"भीमराव आम्बेडकर": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Editor Dr. Babasaheb Ambedkar.jpg|thumb|right|300px|आम्बेडकर द्वारा सम्पादित पत्र-पत्रिकाएँ]]
आम्बेडकर एक सफल पत्रकार एवं प्रभावी संपादक थे। अखबारों के माध्यम से समाज में उन्नती होंगी, इसपर उन्हें विश्वास था। वह आन्दोलन में अखबार को बेहद महत्वपूर्ण मानते थे। उन्होंने शोषित एवं दलित समाज में जागृति लाने के लिए कई पत्र एवं पांच पत्रिकाओं का प्रकाशन एवं सम्पादन किया। इनसे उनके दलित आंदोलन को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण मदद मिली। उन्होंने कहां हैं की, "किसी भी आन्दोलन को सफल बनाने के लिए अखबार की आवश्यकता होती हैं, अगर आन्दोलन का कोई अखबार नहीं है तो उस आन्दोलन की हालत पंख तुटे हुए पंछी की तरह होती हैं।" डॉ॰ आम्बेडकर ही दलित पत्रकारिता के आधार स्तम्भ हैं क्योंकी वे दलित पत्रिकारिता के प्रथम संपादक, संस्थापक एवं प्रकाशक हैं। डॉ॰ आम्बेडकर ने सभी पत्र [[मराठी भाषा]] में ही प्रकाशित किये क्योंकि उनका कार्य क्षेत्र महाराष्ट्र था और मराठी वहां की जन भाषा है। और उस समय महाराष्ट्र की शोषित एवं दलित जनता ज्यादा पढ़ी लिखी नहीं थी, वह केवल मराठी ही समझ पाती थी। कई दशकों तक उन्होंने पांच मराठी पत्रिकाओं का संपादन किया था, जिसमे ''[[मूकनायक]]'' (1920), ''[[जनता]]'' (1930), ''[[बहिष्कृत भारत]]'' (1927), ''[[समता]]'' () एवं ''[[प्रबुद्ध भारत]]'' (1946) सम्मिलित हैं।<ref>https://www.forwardpress.in/2017/02/a-glance-at-dr-ambedkars-writings/</ref><ref>बाबा साहेब डा. आंबेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड-1, पृ0 35</ref><ref>बाबा साहेब डा. आंबेडकर सम्पूर्ण वाङ्मय, खण्ड-15, पृ0 10</ref><ref>डा. बाबासाहेब आंबेडकर – जीवन चरित, धनंजय कीर, हिन्दी अनुवाद- गजानन सुर्वे, पृ0 387</ref> साहित्यकार व विचारक [[गंगाधर पानतावणे]] ने 1987 में भारत में पहली बार आम्बेडकर की पत्रकारितापर पी.एच.डी. के लिए शोध प्रबंध लिखा। उसमें पानतावने ने आंबेडकर के बारे में लिखा हैं की, "इस मुकनायक ने बहिष्कृत भारत के लोगों को प्रबुद्ध भारत में लाया। बाबासाहब एक महान पत्रकार थे।"
 
===[[मूकनायक]]===
31 जनवरी 1920 को बाबासाहब ने अस्पृश्यों के उपर होने वाले अन्यायओ प्रकट करने के लिए "मुकनायक" नामक अपना पहला पाक्षिक शुरू किया. इसके लिए कोल्हापुर संस्थान के छ. शाहु महाराज द्वारा 25,000₹ की आर्थिक मदत भी मिली थी. इस अखबार के शीर्ष भागों पर संत तुकाराम के वचन थे। आम्बेडकर विलायत गये और 1923 में यह अखबार बंद पड गया।
 
३ एप्रिल १९२४ में उन्होंने "बहिष्कृत भारत" अखबार शुरू किया. इस पाक्षिक के कुल ३४ अंक निकाले गये. आर्थिक कठनाईओं से यह अखबार नवम्बर १९२९ को बंद हो गया. इस अखबार के शीर्ष भागों पर संत ज्ञानेश्वर के वचन थे.
 
उसके बाद २९ जून १९२८ में उन्होंने "समता" अखबार शुरू किया. यह समाज समता संघ (समता सैनिक दल) का मुखपत्र था.
 
२४ फरवरी १९३० को उन्होंने "जनता" पाक्षिक शुरू किया. ३१ अक्टुबर को १९३० यह साप्ताहिक बना. १९४४ में, बाबासाहेब ने इसमें "आम्ही शासनकर्ती जमात बनणार" (हम शासनकर्ता समाज बनेंगे) इस शीर्षक के निचे प्रसिद्ध लेख लिखा. १९५६ तक जनता पत्र चलता रहा.
 
उसके बाद ४ फरवरी १९५६ को जनता का नामकरण प्रबुद्ध भारत किया गया। इस पत्र के मुखशीर्ष पर ‘अखिल भारतीय दलित फेडरेशन का मुखपत्र’ छपता था। बाबासाहेब के महापरिनिर्वाण के बाद यह पाक्षिक बंद हुआ. ११ अप्रैल २०१७ को महात्मा फुले की जयंति के उपलक्ष में बाबासाहेब के पौत्र प्रकाश आंबेडकर ने "प्रबुद्ध भारत" नये सिरे से शुरू करने की घोषणा की और १० मई २०१७ को इसका पहला अंक प्रकाशित हुआ।
 
 
इन अखबारों द्वारे बाबासाहेब ने अपने विचारों से स्पृश्य आणि अस्पृश्य को जागृत किया। जिससे दलितों की सोच व जीवन में परिवर्तन आया।
 
==इन्हें भी देखें==