सक्षम हो गये। [[१९२३]] में उन्होंने अपना शोध ''प्रोब्लेम्स ऑफ द रुपी'' (रुपये की समस्यायें) पूरा कर लिया। उन्हें [[लंदन विश्वविद्यालय]] द्वारा "डॉक्टर ऑफ साईंस" की उपाधि प्रदान की गयी। और उनकी कानून का अध्ययन पूरा होने के साथ ही साथ उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। भारत वापस लौटते हुये डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर तीन महीने [[जर्मनी]] में रुके, जहाँ उन्होने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, [[बॉन विश्वविद्यालय]] में जारी रखा। उन्हें औपचारिक रूप से [[८ जून]] [[१९२७]] को [[कोलंबिया विश्वविद्यालय]] द्वारा पीएच.डी. प्रदान किया गया।