"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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उन्होने अपनी पुस्तक ''हू वर द शुद्राज़?'' (शुद्र कौन थे?) के द्वारा हिंदू जाति व्यवस्था के पदानुक्रम में सबसे नीची जाति यानी शुद्रों के अस्तित्व मे आने की व्याख्या की।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india/2015/04/150402_beef_ban_ambedkar_hindu_ate_cow_rd|title='प्राचीन काल में हिन्दू गोमांस खाते थे'}}</ref> उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि किस तरह से अतिशुद्र (अछूत), शुद्रों से अलग हैं। 1948 में हू वेयर द शुद्राज़? की उत्तरकथा ''द अनटचेबलस: ए थीसिस ऑन द ओरिजन ऑफ अनटचेबिलिटी'' (अस्पृश्य: अस्पृश्यता के मूल पर एक शोध) में आम्बेडकर ने हिंदू धर्म को लताड़ा।<span style="color: black"> <blockquote>हिंदू सभ्यता .... जो मानवता को दास बनाने और उसका दमन करने की एक क्रूर युक्ति है और इसका उचित नाम बदनामी होगा। एक सभ्यता के बारे मे और क्या कहा जा सकता है जिसने लोगों के एक बहुत बड़े वर्ग को विकसित किया जिसे... एक मानव से हीन समझा गया और जिसका स्पर्श मात्र प्रदूषण फैलाने का पर्याप्त कारण है?<ref name="Columbia6"/></blockquote></span>
 
आम्बेडकर [[इस्लाम]] और दक्षिण एशिया]] मेंके उसकी[[इस्लाम]] की रीतियों के भी बड़े आलोचक थे। उन्होने भारत विभाजन का तो पक्ष लिया पर मुस्लिमो मेमें व्याप्त [[बाल विवाह]] की प्रथा और महिलाओं[[महिला]]ओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की घोर निंदा की। उन्होंने कहा,
 
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[[बहुविवाह]] और [[रखैल]] रखने के दुष्परिणाम शब्दों में व्यक्त नहीं किये जा सकते जो विशेष रूप से एक मुस्लिम महिला के दुःख के स्रोत हैं। जाति व्यवस्था को ही लें, हर कोई कहता है कि इस्लाम गुलामी और जाति से मुक्त होना चाहिए, जबकि गुलामी अस्तित्व में है और इसे इस्लाम और इस्लामी देशों से समर्थन मिला है। इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है जो इस अभिशाप के उन्मूलन का समर्थन करता हो। अगर गुलामी खत्म भी हो जाये पर फिर भी मुसलमानों के बीच जाति व्यवस्था रह जायेगी।<ref name="Ambedkar">{{cite book |last=Ambedkar |first=Bhimrao Ramji |title= Pakistan or the Partition of India|year= 1946 |publisher= Thackers Publishers|location=Bombay|isbn= |chapter=Chapter X: Social Stagnation|chapterurl=http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ambedkar/ambedkar_partition/410.html| pages=215–219| accessdate=8 October 2009|deadurl=no|archiveurl=https://web.archive.org/web/20090912185829/http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00ambedkar/ambedkar_partition/410.html|archivedate=12 September 2009|df=dmy-10-08all}}</ref>
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उन्होंने लिखा कि मुस्लिम समाज मे तो हिंदू समाज से भी कही अधिक सामाजिक बुराइयां है और मुसलमान उन्हें " भाईचारे " जैसे नरम शब्दों के प्रयोग से छुपाते हैं। उन्होंने मुसलमानो द्वारा '''अर्ज़ल वर्गों''' के खिलाफ भेदभाव जिन्हें " निचले दर्जे का " माना जाता था के साथ ही मुस्लिम समाज में महिलाओं के उत्पीड़न की दमनकारी [[पर्दा प्रथा]] की भी आलोचना की। उन्होंने कहा हालाँकि पर्दा हिंदुओं मे भी होता है पर उसे धर्मिक मान्यता केवल मुसलमानों ने दी है। उन्होंने इस्लाम मे कट्टरता की आलोचना की जिसके कारण इस्लाम की नातियों का अक्षरक्ष अनुपालन की बद्धता के कारण समाज बहुत कट्टर हो गया है और उसे को बदलना बहुत मुश्किल हो गया है। उन्होंने आगे लिखा कि भारतीय मुसलमान अपने समाज का सुधार करने में विफल रहे हैं जबकि इसके विपरीत तुर्की जैसे देशों ने अपने आपको बहुत बदल लिया है।<ref name="Ambedkar"/><ref>https://www.bbc.com/hindi/india-42251801</ref> <span style="color: black"><blockquote>
"सांप्रदायिकता" से पीड़ित हिंदुओं और मुसलमानों दोनों समूहों ने सामाजिक न्याय की माँग की उपेक्षा की है।<ref name="Ambedkar"/>