"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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[[भारत सरकार अधिनियम, १९१९|भारत सरकार अधिनियम १९१९]], तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को गवाही देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका (''separate electorates'') और [[आरक्षण]] देने की वकालत की। [[१९२०]] में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक ''मूकनायक'' के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन जल्द ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका इस्तेमाल रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया।
 
आम्बेडकर एक कानूनी पेशेवर के रूप में काम किया हैं। 1926 में, उन्होंने सफलतापूर्वक तीन गैर-ब्राह्मण नेताओं का बचाव किया जिन्होंने [[ब्राह्मण]] समुदाय पर भारत को बर्बाद करने का आरोप लगाया था और बाद में उनपर अपमान के लिए मुकदमा चलाया गया था। [[धनंजय कीर]] ने नोट किया कि "ग्राहक और डॉक्टर दोनों के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रूप से जीत बडी रही थी।"
 
आम्बेडकर ने अपनी वकालत अच्छी तरह जमा ली और [[बहिष्कृत हितकारिणी सभा]] की स्थापना भी की जिसका उद्देश्य दलित वर्गों में शिक्षा का प्रसार और उनके सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये काम करना था। सन् [[१९२६]] में, वो बंबई विधान परिषद के एक मनोनीत सदस्य बन गये। सन [[१९२७]] में डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के खिलाफ एक व्यापक आंदोलन शुरू करने का फैसला किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों और जुलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी लोगों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये भी संघर्ष किया। उन्होंने महड में अस्पृश्य समुदाय को भी शहर की पानी की मुख्य टंकी से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया।