"महाड़ सत्याग्रह": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Flyer_published_before_Mahad_Satyagraha_in_1927.png|thumb|Flyer published before Mahad Satyagraha in 1927]]
 
'''महाड़ का सत्याग्रह''' (अन्य नाम: '''चवदार तालाब सत्याग्रह''' व '''महाड का मुक्तिसंग्राम''') [[भीमराव आंबेडकर]] की अगुवाई में 20 मार्च 1927 को [[महाराष्ट्र]] राज्य के [[रायगढ़]] जिले के [[महाड]] स्थान पर दलितों को सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाने के लिए किया गया एक प्रभावी सत्याग्रह था।<ref name="pib">{{साँचा:Cite press release|url=http://pib.nic.in/archieve/lreleng/lyr2003/rmar2003/20032003/r200320038.html|title=March 20 observed as social empowerment day to commemorate Mahad Satyagrah by Dr. Ambedkar|publisher=[[Press Information Bureau]]|date=20 March 2003|accessdate=31 March 2014}}</ref> इस दिन को भारत में [[सामजिक सशक्तिकरण दिवस]] के रूप में मनाया जाता है।<ref name="pib">{{साँचा:Cite press release|url=http://pib.nic.in/archieve/lreleng/lyr2003/rmar2003/20032003/r200320038.html|title=March 20 observed as social empowerment day to commemorate Mahad Satyagrah by Dr. Ambedkar|publisher=[[Press Information Bureau]]|date=20 March 2003|accessdate=31 March 2014}}</ref> इस सत्याग्रह में हजारों की संख्सा में दलित लोग सामिल हुए थे, सभी लोग महाड के चवदार तालाब पहूँचे और आंबेडकर ने प्रथम अपने दोनों हाथों से उस तालाब पानी पिया, फिर हजारों सत्याग्रहियों उनका अनुकरण किया। यह आंबेडकर का पहला सत्याग्रह था।
 
सवर्ण हिंदुओं द्वारा अछूतों को तालाब का पानी पाने के अधिकार नकारा गया था, जबकि सवर्ण हिंदू दलितों को हिंदू धर्म का हिस्सा मानते थे। सभी हिंदू जाति समूहों एवं अन्य धर्म के लोग मुस्लिम, ईसाई तक भी उस ताबाल का पानी पी सकते थे। ऐसी असमानता के विरोध में आंबेडकर ने क्रान्ति के पहली सुरूवात की।