"कालाराम मन्दिर सत्याग्रह": अवतरणों में अंतर

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'''कालाराम मन्दिर सत्याग्रह''' 2 मार्च 1930 को [[भीमराव आम्बेडकर]] द्वारा अछूतों के [[मन्दिर]] प्रवेश के लिए चलाया गया आन्दोलन था।<ref name="Kshīrasāgara1994">{{cite book|author=रामचन्द्र क्षीरसागर|title=Dalit Movement in India and Its Leaders, 1857-1956|trans_title=भारत में दलित आंदोलन और इसके नेतागण, 1857-1956|url=http://books.google.com/books?id=Wx218EFVU8MC&pg=PA123|date=1 जनवरी 1994|publisher=एम डी पब्लिकेशन प्राइवेट लिमिटेड|isbn=978-81-85880-43-3|pages=123–|language=अँग्रेजी}}</ref><ref name="Jadhav2005">{{cite book|author=के एन जाधव|title=Dr. Ambedkar and the Significance of His Movement|trans_title=डॉ अम्बेडकर और उनके आंदोलन का महत्व|url=http://books.google.com/books?id=9o3rZNud9oIC&pg=PA93|date=1 जनवरी 2005|publisher=पोपुलर प्रकाशन |isbn=978-81-7154-329-8|pages=93–|language=अँग्रेजी}}</ref> [[नासिक]] के [[कालाराम मन्दिर]] में यह सत्याग्रह हुआ था। क्योंकि भारत देश में हिन्दुओं में ऊंची जातियों को जहां जन्म से ही मन्दिर प्रवेश का अधिकार था लेकिन हिन्दू दलितों को यह अधिकार प्राप्त नहीं था। इस सत्याग्रह में करीब 15 हजार दलित लोग शामिल हुए थे, जिनमे ज्यादातर [[महार]] समुदाय के थे और अन्य [[मांग]] व [[चमार]] थे। तथा [[महिला]]ओं की इसमें भारी संख्या थी। 5 वर्ष 11 महिने एवं 7 दिन तक यह सत्याग्रह शुरु था। [[नासिक]] के कालाराम मंदिर में प्रवेश को लेकर उनके इस सत्याग्रह और संघर्ष में उन्होंने पूछा कि "यदि [[ईश्वर]] सबके हैं तो उनके मन्दिर में कुछ ही लोगों को प्रवेश क्यों दिया जाता है।" इस आन्दोलन में आम्बेडकर के साथ दादासाहब गायकवाड, सहस्त्रबुद्धे, देवराव नाईक, डी.व्ही. प्रधान, बालासाहब खरे, स्वामी आनंद थे। तब डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर ने कहा था – “हिन्दू इस बात पर भी विचार करें कि क्या मन्दिर प्रवेश हिन्दू समाज में दलितों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाने का अन्तिम उद्देश्य है ? या उनके उत्थान की दिशा में यह पहला कदम है ? यदि यह पहला कदम है, तो अन्तिम लक्ष्य क्या है ? यदि मन्दिर प्रवेश अन्तिम लक्ष्य है, तो दलित वर्गों के लोग उसका समर्थन कभी नहीं करेंगे। दलितों का अन्तिम लक्ष्य है सत्ता में भागीदारी।’’<ref>https://divyamarathi.bhaskar.com/news/DMS-nashik-kalaram-mandir-satyagrah-85-years-4920807-PHO.html</ref>
 
पुरे महाराष्ट भर से लोग इस सत्याग्रह में शामिल होने के लिए [[नाशिक]] शहर में आये थे। 2 मार्च 1930 को आम्बेडकर के अध्यक्ष के रूप में एक सभा आयोजित की गई। इस सभा में सत्याग्रह किस प्रकार करना है इसपर निर्णय हुए। [[अहिंसा]] के मार्ग से सत्याग्रह करना हैं यह सूचना सबको दी गई। अगले दिन 3 मार्च 1930 को सत्याग्रहीओं की चार तुकडीयां बनाई गई, जो मन्दिर चार दरवाजो पर तैनात थी। पुलिस तथा मन्दिर के पुजारीओं ने सत्याग्रहीओं की मांग का विरोध करते हुए मन्दिर के सभी दरवाजे बन्द रखे। पुलिसों ने भी पुरे मन्दिर को कडी बना रखी थी, ताकी कोई अछूत मन्दिर में प्रवेश न कर पाये। शहर के सवर्ण हिन्दुओं ने इन सत्याग्रहीओं पर हमला हुआ, पत्थर बरसाए गये तथा काठीओं से लोगो की पिटा गया। इसमें आम्बेडकर भी घायल हुए। संख्या में सवर्ण हिन्दुओं से की गुणा अधिक होने बावजूद भी दलितों ने सवर्णों पर हमला कर हिंसा नहीं की, क्योंकि "अहिंसा से सत्याग्रह करना हैं।" इस आम्बेडकर के आदेश का पालन सभी दलित कर रहे थे। यह करीब 6 साल तक चला किंतु [[राम]] के मन्दिरों का दरवाजा दलितों के नहीं खुला। इसके बाद यह हिन्दु धर्म की अपरिवर्तनियता को देखते हुए आम्बेडकर ने हिन्दू धर्म का त्याग करने घोषणा कर दी।<ref>https://m.maharashtratimes.com/maharashtra/nashik-north-maharashtra-news/nashik/kalaram-satyagraha-and-dr-ambedkar/articleshow/63750408.cms</ref>
 
==इन्हें भी देखें==
* [[महाड़ सत्याग्रह]]